Edited By ,Updated: 01 Oct, 2024 05:53 AM
धन संचय मानव जीवन की प्राथमिकता मानना भले ही उपयुक्त न हो किंतु आत्मनिर्भरता के स्तर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना अपने आप में बहुत महत्व रखता है; विशेष रूप से वृद्धावस्था में, जब अप्रत्याशित रूप से बढ़त बनाते जा रहे रोगों के समुचित उपचार हेतु...
धन संचय मानव जीवन की प्राथमिकता मानना भले ही उपयुक्त न हो किंतु आत्मनिर्भरता के स्तर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना अपने आप में बहुत महत्व रखता है; विशेष रूप से वृद्धावस्था में, जब अप्रत्याशित रूप से बढ़त बनाते जा रहे रोगों के समुचित उपचार हेतु पर्याप्त धनराशि की आवश्यकता महसूस होने लगे। राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुस्थिति का अवलोकन करें तो नियमित आय स्रोत उपलब्ध न होने के कारण बुजुर्गों की एक बड़ी संख्या चिकित्सीय लाभ उठाने से वंचित रह जाती है। इसी बात को संज्ञान में रखकर हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ की परिधि को विस्तार देते हुए , 70 वर्ष अथवा इससे अधिक आयु वर्र्ग के सभी वरिष्ठ नागरिकों को इसमें शामिल करने का निर्णय लिया है।
वास्तव में यह विचार लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भाजपा द्वारा जारी संकल्प पत्र का ही अंश है, जिसके तहत सरकार बनने पर देश के सभी बुजुर्गों को मुफ्त इलाज मुहैया करवाने का वायदा किया गया था। ‘आयुष्मान भारत’ योजना के अंतर्गत, देश के लगभग 4.5 करोड़ परिवारों के करीब 6 करोड़ वरिष्ठजनों को 5 लाख रुपए के नि:शुल्क स्वास्थ्य बीमा कवर से लाभान्वित करने की बात कही जा रही है। इसके अनुसार, उन्हें बिना किसी भेदभाव अलग से कार्ड जारी किए जाएंगे, भले ही उनकी सामाजिक व आॢथक स्थिति कैसी भी हो। परिवार में 70 साल के दो बुजुर्ग होने पर उन्हें इस योजना का लाभ सांझे तौर पर मिलेगा। 2018 में सरकार द्वारा आरंभ की गई इस योजना में पहले केवल निर्धन वर्ग ही 5 लाख तक के कैशलैस कवर के जरिए इसका लाभार्थी बन सकता था। निम्न वर्ग के जो वरिष्ठ नागरिक पूर्व में ही इस योजना का लाभ उठा रहे थे, उन्हें अब 5 लाख रुपए टॉप-अप कवर मिल सकेगा। 70 वर्ष से अधिक उम्र के जो वरिष्ठ नागरिक पहले ही केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजनाओं व अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं, वे विकल्प के रूप में पुरानी अथवा नई योजना में से किसी एक का चयन कर सकते हैं।
परिवर्तित समय की बात करें तो हमारा सामाजिक परिदृश्य बड़ी तेजी से बदल रहा है। आजीविका उपार्जन हेतु परदेस जाने की विवशता अथवा स्वतंत्र जीवन जीने की अभिलाषा के चलते संयुक्त परिवार व्यवस्थाएं टूट रही हैं, जिसका सीधा असर बुजुर्गों के रहन-सहन पर पड़ा है। एकाकीपन का दंश सहने के साथ निरंतर गिरता स्वास्थ्य संभालने की सोच एक बड़ी चिंता बनकर उभरने लगी है। राष्ट्रीय स्तर पर बुजुर्गों को आर्थिक सुदृढ़ता, आवासीय सुरक्षा अथवा संतोषजनक चिकित्सीय सुविधा मुहैया करवाने के विषय में हमारी व्यवस्थाएं अनेक पाश्चात्य देशों की अपेक्षा कहीं पीछे हैं।
निजी क्षेत्र की चिकित्सा महंगी होने के कारण बहुत से लोगों की पहुंच से बाहर है जबकि सरकारी चिकित्सा का ढांचा संतोषजनक नहीं आंका जा सकता। महंगाई के दौर में संसाधनों की कमी के चलते अतिरिक्त खर्च उठा पाना सभी के लिए संभव नहीं। नाममात्र की जमापूंजी यदि दैैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही सीमित हो तो ऐसे में समस्याओं का गहराना स्वाभाविक है। ‘हैल्पएज इंडिया’ एन.जी.ओ. द्वारा किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण से संबद्ध आंकड़े, भारत के कम से कम 47 प्रतिशत वृद्धजन आर्थिक रूप से अपने परिवारों पर आश्रित होने तथा 34 प्रतिशत बुजुर्ग पैंशन एवं सरकारी नकद हस्तांतरण पर निर्भर होने की बात बताते हैं।
‘कोलियर्स इंडिया’ की एक रिपोर्ट के अनुमानानुसार, वैश्विक स्तर पर अगले तीन दशकों में 60 वर्ष से ऊपर के 2.1 अरब लोगों में से, भारत की हिस्सेदारी 17' होगी, जोकि देश में वरिष्ठ नागरिक देखभाल के लिए महत्वपूर्ण मांग वृद्धि का संकेत देने के साथ स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करती है। अनुभवी बुजुर्ग देश की अमूल्य धरोहर हैं। उनका जीवन चिंतामुक्त बनाना परिवार, समाज, प्रशासन व सत्तारूढ़ सरकारों का प्रथम दायित्व होना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से व्यय वहन करने वाली ‘आयुष्मान भारत’ योजना नि:संदेह बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक एवं स्वस्थ जीवन जीने की दिशा में एक प्रभावी कदम सिद्ध हो सकती है बशर्ते कार्यान्वयन प्रक्रिया को सतही आधार पर प्रत्येक प्रकार से ठोस बनाकर सुविधाओं का दुरुपयोग रोकना सुनिश्चित किया जाए। सरकारों के लिए यह देखना भी अनिवार्य है कि 6 करोड़ वृद्धजनों के लिए इलाज हेतु जिलों में पर्याप्त सुविधाएं भी उपलब्ध हैं या नहीं! ढांचा उपयुक्त न होने से बहुतेरी योजनाएं मात्र कागजी कार्रवाई तक ही सीमित रह जाती हैं।
केंद्र व राज्य प्रायोजित योजनाओं का नियमित तथा सुचारू संचालन हो तो ही बुजुर्गों की अवस्था को लेकर समाज की वर्तमान तस्वीर बदल सकती है। बदलती तस्वीर का सकारात्मक रुख अपने आप में सर्वांगीण राष्ट्रीय विकास का द्योतक है, जो समयानुसार मिलते अनुभवों के साथ अपना दायरा विस्तृत करते हुए इससे जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भी स्वयंमेव अपेक्षित विस्तार देता चला जाता है।-दीपिका अरोड़ा