अमरीकी चुनाव में भी हिन्दू कार्ड की धमक

Edited By ,Updated: 03 Nov, 2024 03:03 AM

hindu card is a threat in us elections too

जो  देश दुनिया का दारोगा कहलाए, जिसकी जी.डी.पी. भी सबसे बड़ी हो, सैन्य संसाधनों में कोई सानी न हो, तरक्की के लिहाज से भी मुकाबला आसान न हो, उस देश के चुनाव में केवल दो दलों में से एक में अगर धर्म की एंट्री हो जाए तो चौंकना जायज है।

जो  देश दुनिया का दारोगा कहलाए, जिसकी जी.डी.पी. भी सबसे बड़ी हो, सैन्य संसाधनों में कोई सानी न हो, तरक्की के लिहाज से भी मुकाबला आसान न हो, उस देश के चुनाव में केवल दो दलों में से एक में अगर धर्म की एंट्री हो जाए तो चौंकना जायज है। अब जब अमरीकी चुनाव में दिन के बजाय घंटे ही शेष हैं और हिन्दुओं को लुभाने की बातें होने लगें, तो भारतीयों की चमक-धमक जरूर समझ आती है लेकिन कहीं न कहीं वह विशुद्ध राजनीति भी दिखती है, जो अब तक भारत में होती थी।

चुनाव पूर्व तमाम सर्वेक्षण इशारा करते हैं कि मुकाबला बहुत तगड़ा है। रॉयटर्स-इप्सॉस का हालिया सर्वे भी बताता है कि रिपब्लिकन उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मुकाबले डैमोक्रैटिक कमला हैरिस 1 फीसदी बढ़त पर हैं। पल-पल बदल रहे रुझान कौन सी करवट लेंगे, कहना मुश्किल है। ऐसे में तरह-तरह के चुनावी हथकंडे अपनाए जाएंगे ही। कमोबेश ट्रम्प ने भी बड़ा दांव खेल इस बढ़त को पाटने की कोशिश की है। 

संभव है कि उनका हिन्दू हितों वाला बयान कारगर अस्त्र बने। बंगलादेश में हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों का खास जिक्र कर ङ्क्षहदू हिमायती के तौर पर प्रोजैक्ट कर दिया दीवाली संदेश हैरिस पर कितना भारी पड़ेगा, इसके लिए नतीजों तक रुकना होगा। हां, इसे अब तक का सबसे बड़ा सियासी दांव जरूर माना जा रहा है। ऐसा नहीं है कि कमला हैरिस ने भी भारतीय मूल के लोगों को लुभाने के लिए अपनी ओर से कोई कोर कसर छोड़ी। वह अक्सर अपनी मां की भारतीय जड़ों की बातें करती हैं। आप्रवासियों के लिए आसान नीतियां बनाने, भारतीय कामगारों और विद्याॢथयों के लिए अमरीकी दरवाजे आसानी से खोलने, वीजा नियमों को आसान बनाने की बात करते नहीं थकतीं। 

अमरीका में भारतवंशी 52 लाख के लगभग हैं। इनमें करीब 23 लाख मतदाता हैं। इतनी बड़ी संख्या की अनदेखी असंभव है। भारतवंशियों का रुख बताता है कि डैमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस लोगों के बीच लोकप्रिय जरूर हैं, लेकिन अमरीका के बड़े समुदायों में से एक में उनकी पकड़ मजबूत नहीं है। 2024 इंडियन-अमेरिकन एटीच्यूड्स सर्वे यानी आई.ए.ए.एस. के आंकड़े बताते हैं कि अभी 61 फीसदी भारतवंशी हैरिस के समर्थक हैं जबकि चार साल पहले यह आंकड़ा 68 फीसदी था। जाहिर है कि इस गिरावट का फायदा ट्रम्प को ही मिलेगा।   

एक सर्वे रिपोर्ट तो और भी चौंकाती है। अमेरिका में जन्मे भारतीय मूल के नौजवानों का झुकाव रिपब्लिकन पार्टी की ओर ज्यादा है, जबकि नागरिकता लेकर बसे भारतीयों का रुझान डैमोक्रेट्स की ओर है। निश्चित रूप से थोड़ा ही सही, भारतीय समुदाय का बंटना भी अमरीकी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अमरीकी नतीजों में जॉॢजया, एरिजोना, नॉर्थ कैरोलिना, मिशिगन, पेंसिलवेनिया, विस्कॉन्सिन और नेवादा राज्यों की भूमिका खास होती है। यहां मतदाताओं के बदलते रुख को भांपने में चूक प्रत्याशी पर भारी पड़ती है। इसी कारण अपनी-अपनी जीत को पुख्ता करने की खातिर दोनों इन राज्यों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। 

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव मतपत्रों से होते हैं, जिसके नतीजे काफी वक्त लेते हैं। अमरीका में 50 राज्य हैं, 7 के नतीजों का अदांजा लगाना लगभग मुश्किल रहता है। यहां मतदान और गिनती के तरीके भी अलग-अलग हैं। अमरीकी चुनावी नतीजों की विविधता और रोचकता ही है कि कब कौन प्रत्याशी जीतते हुए हार जाए और कब हारता हुआ जीत जाए। बहरहाल देखना होगा कि ट्रम्प का हिन्दू कार्ड चलता है या भारतवंशी हैरिस वहां की पहली महिला राष्ट्रपति बनेंगी। हां, एक बात जरूर है कि चुनाव भले ही अमरीका जैसे ताकतवर देश का हो, लेकिन भारत ने अपनी हैसियत और दम-खम जरूर दिखा दिया है। -ऋतुपर्ण दवे

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