Edited By ,Updated: 07 Nov, 2024 06:11 AM
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प को विजेता घोषित कर दिया गया है। वह अमरीका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। सामरिक-आर्थिक रूप से विश्व के सबसे ताकतवर देशों में से एक होने के कारण शेष दुनिया में अमरीकी चुनाव को लेकर स्वाभाविक...
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प को विजेता घोषित कर दिया गया है। वह अमरीका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। सामरिक-आर्थिक रूप से विश्व के सबसे ताकतवर देशों में से एक होने के कारण शेष दुनिया में अमरीकी चुनाव को लेकर स्वाभाविक चर्चा रही। भारत में भी इसे लेकर दो कारणों से उत्साह दिखा। पहला- कमला हैरिस का भारत से तथाकथित ‘जुड़ाव’ होना। यह अलग बात है कि हैरिस कमोबेश भारत-हिंदू विरोधी ही रही हैं।
दूसरा-डोनाल्ड ट्रम्प, जोकि पहले भी राष्ट्रपति (2016-20) रह चुके हैं, ने खुलकर हिंदू हितों की बात की और बंगलादेश में हिंदुओं पर हो रहे मजहबी हमलों का संज्ञान लिया। परंतु इस सच का एक अलग पहलू भी है। यह ठीक है कि ट्रम्प के पहले कार्यकाल में तुलनात्मक रूप से भारत के आंतरिक मामलों में अमरीका ने बहुत कम हस्तक्षेप किया। ट्रम्प प्रशासन ने वर्ष 2019 में धारा 370-35ए के संवैधानिक क्षरण और पुलवामा आतंकवादी हमले के प्रतिकार स्वरूप पाकिस्तान के भीतर भारतीय सॢजकल स्ट्राइक का समर्थन किया था। इस बार भी ट्रम्प ने भारत-अमरीका के संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई है।
दीपावली के अवसर पर ट्रम्प ने सोशल मीडिया साइट ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दोस्त बताया था। साथ ही अपनी सरकार आने पर दोनों देशों के बीच की सांझेदारी को और आगे बढ़ाने का वादा किया था। ट्रम्प बंगलादेश में तख्तापलट के बाद से ङ्क्षहदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा की कड़ी ङ्क्षनदा भी कर चुके हैं। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में जो निर्णय लिए थे, जिसमें सात इस्लामी देशों के नागरिकों के अमरीका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का फैसला तक शामिल था, उसमें उनकी सबसे प्रमुख नीति ‘अमरीका फस्र्ट’ थी, जिसे ट्रम्प ने इस बार भी दोहराया है।
अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने शुल्कों के माध्यम से भारत-चीन सहित अन्य एशियाई देशों के साथ यूरोपीय सहयोगियों पर भी निशाना साधा था। मई 2019 में ट्रम्प ने भारत को न केवल ‘टैरिफ किंग’ बताया था, साथ ही अमरीकी बाजार में भारत को मिली विशेष व्यापार सुविधा (अमरीकी व्यापारिक वरीयता कार्यक्रम) को भी समाप्त कर दिया था। तब ट्रम्प ने कहा था, ‘‘भारत एक उच्च शुल्क वाला देश है। जब हम भारत को मोटरसाइकिल भेजते हैं, तो उस पर 100 प्रतिशत शुल्क होता है। जब भारत हमारे पास मोटरसाइकिल भेजता है, तो हम उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। वे हमसे 100 प्रतिशत वसूल रहे हैं। ठीक उसी उत्पाद के लिए, मैं उनसे 25 प्रतिशत वसूलना चाहता हूं।’’
इस बार ट्रम्प ने अमरीका में सभी आयातों पर 10 प्रतिशत, तो चीन से आयात पर 60 प्रतिशत तक का शुल्क लगाने की बात की है। वर्ष 2016 के बाद ट्रम्प प्रशासन ने पहली बार चीन को एक ‘खतरे’ और ‘रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी’ के रूप में पेश किया था। उनसे पहले किसी भी अमरीकी राष्ट्रपति ने चीन को इस तरह नहीं देखा था। इस परिप्रेक्ष्य में ट्रम्प से उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने पहले कार्यकाल की नीतियों का ही विस्तार करेंगे, जिसमें चीन के साम्राज्यवादी रवैये के खिलाफ मुखर होकर क्वाड समूह (भारत सहित) को मूर्त रूप दिया गया था।
अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में आप्रवासन एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा रहा। ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल से इस पर आक्रामक रहे हैं और उनका दूसरा कार्यकाल अपेक्षित रूप से अवैध आप्रवासन को रोकने के अपने वादे को और सख्ती से लागू करने का प्रयास करेगा। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक वर्ष में बाइडेन प्रशासन के नेतृत्व में अमरीका ने लगभग 1100 अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भेजा है। यदि ट्रम्प आप्रवासन के मामले में और सख्ती दिखाते हैं, तो यह नि:संदेह भारत के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है।
ट्रम्प और हैरिस ने अपने चुनावी भाषणों में भारतीय-अमरीकी मतदाताओं को लुभाने (दीपावली पर बधाई सहित) का भरसक प्रयास किया। जहां कमला अपनी भारतीय पहचान स्थापित करने हेतु प्रसिद्ध भारतीय व्यंजन ‘इडली-सांभर’ का उपयोग करती दिखीं, तो ट्रम्प ने अपने प्रतिनिधि विवेक रामास्वामी और उप-राष्ट्रपति उम्मीदवार जेडी वैंस की पत्नी उषा वैंस को चुनाव-प्रचार में शामिल किया। विश्व के समक्ष आतंकवाद एक बड़ी समस्या है और भारत सदियों से इसका शिकार है। मजहबी आतंकवाद विरोधी अभियान में अमरीका का दोहरा मापदंड किसी से छिपा नहीं है। ‘गुड तालिबान, बैड तालिबान’ इसका एक हालिया प्रमाण है। क्या ट्रम्प से इस संबंध में सुधार की अपेक्षा की जा सकती है? -बलबीर पुंज