Edited By ,Updated: 04 Mar, 2025 05:55 AM

यू.एस.एड (यूनाइटिड स्टेट्स एजैंसी फॉर इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट) के संचालन के हाल ही में निलंबन से भारत में प्रमुख विकास क्षेत्रों, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, जल, स्वच्छता और जलवायु कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है। जबकि यू.एस.एड पर भारत की निर्भरता समय...
यू.एस.एड (यूनाइटिड स्टेट्स एजैंसी फॉर इंटरनैशनल डिवैल्पमैंट) के संचालन के हाल ही में निलंबन से भारत में प्रमुख विकास क्षेत्रों, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, जल, स्वच्छता और जलवायु कार्यक्रमों पर असर पड़ सकता है। जबकि यू.एस.एड पर भारत की निर्भरता समय के साथ कम हुई है। अब यू.एस.एड वैश्विक बजट का केवल 0.2 प्रतिशत से 0.4 प्रतिशत हिस्सा है । अचानक रोक से चल रही परियोजनाएं बाधित हो सकती हैं। यू.एस.ऐड ने भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, विशेष रूप से एच.आई.वी./एड्स और तपेदिक जैसी बीमारियों से लडऩे और मातृ स्वास्थ्य का समर्थन करने में। 2024 में, यू.एस.एड ने इन कार्यक्रमों के लिए 79.3 मिलियन अमरीकी डॉलर आबंटित किए। फंडिंग के रुकने से उपचार और आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच प्रभावित हो सकती है।
स्थानीय संगठनों के साथ सांझेदारी के माध्यम से यू.एस.एड ने सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करते हुए स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुंच का विस्तार करने में भी मदद की है। इसके अलावा, इसके वित्तपोषण ने संरक्षण और अनुकूलन रणनीतियों को बढ़ावा देकर जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का समर्थन किया है। इस समर्थन के बिना, इन क्षेत्रों में प्रगति धीमी हो सकती है, जिससे सामुदायिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है। इन झटकों के बावजूद, भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती है। सरकार और राज्य एजैंसियों को प्रमुख कार्यक्रमों को चालू रखने के लिए धन को पुनर्निर्देशित करने की आवश्यकता हो सकती है।
द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों के साथ मजबूत सांझेदारी भी फंडिंग अंतराल को कम करने और महत्वपूर्ण विकास कार्य जारी रखने में मदद कर सकती है। देश केवल अल्पकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता है। इसे अपने बुजुर्गों का समर्थन करने और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत रखने के लिए दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है। भारत, जिसे अक्सर एक युवा राष्ट्र के रूप में देखा जाता है, भी आश्चर्यजनक दर से बूढ़ा हो रहा है। ‘द इकोनॉमिस्ट’ के अनुसार, आज, 15 करोड़ भारतीय 60 वर्ष से अधिक आयु के हैं। 2050 तक, यह संख्या दोगुनी से अधिक होकर लगभग 35 करोड़ हो जाएगी। यह केवल जनसांख्यिकी में बदलाव नहीं है, बल्कि भारत के भविष्य का एक मौलिक पुनर्लेखन है।
बुढ़ापा केवल बूढ़ा होने से कहीं अधिक है। यह वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच और सम्मान के साथ जीने के अधिकार के सवाल उठाता है। बुढ़ापा श्रम बाजारों, सामाजिक सुरक्षा और यहां तक कि शिक्षा को भी प्रभावित करता है। भारत में, जहां 40 प्रतिशत बुजुर्ग सबसे कम आय वर्ग के हैं, और पांचवें हिस्से के पास कोई आय नहीं है, इसलिए बुढ़ापे की कमजोरियां बहुत ज्यादा हैं। सामाजिक मानदंड अक्सर बुजुर्गों को बोझ के रूप में देखते हैं, जिसके कारण उपेक्षा, दुव्र्यवहार और अलगाव होता है। 1990 के दशक से भारत की अर्थव्यवस्था 10 गुना बढ़ गई है और 2027 तक यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। इस वृद्धि का ज्यादातर हिस्सा उन लोगों का होगा जो 2050 तक वरिष्ठ नागरिक होंगे। यह बुढ़ापे को फिर से देखने का अवसर प्रस्तुत करता है जो संकट के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण के अवसर के रूप में जो अपने बुजुर्गों को महत्व देता है और उनका समर्थन करता है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (हृस्नक्क्र ) के अनुसार, भारत अपनी तेजी से बढ़ती उम्रदराज आबादी के लिए कैसे तैयार हो सकता है। देश को बुजुर्गों की देखभाल, घर पर देखभाल सेवाओं और वरिष्ठ नागरिकों की विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों में निवेश करके स्वास्थ्य सेवा पर फिर से विचार करने की जरूरत है। अंतर-पीढ़ी के बंधन को मजबूत करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि वृद्ध-वयस्क आश्रित नहीं हैं, बल्कि ज्ञान और अनुभव के मूल्यवान भंडार हैं। युवा और वृद्धों के बीच बातचीत के अवसर पैदा करने से मजबूत सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। तकनीक भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। डिजिटल उपकरण स्वास्थ्य सेवा, वित्तीय सेवाओं और सामाजिक जुड़ाव तक पहुंच को बढ़ा सकते हैं, लेकिन केवल तभी जब उन्हें बुजुर्ग उपयोगकत्र्ताओं को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया हो। इस अंतर को पाटने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों का विस्तार करना आवश्यक है।
वरिष्ठ-अनुकूल पर्यटन, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सेवाओं जैसे उद्योगों को इस जनसांख्यिकीय बदलाव के अनुकूल होना चाहिए। अंत में, वृद्धावस्था पर डाटा में सुधार करना महत्वपूर्ण है । भारत को वृद्धावस्था के रुझानों को ट्रैक करने, भविष्य की जरूरतों का पूर्वानुमान लगाने और नीतियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए मजबूत डाटा सिस्टम की आवश्यकता है, ताकि अपनी वृद्ध आबादी के लिए एक अच्छी तरह से तैयार और समावेशी समाज सुनिश्चित किया जा सके। भारत के पास एक विकल्प है। यह वृद्धावस्था को एक आसन्न संकट के रूप में देख सकता है या इस परिवर्तन को एक ऐसे समाज के निर्माण के अवसर के रूप में अपना सकता है जो अपने बुजुर्गों का सम्मान और समर्थन करता है। यह केवल संख्याओं के बारे में नहीं है। यह उन लाखों लोगों के बारे में है जिन्होंने इस राष्ट्र का निर्माण किया है और अब सम्मान, सुरक्षा और उद्देश्य के साथ जीने के हकदार हैं। वास्तव में, सामाजिक और आॢथक न्याय में सभी को शामिल करना चाहिए। हालांकि, एक न्यायपूर्ण व्यवस्था को तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे समर्थन देने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा न बनाया जाए। विकास के इन महत्वपूर्ण पहलुओं पर उतना ध्यान दिया जाना चाहिए जितना कि वे हकदार हैं। कार्रवाई करने का समय दूर भविष्य में नहीं है। यह अभी है।-हरि जयसिंह