आखिर कितने दिनों तक टिकी रहेगी ट्रूडो सरकार

Edited By ,Updated: 09 Sep, 2024 05:46 AM

how long will the trudeau government last

अमरीका के प्रैजीडैंशियल सिस्टम की तरह कनाडा के अंदर फैडरल और राज्य सरकारों का कार्यकाल संसदीय सिस्टम के अंतर्गत संवैधानिक तौर पर 4 वर्ष के लिए तय हुआ है। 20 सितम्बर 2021 में हुए मध्यवर्ती   चुनाव में कनाडियन हाऊस कामन्स में किसी भी राजनीतिक दल को...

अमरीका के प्रैजीडैंशियल सिस्टम की तरह कनाडा के अंदर फैडरल और राज्य सरकारों का कार्यकाल संसदीय सिस्टम के अंतर्गत संवैधानिक तौर पर 4 वर्ष के लिए तय हुआ है। 20 सितम्बर 2021 में हुए मध्यवर्ती   चुनाव में कनाडियन हाऊस कामन्स में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। 19 अक्तूबर 2015 में कनाडा में हुए आम चुनावों में पहली बार जस्टिन ट्रूडो देश के 23वें प्रधानमंत्री बने। इस पद के लिए उन्होंने 4 नवम्बर 2015 को शपथ ग्रहण की। अल्पमत की सरकारें चलाना एक सिरदर्दी होती है। इसलिए प्रधानमंत्री ट्रूडो ने बहुमत प्राप्त करने की आस में देश में 20 सितम्बर 2021 को मध्यवर्ती चुनावों की घोषणा कर दी मगर बात फिर भी न बनी। विपक्षी दल भी कोई प्रगति कर नहीं सका। इन चुनावों में लिबरल पार्टी को 160, कंजर्वेटिव को 119, ब्लाक क्यूबैक को 32, एन.डी.पी. को 25 और ग्रीन पार्टी को 2 सीटें हासिल हुईं। 

कनाडाई नागरिकों की ओर से हंग पार्लियामैंट चुनने के बावजूद देश में स्थायी, मजबूत विकासमयी, पारदर्शी और विशेषकर मध्यमवर्ग तथा श्रमिकों के कल्याण के लिए सरकार देने के लिए जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी और स. जगमीत सिंह के नेतृत्व में एन.डी.पी. के दरम्यिान एक विश्वास संधि मार्च 2022 में हुई। यह एक मिलीजुली सरकार नहीं थी क्योंकि प्रधानमंत्री ट्रूडो की सरकार में कोई एन.डी.पी. सांसद कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल न हुआ। अक्सर गठबंधन सरकारें चलाना कोई आसान कार्य नहीं होता। भारत में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और डा. मनमोहन सिंह ने ऐसी सरकारें सफलतापूर्वक चलाकर वैश्विक राजनीति में मिसाल कायम की। कनाडा के इतिहास में भी जस्टिन ट्रूडो ने सबसे अधिक समय कम गिनती वाली सरकार चलाकर एक मील पत्थर स्थापित करने में सफलता हासिल की मगर 4 सितम्बर 2024 को अचानक एन.डी.पी. प्रमुख जगमीत सिंह ने ट्रूडो के साथ अपनी संधि तोड़ ली है। इस बात पर पूरा देश हैरान रह गया। 

ट्रूडो सरकार ने तो ऐसा महसूस किया जैसे उन पर बिजली गिर गई हो। अच्छी-भली सरकार अचानक राजनीतिक संकट का शिकार हो गई। जगमीत सिंह ने कहा कि ट्रूडो सरकार देश के अंदर मध्यमवर्ग जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहा है, से पल्ला झाड़ लिया। लिबरल पार्टी आज बेहद कमजोर पड़ गई है। वह निजी और राजनीतिक स्वार्थों तक ही सीमित हो चुकी है। वह लोगों के हितों और हकों की ङ्क्षचता करने की बजाय कार्पोरेट घरानों का समर्थन कर रही है। एन.डी.पी. की ओर से ट्रूडो के साथ समझौता तोडऩे के साथ ट्रूडो सरकार का डगमगाना शुरू हो चुका है। कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पोलिवर जल्दबाजी में हैं कि जल्द सरकार टूटे और देश में आम चुनाव घोषित हों। उन्होंने जगमीत सिंह के संधि तोडऩे के कदम को राजनीतिक स्टंट करार दिया है। इस संधि तोडऩे के फैसले के बाद नानो संस्था की ओर से जो सर्वेक्षण करवाए गए उसमें 54 प्रतिशत लोगों ने इस संधि के प्रति विश्वास प्रकट किया। लोग ट्रूडो सरकार की ओर से सितम्बर 2025 तक अपना कार्यकाल पूरा किए जाने के हक में हैं। 

42 प्रतिशत लोगों ने इस संधि के प्रति विरोध दर्ज करवाया। 4 प्रतिशत लोग निष्पक्ष दिखाई दिए। इस सर्वेक्षण के अनुसार संधि के पक्ष में 61 प्रतिशत महिलाएं और 48 प्रतिशत पुरुष आगे आए हैं। इस संधि के टूटने के कारण लिबरल पार्टी पर भारी बोझ पड़ गया है। चुनावी रण में कूदने से पहले उन्हें अपना नेता फिर से निर्धारित करना पड़ेगा। फिर चाहे वह जस्टिन ट्रूडो हो या फिर कोई हो। दोनों पार्टियों के बीच संधि के अंतर्गत मध्यमवर्ग, श्रमिकों और स्थानीय मूल के लोगों के हितों और हकों की कानूनी तौर पर रक्षा और पूर्ति सुनिश्चित बनाना था। घरों का संकट दूर करने और बच्चों की देखभाल जैसे बड़े कदम उठाए गए हैं। मगर स्वास्थ्य विभाग की सबसे बड़ी कमी यह है कि परिवारों को डाक्टर अलॉट करने के लिए वर्षों की देरी लगती है, वहीं बुजुर्गों, अपाहिजों और पीड़ितों को एमरजैंसी में 8 से 10 घंटे का इंतजार करना पड़ता है। पर्यावरण के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। श्रमिकों के संबंध में काफी प्रगति हुई है। 10 दिनों की पेड सिक लीव एक बड़ी उपलब्धि है। 

ऐसा माना जाता है कि लिबरल और न्यू डैमोक्रेट को लाभ कम और नुकसान ज्यादा हुआ है। प्रवासी छात्रों की शिक्षा सिर्फ व्यापार बन कर रह गया है। गैर-कानूनी कालेजों और संस्थाओं द्वारा शोषण किया जा रहा है। तकनीकी, कुशल और स्तरीय शिक्षा का दिवाला निकल कर रह गया है। सरकार के पास कनाडा के विकास, जनता के हर वर्ग के लिए अच्छा भविष्य, बढिय़ा रोजगार, सस्ते घर, बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए  कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। जिस तरह पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद दोनों ही पार्टियां राजनीतिक हाशिए पर आ चुकी हैं, वैसे ही यदि कनाडा में लिबरल और एन.डी.पी. चुनावी गठबंधन नहीं होगा तो लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। 16 सितम्बर 2024 को कनाडियन पार्लियामैंट का दिलचस्प सत्र शुरू होने वाला है। सबकी निगाहें इस पर टिकी हुई हैं। राजनीतिक प्रबंधक और प्रधानमंत्री कितनी देर अविश्वास प्रस्ताव टाल कर सरकार को स्थापित कर सकेंगे यह तो समय ही बताएगा।-दरबारा सिंह काहलों
 

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