भयावह दुर्घटना : क्या किसी को किसी के जीवन की परवाह है?

Edited By ,Updated: 19 Feb, 2025 05:39 AM

horrible accident does anybody care about anybody s life

भीड़ में फंसना भयावह होता है और देश की राजधानी के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में शनिवार रात को भगदड़ में 18 लोगों की मौत हुई और सैंकड़ों घायल हुए। कल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्टेशन में भी महाकुंभ जाने वाले भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली और महाकुंभ...

भीड़ में फंसना भयावह होता है और देश की राजधानी के नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में शनिवार रात को भगदड़ में 18 लोगों की मौत हुई और सैंकड़ों घायल हुए। कल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्टेशन में भी महाकुंभ जाने वाले भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली और महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या के शाही स्नान के अवसर पर मची भगदड़ में 30 से अधिक लोगों की जान गई और 60 से अधिक लोग घायल हुए। यह भगदड़ इतनी भयावह थी कि महिलाएं और बच्चे इसमें रौंदे गए।

प्रश्न उठता है कि रेलवे रेलगाड़ी की क्षमता की बजाय 2500 अनारक्षित टिकट क्यों बेचता है? दूसरा प्रश्न यह है कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 48 प्रतिशत कम सुरक्षाकर्मी क्यों तैनात किए गए थे और तीसरा, दो विशेष कुंभ रेलगाडिय़ों के प्लेटफार्म क्यों बदले गए? प्रशासनिक खामियों और भूलों के लिए कौन जिम्मेदार है? यदि ये प्लेटफार्म नहीं बदले जाते तो लोगों की जान नहीं जाती। यह एक ऐसी आपदा है, जिसे होने दिया गया।

निश्चित तौर पर भीड़ प्रबंधन एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, किंतु सितंबर 2017 में मुंबई के एल्विन स्टोन रोड स्टेशन की घटना से कोई सबक नहीं लिया गया, जहां पर भीड़ के कारण पैदल मार्ग गिर गया और उसमें 23 से अधिक लोगों की मौत हुई। या 2010 की भगदड़, जिसमें 20 से अधिक लोगों की जानें गईं या 2005 में महाराष्ट्र के सतारा में कालूबी यात्रा मंधार देवी के दौरान 293 लोगों की जानें गई थीं। यही स्थिति पहले के कुंभों में भी थी। 2013 में अत्यधिक भीड़ के कारण 37 लोगों की जान गई। वर्ष 1990 से 2020 के बीच भीड़ में भगदड़ मचने के कारण 14,700 लोगों की जानें गईं और ये घटनाएं अक्सर तब हुईं जब कोई फिसल गया। भीड़भाड़ कम करने के संबंध में एक अंतर्राष्ट्रीय जर्नल के अध्ययन के अनुसार भारत में भगदड़ में मरने वाले लोगों में 80 प्रतिशत से अधिक वाली घटनाएं धार्मिक समारोहों और तीर्थ यात्राओं में घटित हुईं और इसके अलावा रॉक कंसर्ट और मेलों में भी ऐसी भगदड़ मचती है।

रेल मंत्री और राज्य सरकार कहते हैं कि सब कुछ नियंत्रण में है और जांच समितियों के गठन की घोषणाएं करते हैं। अधिकारी अत्यधिक भीड़भाड़ बढऩे के कारणों का विश्लेषण करते हैं और इस संबंध में उनके विचार और उपाय भी भीड़भाड़ की तरह ही होते हैं ओर हर कोई इस बात से संतुष्ट होता है कि उन्होंने अपना कत्र्तव्य पूरा कर दिया है, किंतु वास्तव में सब कुछ काम चलाऊ होता है। प्रश्न उठता है कि क्या किसी को इस संबंध में किसी की कोई परवाह है? प्रश्न यह भी उठता है कि सरकार केवल तब क्यों प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, जब लोगों की जानें चली जाती हैं। इसके लिए कौन दोषी है और किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा और किसे दंडित किया जाएगा? किसी को नहीं। इसके अलावा राजनेता यह क्यों समझते हैं कि केवल मुआवजा देने से समस्या का समाधान हो जाएगा। हमारे शासक विशेषज्ञों को नजरअंदाज करते हैं, जो कहते हैं कि कोई भी प्रशासन ऐसी घटनाओं से सबक नहीं लेता और इसका कारण यह है कि आम आदमी को ये लोग केवल एक संख्या मानते हैं, जो एक उदासीन और स्वार्थी राजनीति और प्रशासन का लक्षण है जिसके पास इन समस्याओं के समाधान का कोई उपाय नहीं है और इस क्रम में हर कोई सरकार को दोष देता है। 

स्पष्ट है कि प्रशासनिक प्रणाली व्यावहारिक रूप से न केवल नई दिल्ली में, अपितु सर्वत्र वर्षों पहले धराशायी हो गई है। एक समाज विज्ञानी का कहना है कि सच्चाई यह है कि हमने राजनीतिक और आॢथक स्वतंत्रता प्राप्त की है, किंतु एकपक्षीय आर्थिक विकास ने वंचित लोगों की संख्या बढ़ाई है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है और इस स्थिति से भारत को कौन उबारेगा? महाकुंभ में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों द्वारा गंगा स्नान को दिखाना अच्छा है, किंतु आम जनता के लिए भी अच्छी व्यवस्थाएं होनी चाहिएं।

इन त्रासदियों ने बताया है कि हम ऐसे बड़े समारोहों की तैयारी में कैसे पीछे रह जाते हैं। साथ ही हमारे जनसेवकों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे समारोहों में लोगों को एक निश्चित सीमा तक जाने की अनुमति दी जानी चाहिए और उससे अधिक लोगों को तभी अनुमति दी जानी चाहिए, जब पूरी सुविधाएं उपलब्ध हों और भीड़ नियंत्रण का पूरा तंत्र तैयार हो। समस्याओं के मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञों की मदद लेनी होगी तथा निर्णय लेने और नीति निर्माण में विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए। हमारे प्रशासकों को भीड़ नियंत्रण के लिए केवल लाठीधारी पुलिसकर्मियों को तैनात नहीं करना होगा। उन्हें उनकी सही तैनाती करनी होगी तथा संगठनात्मक समन्वय बनाना होगा, वैज्ञानिक योजना बनानी होगी, आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेना होगा और भीड़ के आकलन को ध्यान में रखते हुए सारी व्यवस्थाएं करनी होंगी। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भीड़ प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश बनाए हैं, किंतु फिर भी बड़े समारोहों और संगमों में इनका पालन नहीं किया जाता। 

यह बात समझ में नहीं आती है कि भीड़ नियंत्रण के लिए अत्याधुनिक प्रणालियों या ड्रोन का उपयोग क्यों नहीं किया गया, जिससे पुलिसकर्मियों और कानून प्रवर्तन एजैंसियों को भीड़ का आकलन करने में सहायता मिलती और वे बढ़ती भीड़ के स्रोत या वहां गड़बड़ी होने का तुरंत पता लगा पाते। समय की मांग है कि इस संबंध में ठोस कार्रवाई की जाए। हमारे राजनेताओं को दीर्घकालीन नियोजन पर ध्यान देना होगा। इसके लिए न आपको बहुत ही संवेदनशील बनने की आवश्यकता है और न ही आंखें मूंदने की, कि क्या किया जाना चाहिए। यदि अब भी भीड़ प्रबंधन और भगदड़ पर नियंत्रण के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं तो फिर ऐसी दुर्घटनाएं और होंगी।-पूनम आई. कौशिश    

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