सरकारों को प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए

Edited By ,Updated: 07 Nov, 2024 06:24 AM

governments should focus on primary education

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने शैक्षणिक संसाधनों को सुव्यवस्थित करने के प्रयास के तहत 50 से कम छात्रों वाले 27,764 बुनियादी विद्यालयों का विलय करने का निर्णय लिया है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने शैक्षणिक संसाधनों को सुव्यवस्थित करने के प्रयास के तहत 50 से कम छात्रों वाले 27,764 बुनियादी विद्यालयों का विलय करने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य कम नामांकन वाले विद्यालयों को अधिक छात्र नामांकन वाले निकटवर्ती विद्यालयों में मिलाना है। राज्य सरकार ने कहा कि इससे बुनियादी ढांचे और प्राथमिक शिक्षा की प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है, जिससे बेहतर संसाधन आबंटन और बेहतर शैक्षणिक सहायता मिल सकती है।

सरकारी विद्यालयों में कम नामांकन की यह प्रवृत्ति कई अन्य राज्यों को भी परेशान कर रही है और सरकारी विद्यालयों में दी जा रही प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर फिर से विचार करने के लिए अधिकारियों और विशेषज्ञों का ध्यान आकॢषत करने की आवश्यकता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि शिक्षा और पर्यावरण की गुणवत्ता का बच्चों के प्रारंभिक वर्षों के दौरान उनके जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। दुर्भाग्य से पूरे देश ने इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित नहीं किया और बहुत कम राज्यों ने ऐसे मॉडल विकसित किए हैं, जिन्हें पूरे देश में दोहराया जाना चाहिए।

उत्तर में दिल्ली और पंजाब को छोड़कर सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति उपेक्षित रही है। खराब बुनियादी ढांचे के अलावा, अर्ध-कुशल शिक्षकों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता भी बहुत कम है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सरकारी स्कूलों में बहुत सस्ते विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद, खासकर शहरी क्षेत्रों में, माता-पिता की बढ़ती संख्या अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाना पसंद कर रही है। नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एन.एस.एस.ओ.) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण ‘कम्युनिटी एनालिसिस ऑफ मॉनिटरिंग स्कूल्स (सी.ए.एम.एस.) से पता चला है कि न केवल नामांकन में अंतर, बल्कि सामाजिक-आर्थिक कारण और भौगोलिक भिन्नताएं भी इस बदलाव को बढ़ावा दे रही हैं।

इसके निष्कर्षों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालयों के 43.8 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में नामांकित हैं, जबकि 36.5 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में जाते हैं। इसी सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि राष्ट्रीय स्तर पर 66.7 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित हैं, जबकि निजी संस्थानों में नामांकन का प्रतिशत 23.4 है। हालांकि, सर्वेक्षण ने शहरी-ग्रामीण विभाजन को स्पष्ट रूप से उजागर किया है, जिसमें शहरी क्षेत्र निजी शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं और ग्रामीण क्षेत्र, मुख्य रूप से विकल्पों की कमी के कारण, सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं।

हरियाणा में प्राथमिक विद्यालयों के 45.6 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में जाते हैं, जबकि सरकारी विद्यालयों में यह 40.2 प्रतिशत है। जाहिर है कि शिक्षा की गुणवत्ता या इसकी कमी अभिभावकों को अधिक फीस के बावजूद अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने के लिए प्रेरित कर रही है। संयोग से, मणिपुर में निजी नामांकन की उच्चतम दर दर्ज की गई है, जहां 74 प्रतिशत छात्र निजी संस्थानों में जाते हैं, जबकि सरकारी विद्यालयों में यह केवल 21 प्रतिशत है।

दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा जैसे राज्यों में निजी स्कूली शिक्षा एक छोटी प्राथमिकता बनी हुई है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में केवल 5 प्रतिशत छात्र निजी स्कूलों में जाते हैं, जबकि त्रिपुरा और ओडिशा में यह प्रतिशत क्रमश: 6.2 और 6.3 है। इन राज्यों में सरकारी शिक्षा के प्रति मजबूत झुकाव का विशेषज्ञों द्वारा अध्ययन किया जाना चाहिए और इस पद्धति को अन्य राज्यों में भी दोहराया जाना चाहिए।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोविड महामारी ने शिक्षा, विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा पर गहरा प्रभाव डाला है। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि नौकरियों के नुकसान और पारिवारिक आय में भारी गिरावट के कारण निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में छात्रों का स्पष्ट बदलाव हुआ है। इसमें 2020 में 65.8 प्रतिशत से 2021 में 70.3 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। निजी स्कूल में नामांकन में 2020 में 28.8 प्रतिशत से 2021 में 24.4 प्रतिशत की गिरावट आई। यह प्रवृत्ति अब उलट रही है, लेकिन प्राथमिक शिक्षा पर महामारी का प्रतिकूल प्रभाव लंबे समय तक बना हुआ है। 

इसी सर्वेक्षण में पाया गया कि छात्र, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र, विभिन्न मापदंडों में काफी पिछड़ गए हैं। महामारी ने देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया है। दुर्भाग्य से महामारी के दौरान हुए नुकसान की भरपाई के लिए बहुत कम किया गया। नवीनतम डाटा सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता के अंतर को दूर करने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं। सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे, शिक्षण गुणवत्ता और पहुंच में सुधार की तत्काल आवश्यकता है। केंद्र सरकार ने इस वर्ष प्राथमिक शिक्षा के लिए बजट में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि करके अच्छा काम किया है। इसका उपयोग गहन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए किया जाना चाहिए। -विपिन पब्बी

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!