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महिलाओं के पक्ष में बने कानूनों की समीक्षा आवश्यक

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2025 04:01 AM

it is necessary to review the laws made in favour of women

कानून कोई भी हो, उसके उपयोग, सदुपयोग और दुरुपयोग की सम्भावनाएं बनी रहती हैं। समय-समय पर उनकी समीक्षा और आवश्यकतानुसार परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि हमारा विधि समाज, वकील से लेकर न्यायाधीश तक, कोई न कोई सुराख तलाश ही लेते हैं जिससे अदालती प्रक्रिया...

कानून कोई भी हो, उसके उपयोग, सदुपयोग और दुरुपयोग की सम्भावनाएं बनी रहती हैं। समय-समय पर उनकी समीक्षा और आवश्यकतानुसार परिवर्तन आवश्यक है क्योंकि हमारा विधि समाज, वकील से लेकर न्यायाधीश तक, कोई न कोई सुराख तलाश ही लेते हैं जिससे अदालती प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है। अपराधी बच जाता है और निर्दोष सजा भुगतता है। न्याय के प्रति अविश्वास पनपने लगता है जो पूरे ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के लिए पर्याप्त है।

न्यायिक व्यवस्था में आस्था नहीं रहती : अदालतों द्वारा इस तरह के निर्णय जिनमें जघन्य अपराध के लिए लंबी सजा काटने के बाद पाया जाता है कि अभियुक्त निर्दोष था, हमारी कानून व्यवस्था के दोषी होने का संकेत है। इस दौरान उसके साथ जो हुआ, जो उसने सहा, उसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति चाहे पुरुष हो या महिला अथवा सामाजिक संगठन, उसे सजा हुई हो, ऐसा देखने-सुनने में नहीं आता।

एक उदाहरण है; दिल्ली में 30 हजारी अदालत में वर्षों से झूठे मामले में सजा काट रहे एक व्यक्ति को बरी करने का फैसला न्यायमूर्ति अतिरिक्त सैशन जज अग्रवाल ने हाल ही में दिया और कहा कि बलात्कार जैसा घिनौना आरोप लगाने वाली महिला के विरुद्ध कार्रवाई हो। यह महिला उस व्यक्ति को बहुत समय से ब्लैकमेल कर रही थी। उसने कई बार धमकी दी थी कि अगर उसकी मांगी रकम उसे नहीं दी गई तो वह उसे रेप के मामले में फंसाकर उसकी जिंदगी तबाह कर देगी। जब उसकी धमकियों का असर होता दिखाई नहीं दिया तो उसने झूठा आरोप लगाकर पुलिस थाने में शिकायत की और मिलीभगत से उसे गिरफ्तार कराया। 

अदालत में मुकद्दमा शुरू हुआ और जज साहब को मामले में सुनवाई के दौरान लगा कि मामला कुछ और ही है। यह सब 7 लाख रुपए वसूलने के लिए महिला ने किया था। बाद में अदालत ने यह भी पाया कि यह महिला इसी तरह कुछ और लोगों से भी पैसा वसूल करती रही है। वे अपने सम्मान को लेकर चिंतित थे इसलिए उन्होंने इसे पैसा देकर अपनी प्रतिष्ठा बचाने का काम किया। मामले का खुलासा यह हुआ कि यह महिला मनगढ़ंत कहानी बनाकर लोगों को भ्रमित कर पैसे ऐंठती थी। लाचारी, बेरोजगारी का वास्ता देकर, नौकरी या कोई काम दिलाकर मदद करने की बात करती थी।

होटल या निर्जन स्थान पर मुलाकात तय करती थी और वहां अश्लील हरकत करते हुए आज की डिजिटल टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर ऐसे ऑडियो-वीडियो बना लेती थी जिनमें वे उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए दिखाई देते थे। उन लोगों को पता भी नहीं होता था कि उनके साथ ऐसा हो रहा है। अब वह अपनी मनचाही रकम मांगती और न दिए जाने पर पहले वह उस व्यक्ति के परिवार और रिश्तेदारों को यह सामग्री भेजने की बात करती और कहती कि वह यह सब जगह भेज देगी और फिर कहती कि बदनाम कर कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेगी।

प्रश्न यह है कि क्या चोरी, हत्या, हिंसा और बलात्कार के झूठे आरोप में पुरुष को निर्दोष होकर बरी होने पर जो वर्षों का समय लगा, उसकी भरपाई हो सकती है? इसका उत्तर भारतीय न्याय संहिता में कहीं नहीं मिलता। क्या यह हमारे कानूनों की कमी नहीं है कि महिला द्वारा लगाए आरोप जो उसने अपने किसी स्वार्थ को पूरा करने के लिए लगाए हों, पहले ही मान लिया जाता है कि गलती पुरुष की ही होगी। पुरुष के निर्दोष सिद्ध होने पर भी महिला के प्रति कानून का रवैया हमदर्दी का रहता है। इसका असर पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों पर पडऩा निश्चित है।

केवल महिला सुरक्षा के लिए कानून : हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई तरह के कानून हैं। दहेज मांगने का आरोप लगाना आम बात है और इसके तहत घर के सभी सदस्यों को कटघरे तक पहुंचाया जा सकता है। सम्पत्ति विवाद में महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर इन दिनों काफी तेजी आई है। इसके बाद घरेलू हिंसा के मामले हैं। अब तलाक के मुकद्दमे से पहले इन मामलों का निपटारा होना जरूरी है। भारतीय न्याय संहिता में महिला द्वारा अपने साथ हुए अत्याचार की शिकायत करते ही यह गैर-जमानती हो जाता है। पहले गिरफ्तारी होगी, फिर अदालत तय करेगी कि जमानत पर रिहा हो या नहीं। यह प्रक्रिया इतनी लम्बी हो सकती है कि पुरुष समझौता करने की बात कहकर अपना पीछा छुड़ाना चाहता है, लेकिन वह ऐसा भी नहीं कर सकता क्योंकि कानून इसकी इजाजत नहीं देता। मजे की बात यह कि महिला गाली-गलौच करे तो कोई केस नहीं बनता और अगर पुरुष यह करे तो सीधी गिरफ्तारी हो सकती है।

समीक्षा के लिए क्या किया जाए : सबसे पहले विभिन्न प्रावधानों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए ताकि उनका कोई भी पक्ष विपरीत अर्थ न निकाल सके। अभी जो कानून है उसमें इतनी विसंगतियां हैं कि एक धारा के अनेक अर्थ निकाले जा सकते हैं जैसे पीड़ित केवल महिला हो सकती है, पुरुष और ट्रांसजैंडर सिर्फ अपराधी हो सकते हैं। शिकायत की जांच के लिए कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं है और महिला के उंगली उठाने मात्र से पुरुष अपराधी बन जाता है चाहे वह कोई भी हो, समाज में उसकी छवि कैसी भी हो। बात सुनी और मानी जाएगी तो केवल महिला की। पुरुष को अपनी बात कहने का कोई मौका नहीं, निर्दोष साबित करने के लिए बरसों तक अपमान झेलना पड़ता है और उसके बाद भी कलंक हमेशा के लिए खत्म नहीं होता, वह जीवन भर रहता है।-पूरन चंद सरीन 
 

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