Edited By ,Updated: 07 Sep, 2024 05:26 AM
राजनीति भी अजब खेल है। दशकों तक हरियाणा में सत्ता-राजनीति के केंद्र रहे तीनों चॢचत लालों यानी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के परिवार इस विधानसभा चुनाव में हाशिए पर हैं। एक नवंबर, 1966 को पृथक राज्य बने हरियाणा की राजनीति में दशकों तक इन 3 लालों की...
राजनीति भी अजब खेल है। दशकों तक हरियाणा में सत्ता-राजनीति के केंद्र रहे तीनों चॢचत लालों यानी बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के परिवार इस विधानसभा चुनाव में हाशिए पर हैं। एक नवंबर, 1966 को पृथक राज्य बने हरियाणा की राजनीति में दशकों तक इन 3 लालों की तूती बोलती रही। तब उन लालों के बिना कोई भी दल हरियाणा में राजनीति करने की सोच भी नहीं सकता था, पर अब जबकि हरियाणा के मतदाता अपनी नई विधानसभा और सरकार चुनने के लिए 5 अक्तूबर, 2024 को वोट डालने जा रहे हैं तो उन लाल परिवारों के परिजन सत्ता-राजनीति की मुख्य धारा से दूर हाशिए पर नजर आ रहे हैं।
बेशक तीनों लालों ने अपनी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से ही की थी, लेकिन तीनों ने ही कांग्रेस छोड़ी भी। तथ्य यह भी है कि पिछले 10 साल से हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा देवीलाल और बंसीलाल के दल के साथ गठबंधन कर राजनीति करती रही, लेकिन पिछले एक दशक में तीनों ही लाल परिवार उसका कमल थामे नजर आए। चौधरी बंसीलाल इंदिरा गांधी के समय बड़े नेताओं में गिने जाते थे। इंदिरा के चर्चित बेटे संजय गांधी के भी वह करीबी रहे। बंसीलाल केंद्र में मंत्री रहने के अलावा 3 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। उन्हें ‘आधुनिक हरियाणा का निर्माता’ कहा जाता है। तीसरी बार वह अपनी अलग हरियाणा विकास पार्टी (हविपा) बना कर भाजपा से गठबंधन में चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा द्वारा समर्थन वापसी के चलते बंसीलाल सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। 2004 में बंसीलाल और उनके बेटे सुरेंद्र सिंह ने हविपा का कांग्रेस में विलय कर दिया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में 2005 में कांग्रेस के सत्ता में आने पर सुरेंद्र सिंह मंत्री भी बनाए गए।
एक हैलीकाप्टर दुर्घटना में सुरेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी किरण चौधरी ने परिवार की राजनीतिक विरासत संभाली, जो उससे पहले दिल्ली में कांग्रेस की बड़ी नेता थीं। किरण हरियाणा में मंत्री बनाई गईं और उनकी बेटी श्रुति चौधरी लोकसभा सांसद। हरियाणा में गैर-कांग्रेसी राजनीति की धुरी बने देवीलाल सबसे ज्यादा पांच बार मुख्यमंत्री रहे, पर उनका कार्यकाल कभी लंबा नहीं रहा। जनसंघ और भाजपा से उनके अच्छे रिश्ते रहे। दोनों ने गठबंधन सरकार भी चलाई। ‘ताऊ’ के संबोधन से लोकप्रिय देवीलाल देश के उप-प्रधानमंत्री भी बने। देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला, जो उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने, ने भी भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चलाई। उसी कार्यकाल में दोनों में तल्खियां बढ़ीं और रास्ते अलग हो गए। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के टकराव में 2018 में चौटाला परिवार और उसकी पार्टी इनैलो टूटी तो बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जजपा) बना ली। 2019 के विधानसभा चुनाव में जब भाजपा बहुमत से वंचित रह गई तो 10 विधायकों वाली जजपा से गठबंधन हुआ और देवीलाल की चौथी पीढ़ी के दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री बने।
भजनलाल 3 बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। पहली बार 1979 में, दूसरी बार 1982 में और तीसरी बार 1991 में। भजनलाल केंद्र में मंत्री भी रहे। राजनीतिक जोड़-तोड़ के मामले में उन्हें ‘पी.एच.डी.’ कहा जाता था। केंद्र में नरसिम्हा राव सरकार को अल्पमत से बहुमत में बदलने में उनकी भूमिका की अक्सर चर्चा होती है। उनके दोनों बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप बिश्नोई राजनीति में हैं। चंद्रमोहन कांग्रेस में हैं, जबकि अलग पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) बना कर फिर कांग्रेस में लौटने के बाद कुलदीप अब भाजपा में हैं। 2005 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक हरियाणा की राजनीति इन्हीं 3 लाल परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती रही, पर उसके बाद इनका दबदबा कम होता गया। ‘चौथे लाल’ के रूप में हरियाणा की सत्ता संभालने वाले मनोहर लाल के कार्यकाल ने तो हालात यह बना दिए कि कल तक जो परिवार हरियाणा की राजनीति की दिशा तय करते थे, आज उनके परिजनों का राजनीतिक भाग्य दूसरे दल और नेता तय कर रहे हैं। जो परिवार हरियाणा में लोगों को नेता बनाते थे, आज उनकी राजनीति अपने लिए टिकट की जोड़-तोड़ तक सिमट कर रह गई है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लंबी तनातनी के बाद किरण चौधरी को आखिरकार भाजपा की शरण में जाना पड़ा, जिसने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाने के बाद अब बेटी श्रुति चौधरी को तोशाम से विधानसभा का टिकट भी दे दिया है। भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन की राजनीति पंचकूला और कालका विधानसभा सीट तक सिमट कर रह गई है। छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई का पूरा ध्यान बेटे भव्य को राजनीतिक रूप से स्थापित करने पर है। बहुत कोशिशों के बावजूद वह न तो भव्य को मंत्री बनवा पाए और न ही खुद राज्यसभा सांसद बन पाए। ओमप्रकाश चौटाला अपने छोटे बेटे अभय के साथ मिल कर इनैलो चला रहे हैं तो बड़े बेटे अजय अपने दोनों बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के साथ मिल कर जजपा। देवीलाल के ही बेटे रणजीत सिंह चौटाला तो पिछली बार रानिया से निर्दलीय विधायक बन कर पहले मनोहर लाल और फिर नायब सिंह सैनी सरकार में मंत्री भी रहे। जाहिर है, इन चुनावों में तीनों ही लाल परिवारों को अपनी राजनीति बचाने के लाले पड़े हैं।-राज कुमार सिंह