Edited By ,Updated: 18 Aug, 2023 05:40 AM
प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्राचीर से जिस विश्वकर्मा योजना की घोषणा को लेकर उनके राष्ट्र सम्बोधन को कुछ हलकों में चुनावी भाषण बताया जा रहा था, दरअसल वह 2023-24 के वाॢषक बजट का हिस्सा है।
प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्राचीर से जिस विश्वकर्मा योजना की घोषणा को लेकर उनके राष्ट्र सम्बोधन को कुछ हलकों में चुनावी भाषण बताया जा रहा था, दरअसल वह 2023-24 के वाॢषक बजट का हिस्सा है। जाहिर है इसकी घोषणा संसद में वित्तमंत्री बजट पेश करने के दौरान ही कर चुकी हैं और अब प्रधानमंत्री द्वारा इसे जल्द शुरू करने की घोषणा के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने त्वरित गति से इसे मंजूरी दे दी है। 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के दिन शुरू होने जा रही इस योजना की खासियत यह है कि यह ऐसे पारम्परिक कौशल को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है जो आमतौर पर काम करते हुए सीखा और निखारा जाता है।
साथ ही ऐसे कारीगरों-दस्तकारों की उद्यमशीलता को गति देने का प्रयास है। यह विशिष्टता इस योजना को केंद्र सरकार की बाकी रोजगार योजनाओं से अलग तो करती ही है, इससे देश के पारंपरिक शिल्प-दस्तकारी के संरक्षण का संकल्प भी ध्वनित होता है। लेकिन इसके लिए एक लाख रुपए के ऋण सहयोग की जो अधिकतम सीमा रखी गई है, वह मुद्रास्फीति को देखते हुए पर्याप्त नहीं कही जा सकती। साथ ही 12 से 15 हजार करोड़ का वार्षिक बजट व्यय भी इसके क्रियान्वयन की समग्रता को लेकर आश्वस्त नहीं करता।
दरअसल यह योजना उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा करीब 6 वर्ष पूर्व कौशल विकास के लिए शुरू की गई विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से प्रेरित दिखती है, लेकिन उसमें भी एक हफ्ते के नि:शुल्क प्रशिक्षण के साथ अधिकतम 10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान सुनिश्चित है। लाभान्वित वर्ग भी वही है। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि अब तक डेढ़ लाख से अधिक आवेदकों को इस योजना का लाभ मुहैया कराया जा चुका है और प्रदेश के कई जिलों में उसकी पहचान रही पारम्परिक शिल्प-दस्तकारी को त्वरण देने में सफलता मिल रही है। प्रधानमंत्री खुद इस योजना के लिए प्रदेश सरकार की पीठ थपथपा चुके हैं। अब केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में विश्वकर्मा योजना पर मोहर के बाद रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी इसकी जानकारी सांझा करते हुए स्पष्ट किया कि इससे क्षेत्रीय और आंचलिक शिल्प कौशल को नया आयाम मिलेगा।
कस्बों में अनेक ऐसे जनसमूह हैं जो गुरु-शिष्य परम्परा में कौशल से जुड़े कार्यों में लगे हैं। इनमें बढ़ई, दर्जी, मोची, बुनकर, कुम्हार, लुहार, सुनार, राजमिस्त्री, धोबी, नाई समेत पारम्परिक काम करने वाले 18 कारीगर/दस्तकार समूहों को शामिल किया गया है। ये सभी योजना के पहले चरण में व्यवसाय शुरू करने के लिए अधिकतम एक लाख रुपए की ऋण सहायता 5 फीसदी सालाना ब्याज दर पर प्राप्त करने के पात्र होंगे। व्यवसाय स्थापना के बाद योजना के दूसरे चरण में वे दो लाख रुपए तक रियायती कर्ज पाने के लिए अधिकृत होंगे। हालांकि दूसरे चरण की रूप-रेखा के बारे में सरकार ने अभी विस्तार से नहीं बताया है। फिर भी विश्वकर्मा योजना समाज के एक बड़े वर्ग को स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाने वाली होगी, यह उम्मीद बेमानी नहीं लगती।
महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को मूर्त रूप देने का संकल्प लगभग सभी केंद्र सरकारों के कामकाज में परिलक्षित होता रहा है, लेकिन इस योजना में समाज के जिन वर्गों को उद्यमशील बनाने की ङ्क्षचता दिखती है वह नि:संदेह इसे जरूरी योजना की श्रेणी में खड़ा करता है। प्रधानमंत्री इसका महत्व 2023-24 के सालाना बजट में इसकी घोषणा के तत्काल बाद ही रेखांकित कर चुके थे। बजट में समाज के निम्न आय और पिछड़े वर्गों की उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ शुरू की जाने वाली योजनाओं के गुण-दोष पर उन वर्गों के साथ चर्चा की परंपरा इस सरकार ने तीन साल पहले शुरू की थी। इस साल बजट घोषणा के बाद ऐसी ही एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत की विकास यात्रा के लिए गांव का विकास जरूरी है और इसके लिए गांव के हर वर्ग को सशक्त बनाना आवश्यक है। छोटे कारीगर स्थानीय शिल्प के उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पी.एम. विश्वकर्मा योजना उन्हें सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
उन्होंने यह भी कहा था कि प्राचीन भारत में कुशल कारीगर निर्यात में अपने-अपने तरीके से योगदान देते थे, लेकिन इस कुशल कार्यबल को लंबे समय तक उपेक्षित रखा गया और गुलामी के लंबे काल के दौरान उनके काम को गैर-महत्वपूर्ण माना गया। दुर्भाग्य से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी उनकी बेहतरी के लिए सरकार की ओर से कोई पहल नहीं की गई और परिणामस्वरूप कारीगरी और शिल्प कौशल को जिस श्रमिक वर्ग ने सदियों तक संरक्षित रखा, उसे सिर्फ इसलिए त्याग दिया ताकि वे किसी अन्य क्षेत्र में अपनी आजीविका की तलाश पूरी कर सकें।
हमारी सामाजिक शिल्प संरचना का गहन अध्ययन करने वाले तमाम अर्थविज्ञानी और चिंतक मानते रहे हैं कि अगर कारीगर और शिल्पकार बाजार मूल्य शृंखला का हिस्सा बनते हैं तो इससे न सिर्फ ग्रामीण आॢथकी मजबूत होगी, बल्कि एम.एस.एम.ई. क्षेत्र का भी कायाकल्प होगा। इसके लिए बस उन्हें लघुकालिक गुणवत्ता प्रशिक्षण, कुछ जरूरी उपकरण और थोड़े से रुपयों की मदद करनी होगी। और अगर सरकार उन्हें ये सब मुहैया कराने में सफल होती है तो उनमें राष्ट्रीय और निर्यात आधारित जरूरतों के अनुरूप उत्पादन के लिए तैयार कर सकती है। प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि उनकी सरकार का लक्ष्य इन पारंपरिक कामगारों-शिल्पकारों को उद्यमी बनाना है और इस उद्यमशीलता के लिए उनके व्यवसाय मॉडल में स्थायित्व आवश्यक है। 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री ने विश्वकर्मा योजना शुरू करने की घोषणा कर यह प्रतिबद्धता तो जाहिर कर दी है, लेकिन इसकी व्यापकता और समग्रता भी सुनिश्चित कर पाएं तो ग्रामीण आर्थिकी को वास्तविक सम्बल देने के लिए साधुवाद के पात्र होंगे।-अनिल भास्कर