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राजनीति में सब खंजर उठाए घूम रहे हैं

Edited By ,Updated: 11 Mar, 2025 05:48 AM

in politics everyone is walking around with a dagger in their hand

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में बड़े बदलाव आ गए हैं। कभी समय हुआ करता था जब देश की राजनीति में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था। समय क्या बदला कि 2014 के बाद कांग्रेस के एक के बाद एक चुनाव में पैर उखड़ते गए। कभी वक्त था कि देश में...

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में बड़े बदलाव आ गए हैं। कभी समय हुआ करता था जब देश की राजनीति में कांग्रेस का एकछत्र राज हुआ करता था। समय क्या बदला कि 2014 के बाद कांग्रेस के एक के बाद एक चुनाव में पैर उखड़ते गए। कभी वक्त था कि देश में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू  और उनके बाद श्रीमती इंदिरा गांधी का राजनीति में वर्चस्व था। वक्त का करिश्मा देखिए कभी भारत की राजनीति में साम्यवादी, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों का जोर था। कामरेड ए.के. डांगे, ज्योति बसु, कामरेड हरि कृष्णा, सुरजीत और कामरेड प्रकाश कारत की सभी राजनीतिक दलों में पैठ हुआ करती थी। समय क्या गुजरा कि वामपंथी कहीं नजर नहीं आ रहे। कभी समय था केरल, पश्चिमी-बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे राज्य वामपंथियों के हाथों में थे। आज इन राज्यों में ममता बनर्जी और भाजपा शासन चला रहे हैं।

देश की राजनीति लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और मुलायम सिंह के इर्द-गिर्द घूमती थी। आज यादवों का कुनबा या तो बिखर गया है या कोई प्रभु को प्यारा हो गया। दक्षिण भारत की राजनीति में कभी अन्नादुरई, कभी सी. रामचंद्रन, कभी करुणानिधि और कभी जयललिता का डंका गूंजता था। आज स्टालिन दक्षिण की राजनीति को संभाल रहे हैं। कभी आंध्र प्रदेश में फिल्मी अदाकार भारत की राजनीति को आकॢषत करते थे तो आज उन्हीं के दामाद चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश की राजनीति के प्रनेता बन गए हैं। कल जिन्हें नेता अपना राजनीतिक गुरु कहते थे आज वही नेता गुरु की पीठ में छुरा घोंप कर नए नेता बन गए हैं। भारत की राजनीति में कोई किसी का सगा-साथी नहीं। सभी राजनेता अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी कर रहे हैं। जन सेवा किसी के हृदय में नहीं है। मैं, बस मैं। बाकी जो सत्य और धर्म की राजनीति की बात करेगा उसे पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। राजनीति में सब खंजर लिए फिर रहे हैं। मैं स्वयं इस महत्वाकांक्षी राजनीति के कारण 16 सालों से हाशिए पर हूं। अपने सामने राजनीति के धुरंधर जनसंघ के संस्थापक, जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करवाने वाले, 1961 में लोकसभा सदस्य बनने वाले प्रो. बलराज मधोक को 94 वर्ष की आयु में घुट-घुट कर अपनी आंखों के सामने, गुमनामी में मरते देखा। 

‘जनसंघ’ बनाने वाले प्रो. बलराज मधोक को तब पार्टी आकाओं ने पार्टी से निष्कासित कर दिया। चेले और अपने कहे जाने वाले, दुर्दिनों में एकदम अपने गुरु और राजनेता को छोड़ जाते हैं। वर्तमान राजनीति ‘आया राम, गया राम’ से प्रभावित हो गई है। राजनीति के 60 सालों में मैंने तो यही देखा है। आपका क्या हुआ, मुझे पता नहीं। आओ थोड़ा आगे बढ़ कर राजनीति के बदलते स्वरूप पर नजर डालें। एक पार्टी और उसके एकछत्र राज का अंत : 50 साल इस देश की राजनीति को कांग्रेस ने अपने अनुसार चलाया। आज वही कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हार रही है। नेता विहीन कांग्रेस पार्टी। 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009, 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस लगातार हार रही है। 2014 के बाद कांग्रेस का स्थान भारतीय जनता पार्टी ने ले लिया है।

लगता नहीं कि कांग्रेस पुन: जागृत होगी। कांग्रेस अब सिर्फ अतीत की बात बन गई है। कई दल तो सुन्न अवस्था में पहुंच गए हैं। पंजाब की सबसे पुरानी पार्टी ‘शिरोमणि अकाली दल’ पंजाब में ही हंसी का पात्र बन गई है। महाराष्ट्र में बाला साहिब ठाकरे की ‘शिवसेना’ को उनके पुत्र उद्धव ठाकरे संभाल ही नहीं सके। बिहार में आर.जे.डी. प्रमुख एक तो बूढ़े हो गए दूसरा मोदी सरकार उन्हें जेल से ही बाहर नहीं आने देती। यू.पी. में समाजवादी पार्टी और उसके नेता अखिलेश यादव योगी आदित्यनाथ का मुकाबला नहीं कर सकते। दिल्ली में केजरीवाल को भाजपा वालों ने लूट लिया। आज ‘आप’ के विधायक विधानसभा परिसर में धरना दे रहे हैं। भारत की राजनीति में क्षेत्रीय दलों का लगातार बढ़ता प्रभाव : 24 जून, 2008 को 748 क्षेत्रीय दलों के चुनाव आयोग ने नाम दर्ज किए। जब भी किसी क्षेत्रीय दल में राजनेताओं को महत्वपूर्ण पद नहीं मिलता, वे एक नया दल बना लेते हैं। क्षेत्रीय दलों में गुटबंदी, भारत की राजनीति के विकास को रोक रही है। 

कांग्रेस ने 1998, 1999, 2004, 2009 के लोकसभा चुनावों में क्षेत्रीय दलों से समझौता कर चुनाव लड़े। भारतीय जनता पार्टी ने भी 1998 के लोकसभा चुनावों में 15 क्षेत्रीय दलों से समझौता किया। 1999 में 25 क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया। 19 मार्च, 1998 में अटल बिहारी ने 2 राष्ट्रीय और 15 क्षेत्रीय दलों से मिलकर सरकार बनाई। जून 1996 को देवेगौड़ा ने, 21 अप्रैल 1997 में श्री इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर ने क्षेत्रीय दलों से मिलकर प्रधानमंत्री पद हासिल किए। 13 अक्तूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने पुन: 23 क्षेत्रीय दलों से मिलकर ‘जनतांत्रिक गठबंधन’ बनाया। 22 मई 2004 और मई 2009 में मनमोहन सिंह ने 12 क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकारें बनाईं। मोदी ने भी 2014 से 2024 तक अपने सहयोगियों को छोड़ा नहीं।

आज राजनीति का धनीकरण हो गया है : बड़े-बड़े साहूकारों को राजनीति की चटक लग गई है। कई धनी व्यक्ति बैंकों का पैसा लूट विदेशों में भाग गए हैं। अंबानी, अडानी की जय-जयकार हो रही है। रोजमर्रा की वस्तुएं गरीब आदमी के हाथ से छूट रही हैं। मध्यम वर्ग सहमा हुआ है। राजनेताओं तक तो साधारण व्यक्ति पहुंच ही नहीं पा रहा । राजनीति अभद्र भाषा, बेबुनियाद आरोपों और गाली देने वाली बन गई है। हां, 2014 के बाद देस में अस्थिरता खत्म हुई है।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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