Edited By ,Updated: 08 Jul, 2023 05:29 AM
मौसम के बदलते तेवर से प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, पर्यावरणीय गिरावट और जैव विविधता की हानि कृषि को तो तबाह कर ही रही है, अब यह इंसानों को भी प्रभावित कर रही है।
मौसम के बदलते तेवर से प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, पर्यावरणीय गिरावट और जैव विविधता की हानि कृषि को तो तबाह कर ही रही है, अब यह इंसानों को भी प्रभावित कर रही है। इसका सीधा असर मानव मस्तिष्क पर पड़ रहा है। इस तरह का प्राकृतिक परिवर्तन खतरनाक बीमारियों को जन्म दे सकता है। इससे सभी लोग प्रभावित हो रहे हैं। एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से मनुष्य का दिमाग सिकुड़ता जा रहा है। कैलिफोर्निया के नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के साइंटिस्ट जैफ मर्गन स्टिबेल ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन और मानव मस्तिष्क के आकार में गिरावट के बीच एक आश्चर्यजनक संबंध का पता चला है।
साइंस अलर्ट के अनुसार, स्टिबेल ने 50,000 साल की अवधि के जलवायु रिकार्ड और मानव अवशेषों का विश्लेषण किया। इसमें बताया गया कि पर्यावरणीय तनाव होने पर मनुष्य कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। एक पेपर में प्रकाशित निष्कर्ष मानव मस्तिष्क के आकार और उसके बिहेवियर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रेखांकित करता है। स्टिबेल ने 298 इंसानों के दिमाग की स्टडी की$ ये पुराने इंसानों के जीवाश्म दिमाग थे। उन्होंने अपनी स्टडी में ग्लोबल तापमान, आर्द्रता और वर्षा के प्राकृतिक रिकार्ड को भी शामिल किया।
इस अध्ययन से यह नतीजा निकला कि ठंडी जलवायु की तुलना में गर्म जलवायु की अवधि के दौरान मस्तिष्क के औसत आकार में उल्लेखनीय कमी देखी गई। मस्तिष्क के आकार के सिकुडऩे पर की गई उनकी पहली रिसर्चों ने इस नई स्टडी के लिए स्टिबेल को प्रेरित किया। एक इंटरव्यू में स्टिबेल ने समय के साथ मानव मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को समझने की आवश्यकता पर काफी जोर दिया। उन्होंने इस विषय पर रिसर्च की कमी पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि पिछले कुछ लाखों वर्षों में सभी प्रजातियों में मस्तिष्क का विकास हुआ है, लेकिन हम अन्य मैक्रोइवल्यूशनरी ट्रैंड के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं।
जेफ मर्गन स्टिबेल ने 10 प्रकाशित स्रोतों से खोपड़ी के आकार के बारे में जानकारी इकट्ठा की। इसके परिणामस्वरूप 50,000 सालों तक की 298 मानव हड्डियों से 373 माप लिए गए। मस्तिष्क के आकार का सटीक अनुमान लगाने के लिए, उन्होंने शरीर के आकार के अनुमानों को शामिल किया। इसी के साथ उन्होंने भौगोलिक क्षेत्र और जैंडर की भी जांच की। रिसर्च में कम त्रुटि हो इसके लिए उन्होंने जीवाश्मों को उनकी उम्र के आधार पर अलग-अलग चार समूहों में वर्गीकृत किया।
इसके अतिरिक्त उन्होंने मस्तिष्क के आकार की तुलना चार जलवायु रिकार्डों से की। इसमें यूरोपियन प्रोजैक्ट फार आइस कोरिंग इन अंटार्कटिका (ई.पी.आई.सी.ए.) डोम सी का डाटा भी शामिल था, जो 800,000 वर्षों से अधिक का सटीक तापमान माप उपलब्ध कराता है। पिछले 50,000 वर्षों में, धरती ने विभिन्न जलवायु उतार-चढ़ाव का अनुभव किया है, जिसमें लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम भी शामिल है। यह एक एेसी अवधि है जिसमें तापमान काफी अधिक समय तक ठंडा रहता है। ये सिर्फ आखिरी प्लीस्टोसीन तक था। इसके बाद, होलोसीन काल में औसत तापमान में वृद्धि देखी गई, जो आज तक जारी है।
हमारी धरती पर लगभग हर बच्चा पहले से ही जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। प्राकृतिक आपदाएं, पर्यावरणीय गिरावट और जैव विविधता की हानि कृषि को तबाह कर सकती है, जिससे बच्चे पौष्टिक भोजन और सुरक्षित पानी से दूर हो सकते हैं। वे खतरनाक वातावरण और बीमारी के प्रकोप को जन्म दे सकते हैं, और बच्चों को जीवित रहने और पनपने के लिए आवश्यक सुरक्षित आश्रय, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर सकते हैं। चूंकि जलवायु संकट से निपटने के लिए मानवीय कार्रवाई कम पड़ रही है, इसका खामियाजा बच्चों और युवाओं को भुगतना पड़ रहा है।
जलवायु संकट बाल अधिकार का भी संकट है। यह बच्चों के स्वास्थ्य और खुश रहने की उनकी क्षमता को छीन लेता है और अंतत: बीमारी, रोग और यहां तक कि मृत्यु का कारण बन सकता है। एक रहने योग्य ग्रह को बनाए रखने के प्रयासों में न केवल युवा लोगों की विशिष्ट आवश्यकताओं और कमजोरियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए उन्हें समाधानों में इन्हें भी शामिल करना चाहिए। बच्चों और युवाआें के पास सुरक्षित, अधिक टिकाऊ समाज के लिए महत्वपूर्ण कौशल, अनुभव और विचार हैं। वे केवल हमारी निष्क्रियता के उत्तराधिकारी नहीं हैं-वे आज इसके परिणाम भुगत रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के असर के मामले में साल 2022 अभूतपूर्व रहा। इसमें कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने नए रिकार्ड बनाए जो इतिहास में कभी नहीं बने थे। दुनिया में सूखे, बाढ़, तूफान, जंगलों में आग, ग्रीष्म लहर और बर्फीले तूफानों के ऐसे प्रकोप देखने को मिले जो इससे पहले कभी नहीं देखे गए थे। इनसे एशिया, यूरोप, अमरीका, आदि सभी महाद्वीप अलग-अलग तरह से प्रभावित हुए। इस साल जलवायु परिवर्तन के कई अभूतपूर्व दुष्प्रभाव देखने को मिले हैं और जैसा कि जलवायु वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे थे, इस बार उम्मीद से कहीं ज्यादा कहर ढाने वाले प्रकोप देखने को मिले हैं। इस साल दुनिया में चरम सूखे, प्रलयंकारी बाढ़, और ज्यादा घातक जंगलों की आग, चरम तबाही मचाने वाले तूफान देखने को मिले हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने सरकारों से निवेदन किया था कि अगर नैट जीरो के लक्ष्यों के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं किए गए तो अगले साल भी जलवायु के कारण होने वाले इस तरह की चरम घटनाएं और खतरनाक, तीव्र और प्रचंड होने की उम्मीद से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
उस साल सबसे अनोखी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव की अगर कोई घटना हुई थी तो वह पाकिस्तान में आई प्रलयंकारी बाढ़ थी। सिंध प्रांत सहित देश का बड़ा हिस्सा इस अनापेक्षित बाढ़ की चपेट में आ गया था, जिसकी किसी को जरा भी उम्मीद नहीं थी। पाकिस्तान में मानसून के प्रभाव से यह बाढ़ आई थी क्योंकि यह इलाका कभी भी बाढ़ की चपेट में नहीं आता है। इसमें 1200 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 3000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। देश का एक तिहाई हिस्सा पानी में डूब गया था। इसी साल अमरीका में चौथी श्रेणी का हरिकेन आया था जिससे क्यूबा और अमरीका में भारी नुक्सान देखने को मिला। इसकी वजह से 50 हजार लोगों को अपने घरों को छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा। यह हरिकेन मैक्सिको की खाड़ी तक पहुंचने के बाद और ज्यादा तेज हो गया और इसकी हवा की गति 200 किलोमीटर प्रतिघंटा हो गई थी। इसके बाद तूफान ने अमरीका के फ्लोरिडा को प्रभावित किया। इसमें 50 हजार लोग प्रभावित हुए।-निरंकार सिंह