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‘पड़ोसी पहले’ वाली नीति लागू करे भारत

Edited By ,Updated: 12 Dec, 2024 05:27 AM

india should implement  neighbor first  policy

जबकि नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति की सफलताएं विदेशों में स्पष्ट हैं, भारत के तत्काल पड़ोस में समस्याएं बनी हुई हैं, जहां लगभग सभी पड़ोसी देशों को भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति के बावजूद भारत से समस्याएं हैं।

जबकि नरेंद्र मोदी सरकार की विदेश नीति की सफलताएं विदेशों में स्पष्ट हैं, भारत के तत्काल पड़ोस में समस्याएं बनी हुई हैं, जहां लगभग सभी पड़ोसी देशों को भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति के बावजूद भारत से समस्याएं हैं। 2014 में मोदी सरकार के आगमन के बाद, भारत और चीन के बीच संबंधों में सुधार हुआ था और नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की बैठकों के दौरान सौहार्दपूर्ण माहौल स्पष्ट था। हालांकि 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा अक्साई चिन पर टिप्पणी और 2020 में गलवान घाटी में झड़पों के बाद तनाव बढ़ गया, जिसके कारण पिछले कई दशकों में भारत-चीन संबंधों में सबसे खराब स्थिति रही। दोनों देशों के 50,000 से अधिक सैनिक 3 साल से अधिक समय तक लद्दाख क्षेत्र में आमने-सामने रहे। हाल ही में मोदी और शी के बीच बैठक के बाद तनाव कम करने की दिशा में कुछ प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन दोनों देशों को पूर्ण विश्वास बहाली से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है।

चीन की तरह ही पाकिस्तान के साथ भी हमारे रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले शपथ ग्रहण समारोह में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था और यहां तक कि पड़ोसी देश का अनिर्धारित दौरा भी किया था। पुलवामा हमले और पाकिस्तान के अंदर बालाकोट हमलों के बाद संबंधों में गिरावट आई। तब से यह रिश्ता ठंडे बस्ते में है। दोनों देशों के नागरिकों के लाभ के लिए अपार संभावनाएं होने के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य अब ठप्प है। लेकिन सरकार की विदेश नीति की बड़ी विफलता बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका और मालदीव सहित अन्य पड़ोसी देशों से संबंधित है। जबकि भारत बंगलादेश में अब अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना का समर्थन कर रहा था, जाहिर है कि उसने उस देश में उनके शासन के खिलाफ व्याप्त गहरी नाराजगी को भुनाने में सफलता नहीं पाई। 

यह तथ्य कि वह अपने खिलाफ जन-विद्रोह के बाद भारत भाग गई हैं और यहां शरण लिए हुए हैं। यह भी कुछ ऐसा है जो न तो अंतरिम सरकार और न ही बंगलादेश के नागरिकों को पसंद आ रहा है। उस देश में मंदिरों और हिंदुओं पर हिंसक हमले बंगलादेश के गठन के बाद से सबसे खराब हैं, जिसमें भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मोदी सरकार को यह समझने की जरूरत है कि देश में हिंदू-मुस्लिम की कहानी पड़ोसी देशों में भी अपना असर दिखा रही है। विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) के संभावित कार्यान्वयन ने इस धारणा को और बढ़ा दिया है कि कई अवैध प्रवासी बंगलादेश से भारत में घुस आए हैं। 

नेपाल के साथ भी हमारे संबंध इस समय बहुत खराब चल रहे हैं। पिछले एक दशक में नेपाल को महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता देने के बावजूद, नेपाल के चीन की ओर झुकाव को रोकने के भारत के प्रयास विफल हो गए हैं। पहली बार नेपाल के नए प्रधानमंत्री ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना है, जबकि परंपरा यह है कि नए प्रधानमंत्री अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए भारत आते हैं। नए प्रधानमंत्री के.पी. ओली का भारत को लुभाने का पुराना रिकॉर्ड रहा है। नेपाल के नागरिकों में यह धारणा बनी हुई है कि भारत ने 2015 में आॢथक नाकेबंदी का समर्थन किया था। हालांकि सरकार इस आरोप से इन्कार करती रही है।

नेपाल सरकार ने हाल ही में नेपाल के नए नक्शे के साथ करंसी नोट जारी करने का फैसला किया है, जिसमें भारत के साथ विवादित कुछ क्षेत्रों को नेपाल की सीमा में दिखाया गया है। यहां तक कि भूटान भी चीन का इस्तेमाल कर अपनी ताकत दिखा रहा है। श्रीलंका में हाल ही में नैशनल पीपुल्स पावर (एन.पी.पी.) का उदय हुआ है, जो एक केंद्र-वामपंथी संगठन है जो 2019 में ही अस्तित्व में आया है। हालांकि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा दिसानायके अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए भारत आने वाले हैं, लेकिन उनकी पार्टी का माक्र्सवादी झुकाव चीन के प्रति श्रीलंका की विदेश नीति को एक झुकाव प्रदान कर सकता है। 

इसी तरह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पड़ोसी मालदीव के साथ हमारे संबंध भी खराब हैं। इसके  राष्ट्रपति  मोहम्मद मुइजू एक जाने-माने भारत विरोधी हैं और उनकी पार्टी ने ‘इंडिया आऊट’ अभियान के दम पर चुनाव जीता था। उन्होंने निर्वाचित होने के तुरंत बाद मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी के लिए दबाव डाला और चीन द्वारा समर्थित नई परियोजनाओं का वायदा किया था। उन्होंने भारत की अनदेखी करके चीन की अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा की, हालांकि बाद में वे भारत आए।  भारत अपने पड़ोसियों पर अधिक ध्यान दे और अपने छोटे पड़ोसियों के प्रति ‘बड़े भाई’ के रवैये से बचे। यह महत्वपूर्ण है कि ‘पड़ोसी पहले’ नीति को अक्षरश: और भावना से लागू किया जाए और भारत अपने पड़ोसियों पर अधिक ध्यान दे।-विपिन पब्बी 
 

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