भारत-कनाडा के कमजोर होते रिश्ते

Edited By ,Updated: 28 Oct, 2024 05:39 AM

india canada s weakening relations

प्यू रिसर्च सैंटर प्वाइंट की वर्ष 2019 की कूटनीति के बारे में प्रकाशित रिपोर्ट दर्शाती है कि बढिय़ा कूटनीति शांति और आपसी मेलजोल के लिए सहायक सिद्ध होती है। प्रभावशाली और सूझ भरी कूटनीति 2 विरोधी राष्ट्रों के नेताओं को भी गहरे दोस्त बना देती है। यह...

प्यू रिसर्च सैंटर प्वाइंट की वर्ष 2019 की कूटनीति के बारे में प्रकाशित रिपोर्ट दर्शाती है कि बढिय़ा कूटनीति शांति और आपसी मेलजोल के लिए सहायक सिद्ध होती है। प्रभावशाली और सूझ भरी कूटनीति 2 विरोधी राष्ट्रों के नेताओं को भी गहरे दोस्त बना देती है। यह जिंदा मिसाल भारत के ताकतवर सम्राट पोरस ने कायम की थी। जब सम्राट पोरस विश्व विजेता महान सिकंदर से हार गया तो उसे जंजीरों में जकड़ कर सिकंदर के समक्ष पेश किया गया। सिकंदर ने पोरस को सवाल किया कि आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाए? पोरस का जवाब था, ‘‘वही जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।’’ सिकंदर इस गहरी और सूझ भरी कूटनीति वाले शब्दों का कायल हो गया। 

आखिर उसने भी कूटनीति का यही ज्ञान गुरु अरस्तु से हासिल किया था। पोरस की जंजीरें उतार दी गईं और दोनों ने एक-दूसरे को आङ्क्षलगन में ले लिया। सिकंदर और पोरस दोनों गहरे मित्र बन गए और सिकंदर ने उसका जीता हुआ राज्य भी बिना शर्त वापस कर दिया। भारत विश्व का सबसे बड़ा और  सशक्त लोकतंत्र है। भारत विश्व की उभरती आॢथक और सैन्य महाशक्ति  है। यही कारण है कि चीन को लद्दाख सैक्टर में समझौता करने के लिए बाध्य होना पड़ा है। भारत एक बहु राष्ट्रीय, बहु क्षेत्रीय, बहु भाषीय, विभिन्न धर्मों, बहु संस्कृति के रंगों का वाला देश है। ऐसे ही कनाडा एक बहु प्रवासी लोगों का अति विकसित खूबसूरत देश है। भारत की तरह ही यह भी बहु राष्ट्रीय, बहु क्षेत्रीय, बहु भाषीय  और विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के रंगों में रंगा देश है। 

सारा विश्व ही हैरान है कि ऐसे विकसित डिप्लोमेसी वाले माहौल में ये दोनों खूबसूरत देशों के आपसी संबंध क्यों बिगड़ रहे हैं। एक-दूसरे के डिप्लोमेट बाहर निकाले जा रहे हैं। वर्ष 1947 में भारत स्वतंत्र होने के बाद इन दोनों कॉमनवैल्थ देशों में कूटनीतिक गहरे संबंध थे। मगर 14 अप्रैल से 16 अप्रैल 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री की कनाडा यात्रा से पूर्व दोनों राष्ट्रों के आपसी संबंध कभी भी बेहतर नहीं रहे हैं।  कनाडा एक प्रवासियों का देश है और यहां पर बड़े स्तर पर भारतीय, पंजाबी और विशेषकर सिख समुदाय के लोगों के आने और बसने के बावजूद दोनों देशों के संबंध सुदृढ़ नहीं हो सके। कनाडा में करीब 2.3 प्रतिशत ङ्क्षहदू, 2.1 प्रतिशत सिख, 1.0 प्रतिशत बौद्ध धर्म के लोग होने तथा पंजाबियों का यहां की राजनीति में बोलबाला होने के बावजूद दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्वक गहरे संबंधों की कमी महसूस होती रही। 

भारत ने चीन और पाकिस्तान जैसे विरोधी देशों के साथ निपटने के लिए वर्ष 1974 में परमाणु टैस्ट किया। कनाडा का दोष था कि इस टैस्ट के लिए उसकी ओर से डिजाइन्ड साईरस का इस्तेमाल किया गया। इसी तरह से कनाडा ने वर्ष 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय पोखरन परमाणु बम धमाके का विरोध किया। अमरीका और दूसरे पश्चिमी देशों की तरह इस परीक्षण को लेकर  तत्कालीन कनाडियन विदेश मंत्री मिचल शार्प ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘इस परीक्षण ने दोनों देशों के दरम्यान आपसी विश्वास को खत्म कर दिया है।’’ भारत के अंदर करीब डेढ़ दशक तक पंजाब में राजनीतिक और गैर-राजनीतिक आतंकवाद के दौरान कनाडा आए सिख आतंकियों की ओर से खालिस्तानी प्रचार कभी भी भारतीय सरकारों को अच्छा न लगा। ‘कनिष्क’ कांड (23 जून, 1985) को लेकर भी उंगली उठती रही। इस दुर्घटना में 329 लोगों की जान चली गई। इंदिरा गांधी ने कई बार ङ्क्षचता प्रकट की कि पैरे ट्रूडो सरकार खालिस्तानी समर्थकों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं करती।

वर्ष 1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो 14 अप्रैल से लेकर 16 अप्रैल 2015 को कनाडा दौरे पर गए। कनाडा में उन दिनों संसदीय चुनाव होने के कारण माहौल गर्माया हुआ था मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने मोदी का  गर्मजोशी से स्वागत किया। भारत के साथ सांस्कृतिक एकता प्रकटाने और उसे मजबूत करने के लिए श्रीमती  हार्पर ने भारतीय साड़ी पहनी। दोनों देशों के बीच व्यापारिक समझौते हुए। मोदी ने प्रधानमंत्री हार्पर तथा उनकी कंजर्वेटिव पार्टी की जीत की कामना की। शायद कनाडा के वर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को यह बात अच्छी न लगी हो जो चुनाव जीत कर अगले प्रधानमंत्री बने और एक  मुलाकात के समय उन्होंने मोदी को कहा कि आपकी कैबिनेट से ज्यादा मेरी कैबिनेट में  सिख मंत्री हैं। जो बर्फ मोदी-हार्पर की मुलाकात के समय पिघलनी शुरू हुई थी वह ट्रूडो के समय फिर से जमनी शुरू हो गई। वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत यात्रा और  जी-20 सम्मेलन 2023 के दौरान ट्रूडो-मोदी मुलाकात के बाद भी भारत-कनाडा संबंध सुधर न सके। 

अमरीका के अंदर ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ के खालिस्तानी हिमायती और सिख रिफ्रैंडम की मांग करने वाले गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या करने की साजिश करने के भी भारतीय खुफिया एजैंसी के निखिल गुप्ता और पूर्व रॉ अधिकारी विक्रम यादव पर आरोप लगे। ‘फाइव आई’ राष्ट्रों ने भारत को कनाडा के साथ निज्जर हत्याकांड की जांच में सहयोग करने के लिए कहा। इस दौरान कनाडियन अथारिटीज और आर.सी.एम.पी. (रॉयल कनाडियन माऊंटेड पुलिस) ने भारतीय अधिकारियों को तथ्य पेश करने के लिए कुछ मीटिगें करवाने का प्रयत्न किया । कुछ सूत्र यह भी प्रश्न उठाते हैं कि यदि भारत को चीन, पाकिस्तान और आतंकवाद तथा अलगाववाद की चुनौतियों के संदर्भ में अपनी  स्वायत्तता की रक्षा करना प्राथमिकता है तो उसे कनाडा की स्वायत्तता का भी सत्कार करना चाहिए। ट्रूडो की ओर से भारत में किसान आंदोलन की हिमायत भी भारत को चुभ रही है। 

भारत कनाडा का 10वां बड़ा व्यापारिक सांझेदार है। तिड़कते रिश्तोंं के कारण आपसी व्यापार, निवेश, कारोबार पर बुरा असर पडऩा लाजिमी है। 14 अक्तूबर को हाई कमिश्नरों सहित 6-6 शीर्ष डिप्लोमेट दोनों देशों की ओर से निकालना अफसोसजनक निर्णय है। इस तरह का व्यवहार ठीक नहीं। आखिर टेबल पर बैठकर ही समाधान निकालना पड़़ता है। कनाडा में बड़े स्तर पर भारतीय छात्र दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह कनाडियन ट्रूडो सरकार के साथ इसी कारण नाराज हो गए थे क्योंकि उन्हें कांग्रेस पार्टी के प्रचार के लिए कनाडा प्रवेश करने नहीं दिया।  देश के मालिक लोग होते हैं, राजनीतिज्ञ नहीं।-दरबारा सिंह काहलों
 

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