सुखबीर को अध्यक्ष पद से हटाना विपक्षी नेताओं के लिए आसान नहीं

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2024 05:53 AM

it is not easy to remove sukhbir from the post of president

लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल बादल के खराब प्रदर्शन के बाद शिरोमणि अकाली दल बादल के कई नेता पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए बैठकें कर रहे हैं। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष...

लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल बादल के खराब प्रदर्शन के बाद शिरोमणि अकाली दल बादल के कई नेता पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए बैठकें कर रहे हैं। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए कई नेता आवाज उठा रहे थे और इसी का नतीजा था कि उन्हें या तो पार्टी से बाहर कर दिया गया या फिर कुछ ने इस्तीफा दे दिया। 

अकाली दल बादल के कई बड़े नेताओं ने सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बैठकें कीं। अनौपचारिक बैठक में सुखबीर सिंह बादल से इस्तीफे का अनुरोध पारित किया गया। अकाली दल का नया अध्यक्ष बनाने पर भी चर्चा हुई और नए अकाली दल को चलाने के लिए एक 11 या 21 सदस्यीय कमेटी बनाने पर भी चर्चा हुई। अगर यह अकाली नेता ऐसा करेंगे तो अकाली दल बादल का टूटना तय है और ऐसा पहली बार नहीं होगा। 1920 में शिरोमणि अकाली दल की स्थापना के बाद 1928, 1939, 1942, 1960, 1967, 1969, 1971, 1980, 1985, 1989 से 1999 में अकाली दल में दो फाड़ पैदा रहा।  और अकाली दल की सरकारों का टूटने का कारण भी बनता रहा। 

देश की दूसरी सबसे पुरानी पार्टी अकाली दल का असली नाम शिरोमणि अकाली दल है, न कि अकाली दल बादल। शिरोमणि अकाली दल का नाम अकाली दल बादल तब लोकप्रिय हुआ जब 1999 में अकाली दल विभाजित हो गया क्योंकि प्रकाश सिंह बादल ने गुरचरण सिंह टोहरा को पार्टी से निकाल दिया और टोहरा ने नया अकाली दल बनाया। उस समय, गुरचरण सिंह टोहरा के नेतृत्व वाले अकाली दल (सर्ब हिंद अकाली दल) को टोहरा अकाली दल के नाम से जाना जाने लगा और प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल को अकाली दल बादल के नाम से जाना जाने लगा। करीब 25 साल के अंतराल के बाद अकाली दल एक बार फिर टूट की स्थिति में पहुंच गया है। एक तरफ सुखबीर विरोधी अकाली नेता बैठकें कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सुखबीर सिंह बादल अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। सुखबीर विरोधी अकाली नेताओं ने जिसमें प्रेम सिंह चंदू माजरा, बीबी जगीर कौर, सिकंदर सिंह मलूका, सुरजीत सिंह रखड़ा, संता सिंह उम्मेदपुरी, परमिंदर सिंह ढींडसा, गुरप्रताप सिंह वडाला समेत करीब 60 अकाली नेता शामिल हुए, ने सुखबीर सिंह बादल के स्थान पर बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली  धार्मिक शख्सियत को अध्यक्ष बनाने की योजना बनाई है। 

इस तरह किसी जत्थेदार या संत को अध्यक्ष बनाने की योजना पर रोक लग रही है। हालांकि इससे पहले विरोधी गुट ने पांच सदस्यीय प्रिजिडियम बनाने पर भी विचार किया था और इसके लिए मनप्रीत अयाली, परमिंदर सिंह ढींडसा और गुरप्रताप सिंह वडाला समेत 3 नाम लगभग तय हो गए थे। सुखबीर बादल के विरोधियों ने सुखबीर को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर नया अध्यक्ष बनाने की मांग का प्रस्ताव पारित कर दिया है, लेकिन अकाली दल के कार्यकत्र्ताओं और आम समर्थकों के बीच इस बात को लेकर गहरी चर्चा है कि यह सारी कवायद किन मुद्दों को लेकर की जा रही है। इसलिए नहीं कि उस मामले के लिए सुखबीर और खुद व्यभिचार करने वाले भी जिम्मेदार हैं। ऐसे में विपक्षी नेताओं द्वारा बनाए गए गुट पर आम जनता कितना विश्वास करेगी, यह सोचने की बात है। 

हालांकि, इन नेताओं ने जनता में विश्वास जगाने के लिए श्री अकाल तख्त साहिब जाकर लिखित माफी मांगने का भी ऐलान किया है और जानकारी के मुताबिक, चरणजीत सिंह बराड़ इस माफीनामे का मसौदा तैयार कर रहे हैं। अगर नया गुट अकाली दल के कुछ या बड़े समर्थकों को अपने साथ लेने में सफल हो गया तो अकाली दल की हालत पहले से भी बदतर हो जाएगी, चाहे वह अकाली दल बादल हो या अकाली दल बचाओ अभियान चलाने वाला गुट हो। ऐसे में दोनों अकाली दल कभी भी घेरे में नहीं आ पाएंगे। इसके अलावा सुखबीर को अध्यक्ष पद से हटाने के लिए अकाली दल बचाओ अभियान चलाने वालों की मंशा को पूरा करना भी आसान बात नहीं है क्योंकि अकाली दल के संविधान के अनुसार पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष डेलीगेट को चुनता है।

कानून के मुताबिक जिसकी संख्या 500 है। भले ही अकाली दल बचाओ लहर के नेताओं को अकाली दल के अधिकांश नेताओं का समर्थन मिल जाए, लेकिन अंतिम फैसला उन डेलीगेटों पर निर्भर करेगा जिनमें सुखबीर के समर्थकों की बड़ी संख्या है। वहीं अकाली दल बादल ने जालंधर उप-चुनाव में अपनी पार्टी की उम्मीदवार सुरजीत कौर से नाता तोड़कर विरोधियों को कड़ी चुनौती दी है। हालांकि अकाली दल बादल ने कहा है कि सुरजीत कौर अपने विरोधियों से रिश्ता तोडऩे के लिए उनके करीब हैं। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं लगता। अकाली दल बादल इस फैसले से अपने विरोधियों को प्रभावित करने के मूड में है।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)  
 

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