जीवन की अंतिम यात्रा के लिए तैयार हूं

Edited By ,Updated: 12 Sep, 2024 05:38 AM

i am ready for the last journey of my life

लीक से हटकर राजनीति, पार्टी लाइन से हटकर विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात रखने का माद्दा व दूरदर्शी सोच के कारण देश की राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले शांता कुमार 12 सितम्बर को जीवन के 90 वर्ष पूर्ण करने जा रहे हैं। इस पड़ाव पर शांता कुमार ने पंजाब...

लीक से हटकर राजनीति, पार्टी लाइन से हटकर विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात रखने का माद्दा व दूरदर्शी सोच के कारण देश की राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले शांता कुमार 12 सितम्बर को जीवन के 90 वर्ष पूर्ण करने जा रहे हैं। इस पड़ाव पर शांता कुमार ने पंजाब केसरी से विशेष बातचीत की है।

प. जीवन के 90 वर्ष पूरे करने पर किस तरह का अनुभव कर रहे हैं?
उत्तर :
जीवन के 90 वर्ष पूर्ण करने पर मैं बहुत प्रसन्न हूं। प्रभु, मित्रों, परिवार व पार्टी का आभार व्यक्त करता हूं। मैंने शानदार जीवन जिया, 60 वर्ष सक्रिय राजनीति में बिताए। देश व प्रदेश की सेवा का सौभाग्य मिला। सौभाग्यशाली हूं कि लोकतंत्र की पहली सीढ़ी ग्राम पंचायत गढ़ जमूला में पंच बनने से आरंभ हुई तथा बी.डी.सी., जिला परिषद से होते हुए विधानसभा पहुंचा, 2 बार मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री बना। लोकसभा तथा राज्यसभा का प्रतिनिधित्व किया। विश्व की सबसे बड़ी 190 देशों की संसद यूनाइटेड नेशन में भी देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। 

प. 2 बार मुख्यमंत्री बने, क्या अनुभव रहा?
उत्तर :
1970 में मुख्यमंत्री बना मगर बहुत कम समय मिला परंतु ऐतिहासिक कार्य किया। दोबारा मुख्यमंत्री बना तो पालमपुर में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करवाने का विचार आया तथा विवेकानंद ट्रस्ट का गठन किया व जनता का सहयोग मांगा। कुल 23 करोड़ रुपए एकत्रित हुए जिनमें से 7 करोड़ हिमाचल के लोगों ने दिए। आज पालमपुर में 100 करोड़ रुपए की 4 संस्थाएं विवेकानंद ट्रस्ट के अंतर्गत सेवाएं प्रदान कर रही हैं।   जीवन के अंतिम दिनों तक स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में सेवा कार्य करता रहूंगा।

प. प्रारंभिक जीवन किस तरह का रहा?
उत्तर :
प्रारंभिक जीवन संकट से गुजरा। 17 वर्ष की आयु में 10वीं की और घर परिवार छोड़कर संघ का प्रचारक बन गया। 19 वर्ष की आयु में डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कश्मीर आंदोलन में कूद पड़ा तथा 8 माह हिसार जेल में रहा। इसके पश्चात राजनीति में चला तथा चलता रहा, न रुका न थका। अपनी शर्तों पर तथा सिद्धांत की राजनीति की व आवश्यकता पड़ी तो सत्ता भी छोड़ दी परंतु सिद्धांतों पर अडिग रहा। 3 बार जेल में रहा तथा जीवन के अढ़ाई वर्ष जेल में बीते।

प. वर्तमान राजनीति को किस तरह से देखते हैं?
उत्तर :
एक बात का बहुत दुख है कि राजनीति का स्तर दिन-प्रतिदिन गिर रहा है। 1952-53 में जब भारतीय जनसंघ अस्तित्व में आया तो पार्टी के पास कुछ नहीं था। पुलिस की लाठियां, चुनाव में जमानत जब्त और जेल थी परंतु हमारे पास समॢपत कार्यकत्र्ता, देशभक्ति और ईमानदारी की राजनीति जैसी 3 बातें थीं। इन 3 बातों के कारण उस समय विश्व की सबसे छोटी पार्टी को लोगों ने आज दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया। देश की राजनीति के गिरते स्तर में कभी-कभी हमारी पार्टी भी सिद्धांतों से समझौता करती है, उससे पीड़ा होती है। जिस ईमानदारी की राजनीति से हम यहां पहुंचे हमारी पार्टी को राजनीति का वह स्तर नहीं छोडऩा चाहिए।

प. क्या पार्टी के स्तर में भी गिरावट आई है?
उत्तर :
आज की राजनीति में  बाकी दलों से हमारी पार्टी कई बातों में बढिय़ा है परंतु धीरे-धीरे हमारी पार्टी  सिद्धांतों से समझौता कर रही है, नेताओं का स्तर भी धीरे-धीरे गिर रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारी मातृ संस्था रही है। कई बार हमारी पार्टी को संभालने की कोशिश की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व पार्टी के सभी नेताओं से प्रार्थना है कि पार्टी का वही स्तर बनाए रखें, जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय व अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने बनाया था, तभी भारत, भारत रहेगा।

प. जीवन में धर्मपत्नी का सहयोग किस प्रकार से मिला?
उत्तर :
जीवन के हर मोड़ पर धर्मपत्नी चट्टान की तरह मेरे साथ खड़ी रही। आपातकाल के दौरान 19 माह का कारावास काट रहा था तो बेटे के बीमार होने की सूचना मिली। 7 दिन के पैरोल पर घर आया, छठा दिन था तभी एक मित्र आए तथा कांग्रेस के तत्कालीन प्रधान के बयान के बारे में बताया जिसमें उन्होंने कहा कि जेल से किसी को नहीं छोड़ सकते तथा समुद्र में फैंकने की बात कही थी। मित्र ने कहा कि जेल के दरवाजे कभी नहीं खुलेंगे, इन बच्चों का क्या होगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के एक बड़े नेता उनके मित्र हैं । 3 और को जेल से छुड़ा चुका हूं, मेरे कहने पर 2 शब्द लिख दें तो जेल से छुड़ा दूंगा। मैं कुछ कहता इससे पहले  मेरी धर्मपत्नी संतोष शैलजा ने गुस्से में कहा, ‘‘क्या कह रहे हो, यह कुछ नहीं लिखेंगे, यह जेल में रहेंगे तथा परिवार का पालन-पोषण मैं करूंगी।’’ संतोष शैलजा मेरे जीवन में हर पल मेरे साथ खड़ी रही।

प. जीवन में किसी से कोई गिला-शिकवा है?
उत्तर :
मैं जीवन के अंतिम मोड़ पर हूं, पता नहीं कौन-सी मुलाकात आखिरी मुलाकात हो जाए। किसी से किसी प्रकार का गिला नहीं, मुझे प्रभु ने सब कुछ दिया। अब जीवन की अंतिम यात्रा के लिए तैयार हूं, सच कहता हूं जब जाऊंगा हंसते-मुस्कुराते जाऊंगा क्योंकि मुझे प्रभु कृपा से सब कुछ प्राप्त हुआ। -शांता कुमार (पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. और पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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