क्या ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ संभव है?

Edited By ,Updated: 18 Dec, 2024 05:18 AM

is one nation one election possible

संसद का यह शीतकालीन सत्र शोर शराबा भरा रहा, किंतु इसके अंतिम सप्ताह में अंतत: प्रधानमंत्री का बोलबाला रहा और भाजपा के मुख्य एजैंडा के मुख्य वायदे ‘एक समान नागरिक संहिता’ तथा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के वायदों के कार्यान्वयन के लिए आगे बढ़े। सुधारों की...

संसद का यह शीतकालीन सत्र शोर शराबा भरा रहा, किंतु इसके अंतिम सप्ताह में अंतत: प्रधानमंत्री का बोलबाला रहा और भाजपा के मुख्य एजैंडा के मुख्य वायदे ‘एक समान नागरिक संहिता’ तथा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के वायदों के कार्यान्वयन के लिए आगे बढ़े। सुधारों की आवश्यकता है और दोनों ही समय की मांग हैं। निश्चित एक राष्ट्र, एक चुनाव प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि देश में अब तक 400 से अधिक बार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव हो चुके हैं। विधि आयोग ने 1999, 2015 और 2018 में कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनावों से लोग, राजनीतिक दल और पार्टियां बार-बार आने वाले चुनावों से मुक्त होंगे। इससे चुनाव कम खर्चीले, अधिक लोकतांत्रिक होंगे। एक ऐसा विधेयक लाने की आवश्यकता है जिससे अपराधी चुनाव न लड़ सकें। इसके अलावा नेताओं को समय मिलेगा कि वे नागरिकों के अनुकूल योजनाएं ला सकें और राजकोष तथा दलों का पैसा बचेगा। 

वर्तमान में शोर-शराबा भरे चुनाव प्रचार, फिजूलखर्ची, सड़कों को बाधित करने आदि से हमारे जीवन में बाधाएं आती हैं, जिसके चलते न केवल शासन प्रभावित होता है, अपितु हमारी राजनीतिक और शासन व्यवस्था भी प्रभावित होती है। इस वर्ष लोकसभा चुनावों पर 1.35 लाख करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुआ, जो 2019 की तुलना में 60 हजार करोड़ रुपए अधिक है। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद समिति की 320 पृष्ठों की रिपोर्ट में एक राष्ट्र, एक चुनाव की सिफारिश में दो चुनावी प्रक्रियाओं की बात की गई है - 2029 के लिए लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव किए जाएंगे और उसके बाद 100 दिनों के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव होंगे।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए एक संक्रमण तारीख निर्धारित की जाएगी और निर्धारित तिथि के बाद चुनाव किसी भी विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के पूर्ण होने पर समाप्त हो जाएगा, चाहे वह विधानसभा कभी भी गठित हुई हो। त्रिशंकु विधानसभा के लिए मध्यावधि चुनाव हो सकता है, किंतु यह विधानसभा की शेष अवधि के लिए होगा और उसके बाद राष्ट्रीय चुनावों के साथ उस विधानसभा का चुनाव होगा। क्या मतदाता एक साथ चुनाव होने पर दोनों के बीच अंतर कर पाएंगे क्योंकि मतदाताओं ने अनेक बार दोनों चुनावों में अलग-अलग मत दिया है। जैसे, विधानसभा में दिल्ली के मतदाताओं ने केजरीवाल का समर्थन किया, किंतु लोकसभा में भाजपा को मत दिया।

लोकसभा के चुनावों में मतदाता इस बात का निर्णय करते हैं कि देश की गद्दी पर कौन बैठेगा और विधानसभा के चुनावों में मतदाता उस दल को चुनते हैं जो स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दों को समझते हैं और उनका समाधान कर सकते हैं। इसके अलावा यदि एक राष्ट्र, एक चुनाव होता है तो इसे लोकसभा और राज्यसभा की सहमति लेनी होगी। राज्यों से भी परामर्श करना होगा क्योंकि 17 राज्य सरकारों को उनके कार्यकाल पूरा होने से पहले भ्ंाग किया जाएगा। सत्तालोलुप राजनीतिक संस्कृति में से कितने इस बात के लिए सहमत होंगे? इससे शासन प्रशासन में आने वाले व्यवधान से बचा जा सकेगा और इससे नीतिगत पंगुता समाप्त होगी क्योंकि यदि कोई दल एक बार चुनाव जीतता है और सरकार बनाता है तो वह अगले 5 वर्ष तक कार्य करेगी और जनता के हित में कठोर निर्णय ले सकेगी और वोट बैंक पर प्रभाव पडऩे की चिंता किए बिना सुशासन देने पर ध्यान केन्द्रित कर सकेगी। 

अक्सर देखा जाता है कि चुनावों को ध्यान में रखते हुए अनेक अच्छे पहलुओं को छोड़ दिया जाता है कि कहीं जातीय, सामुदायिक या क्षेत्रीय समीकरण न बिगड़े और सब लोग नीतिगत पंगुता, कुप्रबंधन और खराब कार्यान्वयन के शिकार बन जाते हैं। उपचुनावों में एक-दो सीटों के लिए यह देखा जाता है कि सभी दल उन पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और जिन कार्यों के लिए वे चुने गए हैं, उन प्राथमिकताओं को नजरंदाज करते हैं। एक समान नागरिक संहिता के संबंध में मोदी का मानना है कि किसी भी देश में धर्म आधरित कानून नहीं होना चाहिए और देश के सभी नागरिकों के लिए एक कानून होना चाहिए तथा यह भारत की सामाजिक विविधता को एक राष्ट्र के रूप में जोड़ेगा। यह हिन्दू कोड बिल, शरीयत कानून जैसे व्यक्तिगत धार्मिक कानूनों का स्थान लेगा। स्वाभाविक रूप से विपक्ष ने इसके लिए मोदी की आलोचना की कि वे भारत की विविधता का सम्मान नहीं करते और कहा कि लोकतंत्र का उद्देश्य सुशासन होना चाहिए  न कि एक समान नागरिक संहिता। यह अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मुद्दा है और भारत में रह रहे मुसलमानों के लिए हिन्दुत्व बिग्रेड की नीति है।  

इससे मूल प्रश्न उठता है कि एक समान नागरिक संहिता को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर अतिक्रमण के रूप में क्यों देखा जाए या इसे अल्पसंख्यक विरोधी क्यों माना जाए? हाल के वर्षों में संकीर्ण व्यक्तिगत और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धर्म के मामलों में जानबूझकर विकृति लाने से देश का माहौल खराब हुआ है और इस सबका संबंध वोट बैंक की राजनीति से है।  निश्चित रूप से भारत और उसकी धर्मनिरपेक्षता में स्वैच्छिक एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिए, लोग धीरे-धीरे इसे स्वीकार करें। मुसलमानों में विद्वान लोगों के पास फिर एक विकल्प होगा कि वे उदार और प्रगतिशील एक समान नागरिक संहिता को अपनाएं या पुरातन पंथी धार्मिक कानून को।  राज्यों में निरंतर चुनाव होने से सरकार का प्रबंधन जटिल हो जाता है। भारत के लोकतंत्र को हर समय राजनीतिक दलों के बीच तू-तू, मैं-मैं नहीं बनाया जाना चाहिए। एक समान नागरिक संहिता ऐसे कानूनों के प्रति अलग-अलग निष्ठाओं को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता में सहायता करेगी, जिनकी विचारधारा अलग-अलग और टकराव वाली है। समय आ गया है कि हमारे नेता वह कार्य करें, जिसके लिए वे चुने गए हैं, अर्थात शासन पर और जो नागरिकों के लिए अच्छा हो, उस पर ध्यान दें।-पूनम आई. कौशिश 
 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!