Edited By ,Updated: 04 Jan, 2025 05:44 AM
आम आदमी पार्टी ने घोषणा की है कि यदि वह दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीत गई तो मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हजार रुपए प्रतिमाह की सम्मान राशि प्रदान की जाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी की इस घोषणा को चुनावी नाटक...
आम आदमी पार्टी ने घोषणा की है कि यदि वह दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीत गई तो मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को 18 हजार रुपए प्रतिमाह की सम्मान राशि प्रदान की जाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी की इस घोषणा को चुनावी नाटक बताया है। अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि अरविंद केजरीवाल को पुजारियों और ग्रंथियों की सुध चुनाव के समय ही क्यों आई है? अब तक अरविंद केजरीवाल कहां थे? अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने जैसे ‘महिला सम्मान’ और ‘संजीवनी योजना’ में रोड़े अटकाने की कोशिश की, वैसे इस योजना में विघ्न डालने की कोशिश न करे, नहीं तो वह पाप की भागीदार होगी। यानी अरविंद केजरीवाल पाप-पुण्य का सवाल बताकर इस मुद्दे पर भी भावनात्मक रूप से लोगों को जोडऩे की कोशिश कर रहे हैं। जनता भी यह अच्छी तरह जानती है कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में विधानसभा चुनाव को देखकर ही यह घोषणा की है। निश्चित रूप से केजरीवाल की राजनीति ने दिल्ली में कमजोर तबके के लोगों को राहत दी है। उन्होंने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भी बेहतर काम किया है लेकिन कभी-कभी लोकलुभावन राजनीति दीर्घकालिक उद्देश्यों पर भी असर डालती है।
गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने ‘महिला सम्मान योजना’ की घोषणा की थी। इस योजना के अन्तर्गत महिलाओं को हर महीने 2100 रुपए दिए जाने का वादा किया गया था। इसी तरह केजरीवाल ने ‘संजीवनी योजना’ की घोषणा भी की थी। इस योजना के अन्तर्गत दिल्ली के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में 60 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का मुफ्त उपचार किए जाने का दावा किया गया था। हालांकि दिल्ली के महिला एवं बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने इन योजनाओं से पल्ला झाड़ लिया। इसके साथ ही दिल्ली के उप-राज्यपाल ने इन योजनाओं के नाम पर महिलाओं से निजी जानकारी लेने वाले व्यक्तियों के खिलाफ जांच के आदेश भी दे दिए।
भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल की पुजारियों और ग्रथियों की वेतन देने वाली चुनावी घोषणा पर कहा है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति हिन्दू विरोधी रही है। अगर वे हिन्दू विरोधी न होते तो मंदिर और गुरुद्वारों के बाहर शराब के ठेके न खोलते। अरविंद केजरीवाल ने मंदिरों और गुरुद्वारों के बाहर शराब के ठेके खोले। अरविंद केजरीवाल लोक-लुभावन घोषणाएं करके सबको चौंकाते रहे हैं। उन्होंने पहले यह घोषणा की थी कि मौलानाओं को 18,000 रुपए मिलेंगे। कुछ समय तक तो मौलानाओं को यह धनराशि मिली लेकिन अब काफी समय से दिल्ली में मौलानाओं को यह धनराशि नहीं मिल रही है। अब केजरीवाल की नजर हिन्दू और सिख मतदाताओं पर है। दिल्ली और पंजाब में सिख काफी संख्या में हैं। अरविंद केजरीवाल ने सोचा होगा कि अभी तो दिल्ली में विधानसभा चुनाव है लेकिन लगे हाथों पंजाब के सिखों को भी खुश कर दिया जाए।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका ने अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा पर संदेह जाहिर करते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल चुनावी वादें करते रहते हैं लेकिन वह अपनी घोषणा पूरी नहीं करते हैं। पिछले दिनों कुछ मौलवियों ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ पिछले कुछ समय से मौलवियों को वेतन न मिलने के मुद्दे को लेकर प्रदर्शन भी किया था। सवाल उठ रहे हैं कि जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार मौलवियों को ही वेतन नहीं दे पा रही है तो वह पुजारियों और ग्रंथियों को वेतन कैसे दे पाएगी? केजरीवाल ने पुजारियों और ग्रंथियों के लिए तो घोषणा कर दी लेकिन पादरियों का क्या होगा? भविष्य में यदि पादरियों ने भी वेतन की मांग कर दी तो क्या होगा? इसी तरह से अन्य धर्मों के लोगों ने भी ऐसी मांग कर दी तो क्या होगा?
अरविंद केजरीवाल की इस घोषणा पर ये सवाल भी उठ रहे हैं कि दिल्ली में पिछले 10 सालों से आम आदमी पार्टी की सरकार है तो क्या पिछले 10 सालों से दिल्ली में पुजारी और ग्रंथी नहीं थे? अरविंद केजरीवाल को पुजारियों और ग्रंथियों की सुध अभी क्यों आई है? इस दौर की राजनीति का दुर्भाग्य यही है कि हमारे राजनेता चुनावों को ध्यान में रख कर कई तरह की घोषणाएं कर देते हैं लेकिन बाद में इन घोषणाओं को पूरा करना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसा अनेक बार हुआ कि जब चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणाएं कर दी गईं लेकिन बाद में वे घोषणाएं पूरी नहीं हो पाईं।
लगभग सभी सरकारें चुनावी घोषणाएं करने पर तो पूरा ध्यान देती हैं लेकिन बाद में जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। क्या कोई भी सरकार रोजगार देने और नए रोजगार पैदा करने पर इतना ध्यान देती है जितना मुफ्त वाली घोषणाओं पर देती है। मुफ्त वाली योजनाएं ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चल सकतीं। इसके साथ ही ऐसी योजनाओं से सरकारी खजाने पर भी अनावश्यक बोझ पड़ता है। लेकिन घोषणाएं पूरी हों या न हों सबसे पहले तो चुनावी फायदा लेना है। हमारे देश की राजनीति में चुनावी फायदा लेने की होड़ लगातार बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे यह होड़ बढ़ेगी, वैसे-वैसे हमारे देश में भरोसे की राजनीति खत्म होती जाएगी।-रोहित कौशिक