Edited By ,Updated: 12 Dec, 2024 06:11 AM
देश में समय-समय पर होने वाले विभिन्न चुनावों के परिणाम आने के बाद इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें यानी ई.वी.एम. अक्सर आलोचना का शिकार बनती आई हैं। हाल ही में सम्पन्न महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा के चुनावों के बाद इन दिनों एक बार फिर से यह ‘बेचारी’...
देश में समय-समय पर होने वाले विभिन्न चुनावों के परिणाम आने के बाद इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें यानी ई.वी.एम. अक्सर आलोचना का शिकार बनती आई हैं। हाल ही में सम्पन्न महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा के चुनावों के बाद इन दिनों एक बार फिर से यह ‘बेचारी’ ई.वी.एम. आलोचना का शिकार होकर लगातार मीडिया की सुर्खियां बटोर रही हैं। जहां भी सत्ता की चाबी जिस दल के पास आती है वह तो ई.वी.एम. की भूमिका पर चुप्पी साध लेता है यानि ई.वी.एम. से निकले जनादेश को सहर्ष स्वीकार कर लेता है और अगर ऐसा नहीं होता तो निशाना ई.वी.एम. बन जाती हैं और ठीकरा ‘बेचारी’ ई.वी.एम. पर फूटता है। अब अगर महाराष्ट्र व झारखंड विधानसभा के चुनावों की ही बात करें तो महाराष्ट्र में भाजपा नीत महायुति गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला है जबकि कांग्रेस व अन्य दलों पर आधारित महा विकास अघाड़ी गठजोड़ का प्रदर्शन बेहद ही निराशाजनक रहा है।
ऐसे में एक बार फिर से ‘बेचारी’ ई.वी.एम. राजनीतिक दलों का कोपभाजन बन गई हैं। लेकिन झारखंड में विपक्षी दलों पर आधारित इंडिया गठजोड़ को बहुमत मिला है तो इस जीत पर सब खामोश हैं जबकि सत्ता की पूरी आस लगाकर बैठी भाजपा ने पराजय मिलने पर भी इस जनादेश को सहर्ष स्वीकार किया है। दोनों ही राज्यों में एक जैसी ई.वी.एम. का उपयोग हुआ और एक जैसी प्रणाली ही अपनाई गई तो फिर जब मतदाता की इच्छा के अनुसार जनादेश अलग-अलग है तो ‘बेचारी’ ई.वी.एम. की यह आलोचना क्यों? राजनीतिक दलों को अपनी लचर कारगुजारी के बल पर चुनावों में मतदाता द्वारा ठुकराए जाने के बाद मिलने वाली पराजय के लिए हार का ठीकरा ‘बेचारी’ ई.वी.एम. या भारत निर्वाचन आयोग पर फोडऩा कैसे तर्कसंगत माना जा सकता है। राजनीतिक दलों द्वारा उठाई आपत्तियों व शंकाओं का निराकरण चुनाव आयोग एक नहीं अनेकों बार सार्वजनिक तौर पर कर चुका है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम के बाद भी ‘बेचारी’ ई.वी.एम. आलोचना का शिकार बनी और तब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कांग्रेस की शंकाओं को सिरे से खारिज करते हुए एकदम निर्मूल व मनघड़ंत बताया लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी विशेष रूप से अपनी लगातार गिरती हुई साख को बचाने के लिए ई.वी.एम. पर निशाना साध रही है।
यह कितना हैरानीजनक लगता है कि हिमाचल प्रदेश में इसी ई.वी.एम. से निकले जनादेश के बल पर ही आज वहां सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार सत्ता सुख भोग रही है और वहां भी इस ‘बेचारी’ ई.वी.एम. पर उंगली उठाई जा रही है यह दिग्भ्रमित कांग्रेस नेता क्यों नहीं सोचते कि ऐसे हास्यास्पद बयान तो आम आदमी के गले भी नहीं उतरेंगे। अब सवाल उठता है कि अगर ई.वी.एम. को हैक किया जा सकता है या ई.वी.एम. पर डाला गया वोट एक विशेष पार्टी के पक्ष में जाता है तो फिर भाजपा के उम्मीदवारों को इतने वोट क्यों नहीं मिल सके कि वे जीत का स्वाद चखने से वंचित रह गए। ऐसा ही जनादेश उत्तर प्रदेश में सामने आया है जहां कि कुल 9 विधानसभा उप चुनावों में से 7 पर भाजपा और 2 पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीते हैं। केरल के वायनाड लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने तो 4 लाख से भी अधिक मतों से धमाकेदार जीत दर्ज करते हुए लोकसभा में प्रवेश किया है। यानी कहा जा सकता है कि राजनीतिक दल ई.वी.एम. को लेकर अपनी सुविधा के मुताबिक रुख बनाते हैं और ‘चित्त भी मेरी पट भी मेरी’ की नीति पर चलते हुए अपनी हार के कारणों की विवेचना किए बिना समाज में अपनी हो रही हास्यास्पद स्थिति से बचने का प्रयास करते हैं।
कांग्रेस पार्टी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के इस रवैये से समाज के बहुत कम हिस्से में ई.वी.एम. को लेकर एक विपरीत धारणा तो बन सकती है लेकिन देश की बहुसंख्या राजनीतिक दलों की ऐसी बातों पर भरोसा करने को कतई तैयार नहीं है।
विभिन्न राजनीतिक दलों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा ई.वी.एम. की वैधता को चुनौती देने वाली अनेक याचिकाओं पर विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालय पहले भी अपना सकारात्मक निर्णय सुना चुके हैं। न्यायालय का स्पष्ट मत है कि चुनाव में ‘बैलेट पेपर’ यानी मत पत्र की वापसी नहीं हो सकती है। ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों को न्यायालय के इस महत्वपूर्ण और दिशा परक निर्णय को स्वीकारते हुए ई.वी.एम. पर आरोप लगाने के इस लम्बे अध्याय को अब दूरदर्शिता दिखाते हुए हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर देना चाहिए।-शिशु शर्मा ‘शांतल’ (भारतीय सूचना सेवा के पूर्व अधिकारी)