मंदिर पर भारी ‘मंडल’

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2024 05:42 AM

heavy  mandal  on the temple

2024 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ ब्लॉक का शानदार प्रदर्शन एन.डी.ए. के 300 के आंकड़े से नीचे रहने और भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रहने का एक प्रमुख कारण है।

2024 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ ब्लॉक का शानदार प्रदर्शन एन.डी.ए. के 300 के आंकड़े से नीचे रहने और भाजपा के अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रहने का एक प्रमुख कारण है। करीबी मुकाबले में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश में ‘इंडिया’ ब्लॉक 43 सीटें जीतने में सफल रहा, जबकि एन.डी.ए. को 36 सीटें मिलीं। सपा को 37 सीटें, कांग्रेस को 6 और भाजपा को 33 सीटें मिलीं। नतीजे आश्चर्यचकित करने वाले थे क्योंकि यू.पी. रूढि़वादी  ‘ङ्क्षहदी पट्टी वाला क्षेत्र’ है जहां नरेंद्र मोदी के तहत हिंदुत्व विचारधारा की जड़ें गहरी हो गई हैं। 

चुनाव शुरू होने से पहले भाजपा को यू.पी. में 2019 का प्रदर्शन दोहराने का भरोसा था। लेकिन जैसे-जैसे मतदान आगे बढ़ा, कम मतदान, मोदी समर्थक लहर की कमी और स्थानीय मुद्दों के केंद्र में पहुंचने से यह स्पष्ट हो गया कि भाजपा को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा। वास्तव में पिछले कुछ वर्षों में यू.पी. में कई महत्वपूर्ण विकास जिन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है परिणामों के पीछे एक बड़ी वजह है। एक पुनरुत्थानवादी सपा द्वारा ‘इंडिया’ ब्लॉक का गठन, राहुल गांधी की बेहतर छवि, योगी आदित्यनाथ सरकार के साथ विशेष रूप से दलित समुदाय और ओ.बी.सी. के वर्गों के बीच बढ़ती बेचैनी और सबसे महत्वपूर्ण बात यू.पी. की अर्थव्यवस्था की खराब स्थिति, जिसने गरीब और वंचित वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। 

‘इंडिया’ ब्लॉक का मुख्य वास्तुकार अखिलेश यादव के नेतृत्व में पुनर्जीवित सपा रही है। 2014 के बाद पहली बार, कोई नेता वर्चस्व वाली भाजपा को चुनौती दे सका है जो 57 सीटें हार गई है। सपा ने अपनी सीटों की संख्या में 67 सीटों की बढ़ौतरी की और 36.32 फीसदी वोट शेयर हासिल किया। दलित वोटों को आकर्षित करने के लिए अखिलेश ने अकेले ही छोटे ओ.बी.सी., दलित दलों और बाबासाहेब वाहिनी का भाजपा विरोधी मोर्चा बनाया। खुद को ‘पिछड़े’ नेता के रूप में स्थापित करते हुए उन्होंने चुनावी चर्चा को हिंदुत्व और सामाजिक न्याय के बीच लड़ाई में बदल दिया। 2024 में, अपनी सफलता को आगे ले जाने के लिए उन्होंने धैर्यपूर्वक मांग करने वाली कांग्रेस के साथ सीट वितरण पर बातचीत की, और 62 सीटें अपने पास रखते हुए उसे 11 सीटें देने पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने आगे बढऩे के प्रयास में सपा की मुस्लिम-यादव पार्टी के तौर पर बनी छवि को मिटा दिया। 

यू.पी. में असंतोष का दोहन किया गया। पहले के फॉर्मूले की तुलना में, जिसमें यादव और मुसलमानों को शामिल किया गया था, अब अखिलेश ने केवल अपने परिवार के 5 यादव सदस्यों को टिकट देकर बाकी को विविध, प्रभावशाली गैर-यादव पिछड़े समुदाय में बांटकर सपा की मुस्लिम-यादव पार्टी की छवि को खत्म कर दिया। यू.पी. की 17 आरक्षित सीटों पर कई टिकट गैर-जाटवों को दिए गए। 2024 के चुनाव एक पुनर्जीवित कांग्रेस की ओर इशारा करते हैं, जिसमें राहुल गांधी की 2 यात्राओं के कारण उनकी छवि में बदलाव आया है। वंशवादी गढ़ कहे जाने वाले अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस की जीत उसकी बहाल हुई लोकप्रियता की ओर इशारा करती है। कांग्रेस के घोषणापत्र या न्याय पत्र को उसकी 5 गारंटियों के साथ खूब सराहा गया, खासकर नौकरी की गारंटी और एस.सी., एस.टी. तथा ओ.बी.सी. के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा बढ़ाने के लिए संवैधानिक संशोधन के वायदे को खूब सराहा गया। ‘इंडिया’  गठबंधन द्वारा संयुक्त रैलियां देर से शुरू हुईं, लेकिन मई में कम से कम 6 रैलियां आयोजित की गईं जिनमें भारी भीड़ द्वारा अखिलेश का स्वागत करने के लिए मंच पर चढऩे की कोशिश करने की खबरें थीं। 

‘इंडिया’ ब्लॉक के नेताओं ने लोगों के मुद्दों को दोहराते हुए लगातार जमीन पर असंतोष का फायदा उठाया। जाति जनगणना की आवश्यकता जिसका भाजपा विरोध कर रही थी; दलित समुदायों के बीच यह डर है कि भाजपा संविधान को बदलकर उन्हें आरक्षण से वंचित कर देगी। अलोकप्रिय अग्निवीर योजना, प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों का बार-बार लीक होना आदि मुद्दे भी सपा-कांग्रेस की जीत के मुख्य सूत्रधार हैं। विमर्श को सांप्रदायिक बयानबाजी से दूर ले जाने में उनकी सफलता फैजाबाद निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा की हार में देखी गई है, जहां राम मंदिर स्थित है। दलित नेता और सपा के अवधेश सिंह ने यह सीट जीत ली। 2014 के बाद से बसपा के कमजोर होने के बाद गैर-जाटवों ने प्रमुख यादवों और उनका प्रतिनिधित्व करने वाली सपा से सावधान होकर भाजपा को प्राथमिकता दी थी। लेकिन सपा के कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद उन्होंने ‘इंडिया’ ब्लॉक को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में देखा। जाटव बसपा से दूर भीम आर्मी/आजाद समाज पार्टी या अम्बेडकरवादी की ओर चले गए हैं। 

मुद्रास्फीति और बढ़ती बेरोजगारी जैसे आर्थिक मुद्दों पर संकट ने भाजपा की मुसीबत को और बढ़ा दिया। वहीं आदित्यनाथ की ‘बुलडोजर राजनीति’ को नापसंद किया जाता है। प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने कई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, यमुना और गंगा  एक्सप्रैस-वे, सनौता-पुरकाजी एक्सप्रैस-वे का धूमधाम से उद्घाटन किया। वाराणसी से नोएडा तक 8-लेन एक्सप्रैस-वे और कुशीनगर और जेवर में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों की योजना की शुरूआत मायावती ने की और अखिलेश ने इसे जारी रखा। संक्षेप में, 2024 के चुनाव में हिंदुत्व की ताकतों और सामाजिक न्याय का समर्थन करने वाले मंडल के बीच एक भयंकर, करीबी लड़ाई देखी गई।-सुधा पई 
    

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