Edited By ,Updated: 13 Mar, 2025 04:28 AM

लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लेकर चल रही बहस ने इस बात पर गरमा-गर्म बहस छेड़ दी है कि क्या जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए या दंडित किया जाना चाहिए।
इस विवाद के केंद्र...
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लेकर चल रही बहस ने इस बात पर गरमा-गर्म बहस छेड़ दी है कि क्या जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए या दंडित किया जाना चाहिए।
इस विवाद के केंद्र में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन का यह दावा है कि दक्षिणी राज्य, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण सहित विभिन्न मापदंडों में बेहतर प्रदर्शन किया है, अगर प्रस्तावित परिसीमन मौजूदा नियमों के अनुसार किया जाता है तो उन्हें ‘दंडित’ किया जाएगा।
परिसीमन प्रक्रिया, जिसमें जनसंख्या के आधार पर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण शामिल है, अगले साल होने वाली है। यह प्रक्रिया आमतौर पर प्रत्येक जनगणना के बाद की जाती है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 82 द्वारा अनिवार्य है।हालांकि, वर्तमान निर्वाचन क्षेत्रों को 1971 की जनगणना के आधार पर तैयार किया गया था क्योंकि सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को 25 वर्षों के लिए स्थिर करने का निर्णय लिया था। बाद के संशोधनों ने इस फ्रीज को 2026 तक बढ़ा दिया है। कार्नेगी एंडोमैंट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 5 दक्षिणी राज्यों में 26 सीटों का नुकसान होने का अनुमान है जबकि पश्चिम बंगाल,ओडिशा और पंजाब जैसे अन्य राज्य भी आनुपातिक रूप से सीटें खो सकते हैं।निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या पर अंतिम निर्णय सरकार द्वारा स्थापित परिसीमन आयोग द्वारा किया जाएगा। 1951 की जनगणना के बाद से भारत की जनसंख्या में काफी वृद्धि हुई है जिसमें 359 मिलियन की जनसंख्या दर्ज की गई थी।
1976 में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 500 से बढ़कर 543 हो गई है। अनुमान है कि देश की वर्तमान जनसंख्या को देखते हुए निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या 700 से अधिक हो सकती है। स्टालिन की चिंताएं इस तथ्य में निहित हैं कि दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या वृद्धि को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया है। स्टालिन और दक्षिणी राज्यों के अन्य नेताओं ने मांग की है कि लोकसभा सीटों की संख्या पर रोक को 30 साल और बढ़ाया जाए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि दक्षिणी राज्यों को ‘प्रति-अनुपात’ के आधार पर नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा लेकिन उनकी टिप्पणी में स्पष्टता का अभाव है। इसमें शामिल संवेदनशीलताओं को देखते हुए केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर सावधानी से विचार करना चाहिए और आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए। देश के राजनीतिक परिदृश्य पर परिसीमन के दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना आवश्यक है। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर घट रही है। कुल प्रजनन दर (टी.एफ.आर.) 2.0 तक पहुंच गई है, जो 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। हालांकि जनसंख्या अभी भी बढ़ रही है और इसमें गिरावट शुरू होने में 30 साल और लगेंगे।
परिसीमन का मुद्दा जटिल है और इसमें जनसंख्या वृद्धि, प्रतिनिधित्व और राजनीतिक निहितार्थ सहित विभिन्न कारकों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को दंडित करने की बजाय, केंद्र सरकार को अधिक न्यायसंगत और प्रतिनिधि प्रणाली बनाने का प्रयास करना चाहिए जो जिम्मेदार जनसंख्या नियंत्रण उपायों को पुरस्कृत करे।-विपिन पब्बी