आंबेडकर मामले को कांग्रेस कहां तक ले जा पाएगी

Edited By ,Updated: 26 Dec, 2024 05:30 AM

how far will congress be able to take the ambedkar issue

कहा जाता है कि मोदी या उनकी सरकार के मंत्रियों पर विपक्ष का कोई आरोप चिपकता नहीं है। लेकिन पहली बार आंबेडकर के कथित अपमान का आरोप अमित शाह को घेरते हुए मोदी और भागवत को भी अपने लपेटे में ले रहा है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह मामला विपक्ष 2027 के...

कहा जाता है कि मोदी या उनकी सरकार के मंत्रियों पर विपक्ष का कोई आरोप चिपकता नहीं है। लेकिन पहली बार आंबेडकर के कथित अपमान का आरोप अमित शाह को घेरते हुए मोदी और भागवत को भी अपने लपेटे में ले रहा है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह मामला विपक्ष 2027 के उत्तर प्रदेश चुनाव तक जिंदा रख पाएगा। अगर रहा और इस मसले ने असर दिखाया तो तय है कि 2029 के लोकसभा चुनाव तक इसकी धमक सुनाई देगी। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस और समूचा विपक्ष इस मसले पर जिस रणनीति पर चल रहा है उससे बात निकलेगी तो दूर तक जाएगी की सियासी खनक सुनाई नहीं दे रही। अलबत्ता साफ है कि अरविंद केजरीवाल फरवरी के दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस मसले को काफी हद तक भुनाने की कोशिश करेंगे। 

आखिरकार केजरीवाल ने सबसे पहले नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को खत लिखकर इस मामले में रुख साफ करने को कहा था।  फरवरी के बाद नवंबर में बिहार में चुनाव होंगे। बिहार की राजनीति में आंबेडकर से ज्यादा जाति पर राजनीति की जाती है लेकिन फिर भी नीतीश कुमार की परेशानियां बढ़ सकती हैं। याद रहे कि बिहार में लोकसभा चुनाव में संविधान के खतरे में होने की हांडी में उबाल कम ही आया था।

वैसे देखा जाए तो अमित शाह के भाषण के 10-11 सैकंड के काट- छांट वाले वीडियो में पर्याप्त सियासी बारूद है। वीडियो बहुत छोटा है लिहाजा यह सस्ते मोबाइल फोन में भी देखा जा सकता है। यानी ठेठ गांव देहात तक इसे पहुंचाने की कोशिश की गई है और आगे भी की जाएगी। वीडियो में अमित शाह हिकारत से आंबेडकर-आंबेडकर दोहराते हुए नजर आ रहे हैं।  अगर कांग्रेस की जगह भाजपा के पास यह मुद्दा रहता तो पूरा देश नीला हो चुका होता लेकिन कांग्रेस लाल पीली होने के सिवा कुछ ज्यादा नहीं कर पा रही है। इसलिए भी कुछ जानकारों का कहना है कि संसद के फरवरी में शुरू होने वाले बजट सत्र में इस मुद्दे की अग्नि परीक्षा होने वाली है। 

कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे दलित हैं। बुजुर्ग हैं। मिल मजदूर के बेटे हैं। आंबेडकर अपमान के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इससे ज्यादा किसी को क्या चाहिए। लेकिन जरूरी नहीं है कि सिर्फ दलितों तक इसे सीमित रखा जाए। आंबेडकर से आदिवासी या ओ.बी.सी. प्रभावित नहीं होते हैं। दलितों में भी जाटव जैसे दलितों पर असर ज्यादा होता है लेकिन राहुल गांधी दलित, ओ.बी.सी., आदिवासी सबको जोड़ कर देख रहे हैं जो मसले की मारक क्षमता को कम करता है। संसद में जितना विरोध होना था वह हो गया। देश के बड़े शहरों और राजधानियों में भी कांग्रेस धरने प्रदर्शन कर चुकी।

अब अगले चरण में मामले को दलितों की बस्तियों में ले जाती तो बात कुछ और होती। दिलचस्प बात है कि इस समय लड़ाई इस बात पर हो रही है कि यह साबित किया जा सके कि कौन आंबेडकर विरोधी है। भाजपा के बड़े से लेकर छोटे नेता चुन-चुन कर आरोप लगा रहे हैं कि कैसे नेहरू ने आंबेडकर का अपमान किया, लोकसभा से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, हिंदू कोड में साथ नहीं दिया आदि-आदि। कांग्रेस बता रही है कि कैसे संघ, जनसंघ, हिंदू महासभा आदि ने आंबेडकर का विरोध किया था। 

आंबेडकर के संविधान की खिल्ली उड़ाई थी, वैसे भी कांग्रेस पुरजोर तरीके से हमलावर नहीं हो रही है जैसी कि उससे उम्मीद की जानी चाहिए। संसद में संविधान पर हुई बहस में भी खरगे ही बचाव के साथ-साथ हमले करते नजर आए थे। कांग्रेस को समझना चाहिए कि आंबेडकर मामले पर मायावती भी आखिरकार भाजपा के विरोध में आ ही गई। मायावती को पता है कि अगर वह चूकी तो यू.पी. में उनका सफाया हो जाएगा। यू.पी. से बाहर वह कहीं नहीं हैं। संघ समझ रहा है कि मामला तूल पकड़ा तो कोई कार्रवाई करनी ही होगी क्योंकि दलितों को अपने साथ लाने में उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। दलित सिर्फ वोट बैंक नहीं है। हिंदू राष्ट्र की अवधारणा में भी दलितों के साथ की उतनी ही जरूरत है जितनी कि ओ.बी.सी. या आदिवासियों की। लोकसभा चुनाव में सबने देखा कि संविधान बदलने, आरक्षण खत्म करने की तमाम बातों के बीच दलित ने भाजपा का साथ छोड़ा था और भाजपा 240 पर सिमट गई थी। 

इस लिहाज से देखा जाए तो भाजपा की रणनीति यही है कि कांग्रेस को आंबेडकर विरोधी घोषित किया जाए ताकि दलित अमित शाह को भूल कर कांग्रेस को निशाने पर लेने लगें। यह कमजोर नीति है क्योंकि भाजपा के पास इसके दस्तावेजी सबूत नहीं है और खुद उस समय के उनके नेताओं के ढेरों आंबेडकर विरोधी बयान सामने हैं। उधर कांग्रेस के पास कहने को बहुत कुछ है लेकिन वह सिलसिलेवार ढंग से कह नहीं पा रही है। भाजपा इसी भ्रम को बनाए रखना चाहती है और चाहती है कि रायता इसी तरह फैलता रहे। ऐसे में आई.एन.डी.आई.ए. मोर्चे की भूमिका बड़ी हो जाती है। यू.पी. में अखिलेश यादव आंबेडकर की बात करते हैं और इसे अपने पी.डी.ए. से जोड़ देते हैं। पी.डी.ए. में सिर्फ दलित नहीं है। उसमें पिछड़े और मुस्लिम भी शामिल हैं जबकि जरूरत इस समय दलित वोटों को साधने की है। वैसे देखा जाए तो आंबेडकर अपमान बयान से ध्यान हटाने के लिए सांसद धक्का-मुक्की कांड हुआ लेकिन यहां वीडियो सत्ता पक्ष के पास नहीं है। उधर विपक्ष के पास शाह का वीडियो है। संघ प्रमुख ने इसी मौके पर मस्जिदों के नीचे मंदिर नहीं तलाशने की हिदायत देकर आंबेडकर मसले पर बड़ी लकीर खींचने की कोशिश की।  देखते हैं कि कांग्रेस इस मामले को कहां तक ले जा पाने में समर्थ रहेगी।-विजय विद्रोही
    

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