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मैं जीवन के बारे में थोड़ा और सोचने को मजबूर हो गया

Edited By ,Updated: 08 Nov, 2024 06:29 AM

i got to think a little more about life

इस सप्ताह के कॉलम में डॉ. संदीप चटर्जी (63) और रतुल सूद (58) का जिक्र करना चाहूंगा, कोलकाता के दो लोग, जिन्हें मैं जानता था। इस कॉलम में रोहित बल (63) और बिबेक देब रॉय (69) के बारे में भी बात करना चाहूंगा, दिल्ली के दो लोग, जिनसे मैं कभी मिला भी...

इस सप्ताह के कॉलम में डॉ. संदीप चटर्जी (63) और रतुल सूद (58) का जिक्र करना चाहूंगा, कोलकाता के दो लोग, जिन्हें मैं जानता था। इस कॉलम में रोहित बल (63) और बिबेक देब रॉय (69) के बारे में भी बात करना चाहूंगा, दिल्ली के दो लोग, जिनसे मैं कभी मिला भी नहीं था, लेकिन जिनके बारे में मैंने सिर्फ पढ़ा था। चारों चले गए। यह कोई चार-पक्षीय मृत्युलेख नहीं है। न ही यह चार सफल सज्जनों के लिए शोकगीत है, जो एक शहरी जंगल यानी भारतीय शहर में रहते थे। उनकी हाल ही में हुई मृत्यु, वे सभी मेरी ही उम्र के थे, ने मुझे जीवन के बारे में थोड़ा और सोचने पर मजबूर कर दिया है और जीने के बारे में। जैसा कि जॉन लेनन ने कहा था- ‘‘जीवन वह है जो आपके साथ तब होता है, जब आप दूसरी योजनाएं बनाने में व्यस्त होते हैं!’’

बड़े होने पर, फुटबॉल मेरा पसंदीदा आऊटडोर खेल था, जिसे मैं खेलता था। आप कभी अंदाजा नहीं लगा सकते कि मेरा पसंदीदा इनडोर ‘खेल’ कौन-सा था। कॉन्ट्रैक्ट ब्रिज! मेरे पिताजी ने मेरे दो छोटे भाइयों (एंडी, बैरी) और मुझे हमारी किशोरावस्था में ही ब्रिज सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे 20 और 30 के दशक में एक ऐसा दौर था, जब मैं हफ्ते में तीन बार ब्रिज खेलता था। कभी स्थानीय क्लब स्तर से आगे नहीं खेला, लेकिन खेल से प्यार करता था। अफसोस, मुंबई के टैलीविजन स्टूडियो में मल्टी कैम क्विज शो की शूटिंग और राजनीति में पिछले दो दशकों के बीच, यह आकर्षक कार्ड गेम एक याद बनकर रह गया था।
पिछले हफ्ते यह बदल गया।

25 साल से ज्यादा समय के बाद, मेरे ब्रिज के पुराने साथियों ने कोलकाता के एक क्लब ‘डी’ में तीन घंटे का सत्र आयोजित किया, जिसे हम अपना दूसरा घर कहते हैं। इसमें जो (94), एलियास (84), निक्की (79) और एक 63 वर्षीय व्यक्ति थे। खेल के बाद, उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि मैंने अपना स्पर्श नहीं खोया है। क्या दोपहर थी। बच्चों जैसे उत्साह के साथ मैंने अपने दो भाई-बहनों के साथ सत्र की एक तस्वीर सांझा की। यहां, उनमें से एक ने व्हाट्सएप पर जो उत्तर दिया, वह शब्दश: है-

‘‘यह दोपहर तीन कारणों से बहुत बड़ी थी:

  1. कि आपने गहराई से जानने के लिए समय निकाला - और वह किया जो आप वास्तव में करना चाहते थे, भले ही यह कभी-कभार ही क्यों न हो!
  2. ये सज्जन 94, 84 और 79 की उम्र में भी फिट और मानसिक रूप से सजग हैं - और जो करना चाहते हैं, कर रहे हैं!
  3. आप अभी भी इसमें अच्छे हैं  - इसका मतलब है कि जब आपको जरूरत हो, तो आपका दिमाग खुद को ‘साफ’ कर सकता है।

इस विषय पर मुझे जीवन को पूरी तरह से जीने के बारे में और क्या कहना है? निश्चित रूप से हमें कुछ और पैराग्राफ लिखने की जरूरत है। या शायद एक या दो किस्से भी बताएं। आखिरकार, इस अखबार के साथ समझ यह है कि मैं जो कॉलम लिखता हूं, वह ‘लगभग 800 शब्दों का’ होना चाहिए। अब शब्दों की संख्या 550 है। तो अब क्या? लक्ष्य, निशाने या मंजिल तक पहुंचने के लिए और 200 शब्द लिखें? या बस यात्रा का आनंद लें। मैं बाद वाला विकल्प चुनूंगा। धन्यवाद...! -डेरेक ओ ब्रायन (संसद सदस्य और टी.एम.सी. संसदीय दल (राज्यसभा) के नेता)

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