देश को पीछे धकेल रही है असहिष्णुता

Edited By ,Updated: 27 Mar, 2025 05:31 AM

intolerance is pushing the country backwards

भारत दुनिया का एकमात्र देश है जो कुछ वर्षों में विकसित देश (विकसित भारत) बनने की आकांक्षा रखता है लेकिन इसके नेता और लोग बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और कामेडी शो या सत्ता में बैठे राजनेताओं पर कटाक्ष भी बर्दाश्त नहीं कर पाते।

भारत दुनिया का एकमात्र देश है जो कुछ वर्षों में विकसित देश (विकसित भारत) बनने की आकांक्षा रखता है लेकिन इसके नेता और लोग बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं और कामेडी शो या सत्ता में बैठे राजनेताओं पर कटाक्ष भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। यद्यपि राजनेताओं द्वारा स्वयं को अत्यधिक गंभीरता से लेने की प्रवृत्ति नई नहीं है लेकिन असहिष्णुता का स्तर अभूतपूर्व ऊंचाई तक पहुंच गया है। इसकी तुलना किसी और से नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से कीजिए, जिन्होंने स्वयं एक ‘रोस्ट शो’ में भाग लिया था, जहां उनका स्वयं उपहास किया जा रहा था!

महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की राजनीतिक कलाबाजी पर हास्य कलाकार कुणाल कामरा द्वारा किए गए व्यंग्य से उत्पन्न ताजा विवाद हास्यास्पद है लेकिन उनके समर्थकों द्वारा कानून को अपने हाथ में लेना एक गंभीर मुद्दा है। उन्होंने बस एक लोकप्रिय हिंदी गीत की पैरोडी की थी और अपने पूर्व बास उद्धव ठाकरे को धोखा देने और शिवसेना को विभाजित करने के लिए शिंदे का मजाक उड़ाया था। तथ्य सही थे कि उन्होंने विद्रोह कर दिया था और कुछ समय के लिए गायब हो गए थे। फिर गुवाहाटी में उभरे और अपने पूर्व राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ हाथ मिला लिया। उनके समर्थक भड़क गए क्योंकि उनका दावा है कि वह ‘असली’ शिवसेना के प्रमुख हैं। इसके कारण उन्होंने उस स्थान पर तोड़-फोड़ की जहां कई दिन पहले शो की रिकाॄडग की गई थी। जहां कार्यक्रम केवल रिकॉर्ड किया गया था, वहां संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हिंसा में लिप्त होने का क्या औचित्य है। जाहिर है, इसका उद्देश्य यह संदेश देना था कि उनके नेता का मजाक उड़ाना बर्दाश्त योग्य नहीं है।

भीड़ की हिंसा की निंदा करने की बजाय, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस, जो शिंदे के विद्रोह के मुख्य लाभार्थी हैं, ने हास्य अभिनेता से अपनी टिप्पणियों के लिए माफी मांगने को कहा! उन्होंने कामरा की टिप्पणी की निंदा की और चेतावनी दी कि जो लोग ‘व्यक्तिगत लाभ’ के लिए दूसरों को बदनाम करते हैं, उनके खिलाफ  कार्रवाई की जाएगी। बेशक उन्होंने कामरा को हुए ‘व्यक्तिगत लाभ’ के बारे में कुछ नहीं बताया। शिंदे ने स्वयं दावा किया कि कामरा किसी खास एजैंडे वाले व्यक्ति की ओर से बोल रहे थे हालांकि उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं द्वारा की गई तोड़-फोड़ से खुद को दूर रखा।

कामरा, जो सत्ता में बैठे राजनीतिक नेताओं से भिडऩे के लिए जाने जाते हैं, ने शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से माफी मांगने से इंकार करके नैतिक साहस का परिचय दिया है। शिंदे के समर्थकों की अतार्किक लेकिन खतरनाक कार्रवाई को देखते हुए यह कोई छोटी बात नहीं है। कामरा ने एक बयान में कहा कि उन्होंने उससे अधिक कुछ नहीं कहा जो उप-मुख्यमंत्री अजित पवार ने एक समय शिंदे के बारे में कहा था। यह भी एक तथ्य है और महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए दोनों के भाजपा से हाथ मिलाने से पहले यह बात सार्वजनिक रूप से सामने आ चुकी थी।

विडंबना यह है कि शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे, जिनकी विरासत पर शिंदे दावा कर रहे हैं, स्वयं एक प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट थे, जो अक्सर अपने कार्टूनों के माध्यम से राजनीतिक नेताओं का मजाक उड़ाते थे। महाराष्ट्र पुलिस ने दो एफ.आई.आर. दर्ज की हैं, जिनमें से एक कामरा के खिलाफ  ‘सार्वजनिक शरारत’और मानहानि पैदा करने वाले बयान देने के लिए दर्ज की गई है। इसने उन लोगों के खिलाफ  भी प्राथमिकी दर्ज की, जिन्होंने उस स्थान पर तोड़-फोड़ की थी, जहां कई दिन पहले शो की रिकॉॄडग हुई थी और 11 दंगाइयों को गिरफ्तार किया था, जिन्हें उसी दिन रिहा कर दिया गया था। हालांकि, सरकार ने भवन के उस हिस्से को ध्वस्त करके अपने इरादे स्पष्ट कर दिए, जहां शो की रिकाॄडग की गई थी, जबकि सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश है कि कथित उल्लंघनकत्र्ता को पर्याप्त नोटिस दिए बिना कोई भी तोड़-फोड़ नहीं की जाएगी। मुंबई में यह तोड़-फोड़ उसी राज्य में औरंगजेब को लेकर हुए एक अन्य मूर्खतापूर्ण विवाद के कुछ दिनों बाद हुई, जहां उसकी 300 साल पुरानी कब्र को हटाने की मांग की गई थी।

शिवसेना कार्यकत्र्ताओं के एक वर्ग ने, जो स्पष्टत: अपने नेताओं के उकसावे पर है, किसी भी आलोचना के प्रति असहिष्णु होने की छवि बना ली है तथा वे कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं। देश की वित्तीय और मनोरंजन राजधानी में ऐसी घटनाएं होना और भी अधिक चिंताजनक है। हालांकि, यह समस्या केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है। एक अन्य प्रसिद्ध हास्य अभिनेता वीर दास पर वाशिंगटन के कैनेडी सैंटर में उनके प्रदर्शन के बाद मामला दर्ज किया गया,जब उन्होंने ‘दो भारत’ के बारे में बात की थी और इससे भी बदतर बात यह थी कि एक अन्य हास्य अभिनेता मुनव्वर फारुकी को इस आशंका के आधार पर प्रदर्शन करने से रोक दिया गया था कि वह लोगों के एक वर्ग को अप्रिय बात कह सकते हैं।

यद्यपि महाराष्ट्र और विशेषकर शिवसेना, हास्य कलाकारों के प्रति असहिष्णुता के लिए बार-बार समाचारों में रही है, परन्तु अन्य राज्य और अन्य दल भी इस कुप्रथा से अछूते नहीं रहे हैं। यदि कोई भी व्यक्ति चाहे वह कामेडियन हो या कोई प्रभावशाली व्यक्ति सीमाओं का उल्लंघन करता है  तो उनसे निपटने के लिए कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं।निरंकुश देशों में ऐसी असहिष्णुता की उम्मीद की जा सकती है लेकिन एक ऐसा देश जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जो विकसित देश बनने का लक्ष्य रखता है, वहां ऐसे उपद्रवी तत्वों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।-विपिन पब्बी
 

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