Edited By ,Updated: 20 Mar, 2025 06:20 AM

अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2 अप्रैल तक का इंतजार भी नहीं किया। भारत से निर्यात होने वाले एल्यूमीनियम पर टैरिफ 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया। इससे भारतीय एल्युमीनियम उत्पादकों और निर्यातकों को एक बिलियन डॉलर (करीब 8700 करोड़ रुपए) का घाटा...
अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2 अप्रैल तक का इंतजार भी नहीं किया। भारत से निर्यात होने वाले एल्यूमीनियम पर टैरिफ 10 फीसदी से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया। इससे भारतीय एल्युमीनियम उत्पादकों और निर्यातकों को एक बिलियन डॉलर (करीब 8700 करोड़ रुपए) का घाटा उठाना पड़ सकता है। सवाल उठता है कि आखिर ट्रम्प इतनी हड़बड़ी में क्यों हैं? वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल 3 दिन भारी-भरकम लवाजमे के साथ अमरीका में थे। सुना है कि एक-एक उत्पाद पर लगने वाले टैरिफ पर विस्तार से बातचीत हुई थी। भारत ने सितंबर तक का समय मांगा था, जिसका कहना था कि दोनों तरफ के आयात-निर्यात पर लगने वाले टैक्स पर लचीला रुख अपनाया जाएगा।
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने अमरीका यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर जोर दिया था, लड़ाकू विमान खरीद में इच्छा जताई थी, दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार को 2030 तक 500 बिलियन डॉलर करने का वायदा किया था, जो इस समय 200 बिलियन डॉलर के आसपास ही है। ऐसा लग रहा था कि ट्रम्प भारत को कनाडा, मैक्सिको, चीन आदि देशों की श्रेणी में नहीं रखेंगे लेकिन ट्रम्प तो ट्रम्प हैं, 2 अप्रैल तक का इंतजार नहीं किया। ट्रम्प के इस ताजा फैसले से साफ है कि भारत पर भारी मुसीबत आ सकती है। भारत से निर्यात होने वाली सुई तक महंगी हो जाएगी। लेकिन इसका समाधान क्या है? कुछ अर्थशास्त्री कहते हैं कि भारत ने कुछ वस्तुओं पर कुछ ज्यादा ही टैक्स लगाया हुआ है, जिसमें कमी करना भारत के लिए ही फायदेमंद होगा। इस समय अमरीका भारत से उनके यहां से निर्यात होने वाले टैरिफ पर जितना टैक्स लगाता है, भारत उससे 5.2 गुणा ज्यादा टैक्स लगाता है। यह चीन आदि देशों से कहीं ज्यादा है। चीन 2.3 गुणा, कनाडा 1.2 गुणा, यूरोपियन यूनियन डेढ़ गुणा ज्यादा टैक्स लगाता है।
भारतीय किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए अमरीका से आने वाले कृषि उत्पादों पर भारत अमरीका के मुकाबले करीब 8 गुणा ज्यादा टैक्स लगाता है। इस श्रेणी में कनाडा सिर्फ 3 गुणा और चीन 2.8 गुणा ही टैक्स लगाता है। ट्रम्प इस खाई को पाटना चाहते हैं। ट्रम्प व्यापार घाटे को कम करना चाहते हैं। उसका घाटा उत्पाद और सेवा क्षेत्र में 918 बिलियन डॉलर का है। उत्पादों पर व्यापार घाटा 1200 बिलियन डॉलर के आसपास है, जबकि सेवा क्षेत्र से अमरीका को 300 बिलियन डॉलर का मुनाफा होता है। अमरीका का व्यापार घाटा अकेले चीन से 295 बिलियन डॉलर का है। उसके बाद कनाडा, मैक्सिको, यूरोपियन यूनियन, वियतनाम आदि देशों का नंबर आता है। भारत से अमरीका का व्यापार घाटा सिर्फ 45 बिलियन डॉलर का है जो 10वें नंबर पर आता है?
पिछले कुछ सालों में अमरीका का व्यापार घाटा कनाडा के साथ 239 फीसदी बढ़ा है, दक्षिण कोरिया के साथ 161 फीसदी, जबकि भारत के साथ सिर्फ 88 फीसदी ही इजाफा हुआ है। यह सब विस्तार से बताने का मतलब यही है कि भारत भले ही टैरिफ किंग हो, लेकिन दोनों देशों के बीच बहुत ज्यादा व्यापार नहीं होता। इस बात को देखते हुए अमरीका 23 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था है जबकि भारत 3 ट्रिलियन डॉलर से भी कम पर टिका हुआ है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र को सबसे बड़े लोकतंत्र वाले देश की कूटनीति के क्षेत्र में जरूरत पड़ती रहती है। इसके बावजूद ट्रम्प भारत के साथ रिश्तों को सिर्फ और सिर्फ अर्थशास्त्र के चश्मे से ही देख रहे हैं। यह भारत के लिए चिंता का सबब है।
कुछ जानकारों का कहना है कि चूंकि अमरीका बहुत सी चीजों पर बहुत कम टैक्स लगाता रहा है, तो भारत में इन चीजों का जमकर आयात भी हुआ है। इससे ऐसे ही उत्पाद बनाने वाली भारतीय कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ा है। अब अगर अमरीकी सामान भारत में महंगा आएगा तो भारतीय कंपनियों के लिए नया बाजार खुलेगा। एक उदाहरण चिकन का दिया जाता है। अमरीका में लोग चिकन के लैग पीस नहीं खाते। वे ब्रैस्ट पीस ही खाते हैं। ऐसे लैग पीस अमरीका भारत को निर्यात करना चाहता है लेकिन भारत मुर्गी पालकों के हितों को ध्यान में रखते हुए ऐसा नहीं चाहता।
इसी तरह ऊर्जा और रक्षा सामग्री के मामले में भारत अमरीका की शर्त मानने के लिए मजबूर हो सकता है। लेकिन कुछ का कहना है कि इससे भारत को आने वाले सालों में बहुत ज्यादा नुकसान भी नहीं होगा। जहां तक एफ-35 लड़ाकू विमानों की बात है, तो जरूरी नहीं कि भारतीय वायुसेना इस पर सहमत हो ही जाए। तेजस विमान के जैट इंजन के लिए भारत ने एक साल पहले अमरीका को एक बिलियन डॉलर एडवांस में दिए थे। अब भारत इंजन की मांग कर सकता है। परमाणु ऊर्जा के रिएक्टर लगाने पर भारत ने रोड़ा दूर कर दिया है।
यानी पहले भारत ने कहा था कि रिएक्टर सप्लाई करने वाली कंपनी ही हादसा होने की सूरत में जिम्मेदार मानी जाएगी और उस पर जुर्माने से लेकर सजा तक का प्रावधान रखा गया था। अब इसे लचीला कर दिया गया है। रूस से भारत को 30 फीसदी सस्ता कच्चा तेल मिल रहा था लेकिन ताजा प्रतिबंधों के बाद इस पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसे में भारत के लिए अमरीका से तेल खरीदना (खासतौर से गैस) एक मजबूरी भी बनता जा रहा है। अभी भारत वहां से 4 फीसदी तेल और 7 फीसदी एल.एन.जी. गैस खरीदता है।
कुल मिलाकर जानकारों का कहना है कि भारत को अगर अमरीका से मुकाबला करना है तो आॢथक हालात सुधारने होंगे। शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज्यादा पैसा खर्चना होगा। कहा जा रहा है कि चूंकि भारत में शहरों का विस्तार हो रहा है लिहाजा बिजली फिटिंग और सुधारने वालों की जरूरत बढऩे वाली है। इसी तरह प्लंबर भी बड़ी संख्या में चाहिएं और साथ ही कुशल राजमिस्त्री भी। कहा जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है लेकिन खपत कम होती जा रही है। 142 करोड़ का देश है और सौ करोड़ लोग जरूरत भर का सामान ही जैसे-तैसे खरीद भर रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा बाजार शब्द ही संशय पैदा करना शुरू कर देता है। ट्रम्प इसे देख पा रहे हैं और दबाव बना रहे हैं। इसका तोड़ तो देश को निकालना ही होगा।-विजय विद्रोही