हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा कितना टिकाऊ?

Edited By ,Updated: 02 Nov, 2024 05:40 AM

how sustainable is the slogan of hindi chinese brothers

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 2020 तक घनिष्ठ संबंध रहे। उनकी दोस्ती का उदाहरण 2014 से 2019 के बीच उनकी आमने-सामने की 18 मुलाकातों से मिलता है, जिसमें वुहान और मामल्लापुरम भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 2020 तक घनिष्ठ संबंध रहे। उनकी दोस्ती का उदाहरण 2014 से 2019 के बीच उनकी आमने-सामने की 18 मुलाकातों से मिलता है, जिसमें वुहान और मामल्लापुरम भी शामिल हैं।
हालांकि, 2020 में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सीमा पर झड़पों के बाद दोनों देशों के बीच संबंध खराब हो गए। कथित तौर पर चीन ने 1000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, एक ऐसा दावा, जिसका नई दिल्ली ने जोरदार खंडन किया है। इन घातक झड़पों के कारण क्षेत्र में एक बड़ा भू-राजनीतिक बदलाव आया, जिससे उनकी विवादित हिमालयी सीमा पर सैन्य तैनाती तेज हो गई और द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हुए। इसके परिणामस्वरूप चीन ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता बढ़ा दी और भारत ने चीनी निवेश पर प्रतिबंध कड़े कर दिए और साथ ही अमरीका तथा उसके सहयोगियों के साथ अपने रक्षा गठबंधनों को बढ़ाया।

हाल ही में मोदी ने कजान में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान 2020 से पहले की स्थिति पर लौटने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 2020 के बाद से दोनों नेताओं के बीच यह पहली मुलाकात थी, जिन्होंने स्थिर, पूर्वानुमानित और सौहार्दपूर्ण संबंधों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्धता जताई। तनाव में यह कमी आर्थिक सहयोग की दिशा में प्राथमिकताओं में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, जो भारत की अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए चीनी प्रौद्योगिकी और निवेश की आवश्यकता और आर्थिक मंदी और व्यापार बाधाओं के बीच बाजार तक पहुंच की चीन की आवश्यकता से प्रेरित है। यह विकास क्षेत्रीय सैन्य संतुलन को भी प्रभावित करता है और भारत तथा चीन के बीच पर्याप्त आॢथक एकीकरण की संभावना को खोलता है। ब्लूमबर्ग न्यूज के अनुसार, भारत ने कार्पोरेट दबाव के चलते सुलह का विकल्प चुना, यह स्वीकार करते हुए कि चीन के प्रति उसका कठोर दृष्टिकोण भारतीय व्यवसायों को नुकसान पहुंचा रहा है और सैमीकंडक्टर सहित उच्च-स्तरीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के मोदी के उद्देश्य में बाधा डाल रहा है। 

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन ने अपनी विनिर्माण आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए चीनी कंपनियों को शामिल करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत चीन की आपूर्ति शृंखला में शामिल हो सकता है या अपने वैश्विक निर्यात को बढ़ाने के लिए चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) को प्रोत्साहित कर सकता है। साथ ही, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने चीनी निवेशों के प्रति अधिक उदार रुख अपनाने की सिफारिश की, जो तत्काल सुरक्षा खतरे पैदा नहीं करते। इस युद्धविराम समझौते का उद्देश्य 2020 से पहले की सीमा स्थिति को बहाल करना और विश्वास का निर्माण करना है, और आगे की वापसी उस विश्वास पर निर्भर करेगी, जबकि क्षेत्र में युद्धविराम आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति में संभावित बदलाव का संकेत देता है, जो संशोधित गश्ती अधिकारों के माध्यम से सीमा गतिरोध को हल करने के समझौते द्वारा चिह्नित है। 

बीजिंग की विश्वसनीयता के बारे में संदेह बना हुआ है। विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर और भारत के सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने समझौते के तत्काल और भविष्य के निहितार्थों पर अलग-अलग विचार व्यक्त किए। जयशंकर ने पूरी तरह से सैन्य वापसी पर प्रकाश डाला, जबकि द्विवेदी ने आगे के कदमों के अग्रदूत के रूप में विश्वास-निर्माण पर जोर दिया। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर चीन की 2020 की घुसपैठ और गलवान झड़पों के बाद से, महत्वपूर्ण ङ्क्षबदुओं पर वापसी के बावजूद अविश्वास बरकरार है। हालांकि व्यापार ठोस बना हुआ है, लेकिन निवेश और यात्रा जैसे अन्य क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, और यह अनिश्चित है कि क्या ये संबंध पूरी तरह से ठीक हो जाएंगे। इन सकारात्मक घटनाक्रमों के बावजूद, सीमा समझौता अंतॢनहित क्षेत्रीय विवादों को हल नहीं करता। भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सीमा समाधान में विश्वास बनाने के लिए अगले कदम पारदर्शी तरीके से उठाए जाएं। हालांकि चीन का दावा है कि उसके सैनिक अभी भी उसके क्षेत्र मेंं हैं, लेकिन भारत में कई लोगों का मानना है कि चीनी सेना ने ज्यादा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है और पूर्वी लद्दाख में भारतीय गश्त और स्थानीय पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया है। 

दोनों देशों को इस बात पर भी पुर्नविचार करना चाहिए कि क्या मौजूदा 1993 और 2013 के सीमा समझौते पर्याप्त हैं या सीमा तनाव को प्रबंधित करने के लिए एक नए ढांचे की आवश्यकता है। हाल ही में सीमा समाधान और नेतृत्व बैठक एक आशाजनक कदम है। दोनों नेताओं के पास शांति बनाए रखने के लिए आकर्षक कारण हैं। प्रधानमंत्री मोदी का लक्ष्य एक संतुलित विदेश नीति का प्रदर्शन करना और सैन्य तैयारियों के बारे में घरेलू चिंताओं को दूर करना है, जबकि राष्ट्रपति शी आर्थिक तनाव के बीच भारत के बाजार तक पहुंच चाहते हैं। यह उभरता हुआ परिदृश्य भविष्य की कूटनीति के लिए एक सतर्क लेकिन आशावादी दृष्टिकोण का सुझाव देता है। हालांकि, चीन के पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, भारत को सतर्क रहना चाहिए। बीजिंग के इरादों पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए और इस बुनियादी सबक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ङ्क्षहदी-चीनी भाई-भाई का नारा कितना टिकाऊ है यह तो समय ही बताएगा?-हरि जयसिंह
 

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