Edited By ,Updated: 14 Nov, 2024 05:52 AM
विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5-19 वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापे की दर पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है। वर्तमान में, लगभग 1.44 करोड़ भारतीय बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में...
विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5-19 वर्ष की आयु के बच्चों में मोटापे की दर पिछले एक दशक में दोगुनी हो गई है। वर्तमान में, लगभग 1.44 करोड़ भारतीय बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं। यह आंकड़ा विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में अधिक चिंताजनक है, जहां यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 2.5 गुना अधिक पाई जाती है। आधुनिक युग में बच्चों में बढ़ता मोटापा एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह इस बात की तरफ संकेत भी दे रहा है कि आने वाला भविष्य खतरे में है।
बच्चों में मोटापा तब होता है जब एक बच्चे का शरीर का वजन उसकी ऊंचाई, आयु और लिंग के अनुपात में अत्यधिक हो जाता है। इसका पता लगाने के लिए बच्चे के बॉडी मास इंडैक्स (बी.एम.आई.) की गणना की जाती है, जो उसकी ऊंचाई और वजन को ध्यान में रखती है। जिन बच्चों का बी.एम.आई. अपनी आयु और लिंग के 95वें पर्सैंटाइल से अधिक होता है, उन्हें मोटापे वाला माना जाता है।
ये अचंभित करने वाले आंकड़े हमें सोचने को मजबूर कर रहे हैं कि जिस आयु में बच्चे खेलते-कूदते हैं, उस आयु में वे मोटापे से ग्रसित हो रहे हैं। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान समय में मनुष्य की जीवनशैली में बहुत ज्यादा बदलाव आ चुके हैं, जैसे फास्ट फूड का बढ़ता प्रचलन और शारीरिक गतिविधियों में कमी ने इस समस्या को और भी जटिल बना दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5-19 आयु वर्ग में 2010 में मोटापे का प्रतिशत 9.8 फीसदी था, जो 2023 में बढ़कर 19.3 फीसदी हो गया। उच्च और मध्यम वर्ग के परिवारों के बच्चों में यह समस्या अधिक देखी जा रही है। आज के डिजिटल युग में बच्चे मोबाइल फोन और वीडियो गेम्स में अधिक समय बिताते हैं। नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे (2023) के आंकड़ों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 5-19 वर्ष के 22.7 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 12.1 फीसदी बच्चे मोटापे से ग्रसित हैं। पिछले 5 वर्षों में इस समस्या में 63 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
एक अध्ययन के अनुसार, शहरी क्षेत्रों के 65 फीसदी बच्चे सप्ताह में कम से कम 3-4 बार फास्ट फूड का सेवन करते हैं। साथ ही, 78 फीसदी बच्चे नियमित रूप से कार्बोनेटेड पेय पदार्थों का सेवन करते हैं। कार्बोनेटेड पेय पदार्थों में बहुत अधिक मात्रा में चीनी का इस्तेमाल होता है, जो स्वास्थ्य के लिए मीठे जहर की तरह काम करती है, जिसस मोटापा होने की संभावना बढ़ जाती है। पारंपरिक और पौष्टिक भोजन की जगह प्रोसैस्ड फूड ने ले ली है, जिससे बच्चों के पोषण संतुलन में गड़बड़ी आ रही है। फास्ट फूड की बढ़ती लोकप्रियता से बच्चों के न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव बढ़ रहा है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी। बाजार में उपलब्ध ज्यादातर खाद्य पदार्थों में कैमिकल और प्रिजर्वेटिव्स का इस्तेमाल होता है, ताकि खाद्य पदार्थ लंबे समय तक चल सकें और उनके स्वाद को भी उत्तम बनाया रखा जा सके।
दिल्ली के एक प्रमुख स्कूल में 2023 में किए गए एक विस्तृत अध्ययन से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। 1200 छात्रों पर किए गए इस 12 महीने के अध्ययन में पाया गया कि 70 फीसदी बच्चे रोजाना 1 घंटे से भी कम व्यायाम करते हैं, जबकि 85 फीसदी डिजिटल गैजेट्स पर अत्यधिक समय बिताते हैं। केवल 25 फीसदी बच्चे ही नियमित रूप से खेलकूद में भाग लेते हैं। शारीरिक स्तर पर यह टाइप-2 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। मानसिक स्तर पर, मोटापे से ग्रसित बच्चे अक्सर आत्मविश्वास की कमी, अवसाद और सामाजिक अलगाव का सामना करते हैं। कई बार वे बुलिंग के शिकार भी होते हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए पारिवारिक स्तर पर स्वस्थ खान-पान की आदतों को बढ़ावा देना और बच्चों को शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करना महत्वपूर्ण है। भारतीय पारंपरिक खाद्य पदार्थ प्राकृतिक और पोषक होते हैं और बच्चों के लिए बहुत लाभकारी हैं। आप अपने बच्चे को रोज सुबह एक छोटा कटोरा दूध में थोड़ा-सा घी मिलाकर पिला सकते हैं। इससे उनकी पाचन शक्ति और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। इसके अलावा दही भी एक बहुत पौष्टिक और लाभकारी खाद्य पदार्थ है। दही में कैल्शियम, प्रोटीन और प्रोबायोटिक्स होते हैं, जो बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। आप अपने बच्चे को रोज सुबह कुछ फल खिला सकते हैं।
स्कूलों को नियमित शारीरिक शिक्षा कक्षाएं और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिएं। सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने और खेल सुविधाओं के विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। एक नए रूप में, वर्तमान में सरकार भी इस मुद्दे पर ध्यान दे रही है। राष्ट्रीय पोषण नीति-2023 में बच्चों के मोटापे को संबोधित करने पर जोर दिया गया है। इसमें स्कूली पोषण कार्यक्रमों को मजबूत करने, जन-जागरूकता अभियान चलाने और निगरानी तंत्र को मजबूत करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। कुछ राज्य सरकारें भी इस दिशा में कदम उठा रही हैं। उदाहरण के लिए, केरल ने हाल ही में स्कूलों में ‘ईट राइट, प्ले राइट’ कार्यक्रम शुरू किया है, जिसका उद्देश्य बच्चों में स्वस्थ खाने और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है।-सुनिधि मिश्रा