Edited By ,Updated: 29 Mar, 2025 05:44 AM

देश की ‘दाईं भुजा’ के तौर पर जाने जाते पंजाब के योद्धाओं ने देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखते हुए हजारों की तादाद में बेमिसाल कुर्बानियां दीं और आज भी हरेक दिन पंजाब में सेवाएं दे रहे हैं।
देश की ‘दाईं भुजा’ के तौर पर जाने जाते पंजाब के योद्धाओं ने देश की एकता और अखंडता को बरकरार रखते हुए हजारों की तादाद में बेमिसाल कुर्बानियां दीं और आज भी हरेक दिन पंजाब में सेवाएं दे रहे हैं। इस प्रसंग में वर्णनीय है कि पंजाब में जंगी विधवाओं की गिनती देश भर में सबसे अधिक है। देश के रखवालों, वीरों और पूर्व सैनिकों के लिए समय-समय की सरकारों की ओर से उन्हें इज्जत, सम्मान और समस्त सेना का दर्जा बहाल करने के लिए कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनाई गई।
सबसे अधिक चिंताजनक और अफसोसजनक बात यह है कि गत कुछ दिनों के भीतर पंजाब पुलिस की ओर से जिस अमानवीय तरीके से सेना में तैनात अधिकारियों के खिलाफ उत्पीडऩ किए जा रहे हैं उसने सशस्त्र बलों के अक्स को गहरी ठेस पहुंचाई है जोकि न ही बर्दाश्त करने योग्य है और न ही देश के हित में है।
मामला क्या है? : पहली अफसोसजनक घटना 13 मार्च की रात को घटी जब कर्नल पुष्पिंद्र सिंह बाठ जोकि सेना मुख्यालय नई दिल्ली में किसी संवेदनशील पद पर तैनात हैं, ने पटियाला पहुंच कर अपने बेटे अंगद सिंह के साथ राजिन्द्रा अस्पताल के निकट ढाबे के बाहर गाड़ी खड़ी की थी। इस स्थान पर तीन पुलिस इंस्पैक्टरों सहित 12 पुलिस कर्मचारी भी पहुंच गए और पार्किंग स्थल को लेकर विवाद पैदा हो गया। अंगद के बयान के अनुसार उनके पिता की ओर से अपनी पहचान करवाने के बावजूद निहायत बेदर्दी और वहशीपन तथा असभ्य ढंग से उनकी पिटाई कर दी गई जिसके कारण कर्नल बाठ को गंभीर चोटें आईं और उनका बायां बाजू भी टूट गया।
जब अपने पिता को जालिमों के पंजों से मुक्त करवाने की कोशिश की गई तो उन पर भी वार शुरू कर दिए गए। अंगद के अनुसार एक पुलिस अधिकारी ने यह भी कहा, ‘‘मैं अभी अपहरणकत्र्ताओं के साथ आप्रेशन करके आ रहा हूं और कहीं तुम्हारे साथ दूसरा एनकाऊंटर न करना पड़ जाए।’’ दोनों पिता-पुत्र सैन्य अस्पताल में उपचाराधीन हैं। जानकारी यह भी है कि पुलिस ने ढाबा मालिक की ओर से बयान दर्ज करवा कर अज्ञात व्यक्तियों के ऊपर एफ.आई.आर. दर्ज की है। श्रीमती जसविंद्र कौर बाठ तथा समस्त सैन्य भाईचारा यह मांग कर रहा है कि 12 पुलिस कर्मियों के खिलाफ बाई नेम केस दर्ज हो।
वहीं पंजाब सरकार की ओर से नियुक्त एक आई.ए.एस. अधिकारी द्वारा जांच करने के कार्य को बाठ परिवार ने ठुकरा दिया है और सी.बी.आई. जांच की मांग की है। 22 मार्च को पटियाला के डी.सी. कार्यालय के समक्ष शांतमयी ढंग से विरोध-प्रदर्शन करने के लिए पूर्व सैनिक एकत्रित हुए। यह तो अब समय ही बताएगा कि सैनिकों की आबरू के साथ जुड़ा मसला क्या रुख दिखाएगा? 20 मार्च को जब लेखक सेना के मोहाली स्थित कर्नल गुरप्रकाश सिंह विर्क को-आर्डीनेटर की ओर से पूर्व सैनिकों की बैठक में रणनीति तय करने के लिए जा रहा था तो जग बाणी की 20 मार्च वाली अखबार के पृष्ठ पांच पर यह समाचार पढऩे को मिला कि अमृतसर में एक जवान के साथ पंजाब पुलिस के कर्मचारी की ओर से मारपीट करने के साथ जातिसूचक शब्द भी बोले गए। पंजाब के अनुसूचित जाति आयोग के चेयरमैन जसबीर सिंह की दखलअंदाजी के बाद ही केस दर्ज हुआ। सेना के साथ दुव्र्यवहार, नाइंसाफी और मारपीट के मामले अक्सर होते रहते हैं और उनकी कोई पूछताछ नहीं करता। पंजाब सरकार की ओर से सैन्य भाईचारे की अनदेखी करना उसे महंगा पड़ सकता है।
बाज वाली नजर : पुलिस अधिकारियों की ओर से जिस दरिंदगी के साथ कर्नल बाठ के साथ दुव्र्यवहार किया गया है उसका असर समस्त सेना पर भी पडऩा स्वाभाविक होगा। चाहिए तो यह था कि स्टेशन हैडक्वार्टर तुरन्त हरकत में आकर जरूरी कार्रवाई करता। मोहाली मीटिंग के दौरान विंग कमांडर अरविंद ने यह सवाल किया कि सेना के मुख्यालय में आर.टी. किसलिए हैं? सेना मुख्यालय को चाहिए कि वह अपने स्तर पर कार्रवाई करने के साथ-साथ राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग को भी बनती कार्रवाई करने के लिए अपील करता। सी.डी.एस. को चाहिए कि रक्षा मंत्री को भरोसे में लेकर सैन्य वर्ग के समस्त कल्याण हेतु राष्ट्रीय नीति और राष्ट्रीय आयोग कायम किया जाए। उल्लेखनीय है कि मोहाली स्थित सैन्य भाईचारे की विशेष हंगामी बैठक में ब्रिगेडियर हरवंत सिंह, कर्नल सोही, कर्नल विर्क और कैप्टन मुल्तानी, कैप्टन सिद्धू तथा कुछ अन्य अधिकारियों द्वारा अपने विचार रखने के उपरांत कुछ प्रस्ताव पास किए गए और अपनी मांगें भी रखी गईं। इस मौके पर कहा गया है कि 12 पुलिस अपराधी अधिकारियों के खिलाफ बाईनेम एफ.आई.आर. दर्ज करवाकर कड़ी सजा दिलवाई जाए वहीं सर्वोच्च न्यायालय या हाईकोर्ट की ओर से उच्च स्तरीय न्यायिक जांच करवाई जाए। धारा 366 के तहत पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
सैन्य मसलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की जाए। संसद की स्थायी मामलों से संबंधित कमेटी ने अपनी पिछली रिपोर्ट में यह दर्ज किया था कि हर तीन महीने के उपरांत हर जिला स्तर पर सैनिकों की समस्याओं को लेकर बैठकें कर इनकी तकलीफें दूर की जाएं जोकि नहीं हो रहा। यदि समस्त सैन्य भाईचारा पार्टी स्तर से ऊपर उठ कर एकजुटता के साथ राजनीतिक नेताओं को संयुक्त तौर पर चुनौती देगा तो ही कोई इंसाफ की उम्मीद की जा सकती है।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)