Breaking




नागरिकों के लिए न्याय की आखिरी उम्मीद है न्यायपालिका

Edited By ,Updated: 03 Apr, 2025 04:55 AM

judiciary is the last hope for justice for citizens

चंडीगढ़ में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास पर 15 लाख रुपए की नकदी पहुंचाए जाने के 17 साल बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) की एक अदालत ने सबूतों के अभाव के आधार पर एक पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को बरी कर दिया है।

चंडीगढ़ में उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास पर 15 लाख रुपए की नकदी पहुंचाए जाने के 17 साल बाद, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.) की एक अदालत ने सबूतों के अभाव के आधार पर एक पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को बरी कर दिया है। हालांकि तथ्य यह है कि 15 लाख रुपए की नकदी पहुंचाई गई थी और शायद वह पुलिस के मालखाने में पड़ी है  लेकिन यह सवाल अनुत्तरित है कि नकदी किस लिए और किसके लिए भेजी गई थी। जो लोग बहुत छोटे थे और जिन्हें 13 अगस्त, 2008 को हुआ यह मामला याद नहीं है, उनके लिए यहां कुछ विवरण दिए गए हैं।  पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की न्यायाधीश निर्मलजीत कौर द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई एफ..आई.आर के अनुसार, एक व्यक्ति उनकेआधिकारिक आवास पर एक बैग छोड़ गया था। जब बैग खोला गया तो उसमें से 15 लाख रुपए की नकदी निकली। 

नकदी को देखकर वह चौंक गईं, जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी, उन्हें एक साजिश की बू आई और शायद उन्हें फंसाने की कोशिश की गई। उन्होंने तुरंत पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को सूचित किया जिन्होंने उन्हें एफ..आई.आर. दर्ज करने की सलाह दी। स्थानीय पुलिस ने तब नकदी को अपने कब्जे में ले लिया और एफ .आई.आर. दर्ज की। पुलिस ने उस व्यक्ति का पता लगाया जिसने नकदी पहुंचाई थी। उसने कहा कि वह सिर्फ एक कोरियर था और नकदी उसे दिल्ली के एक होटल व्यवसायी ने डिलीवरी के लिए दी थी। बाद की जांच में पता चला कि नकदी न्यायमूर्ति निर्मलजीत कौर के लिए नहीं बल्कि उसी उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति निर्मल यादव के नाम से मिलती-जुलती किसी अन्य के लिए थी। हालांकि, उन्होंने इस बात से जोरदार इंकार किया कि नकदी उनके लिए थी। मामला सी.बी.आई. को सौंप दिया गया जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह पैसा हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता  संजीव बंसल के एक क्लर्क द्वारा पहुंचाया गया था, जिसने कथित तौर पर न्यायमूर्ति कौर को फोन किया था और कहा था कि यह गलती से उनके आवास पर पहुंचा दिया गया था। एक साल बाद, सी.बी.आई. ने एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की लेकिन सी.बी.आई. अदालत ने आगे की जांच का आदेश दिया। 

जांच के एक और दौर और आरोपपत्र दाखिल करने के  बाद, जनवरी 2014 में विशेष सी.बी.आई. अदालत ने आरोपियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया, जब सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्रवाई पर रोक लगाने की उनकी याचिका खारिज कर दी। अब सी.बी.आई. अदालत ने सबूतों के अभाव और गवाहों के बयानों में विरोधाभास के आधार पर जस्टिस निर्मल यादव और अन्य आरोपियों को बरी कर दिया है। अदालत द्वारा विस्तृत फैसला अभी जारी किया जाना बाकी है। यह फैसला हाईकोर्ट  के मौजूदा जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से करोड़ों रुपए की आंशिक रूप से जली हुई नकदी बरामद होने के कुख्यात मामले के तुरंत बाद आया है। यह मामला इतना हालिया है कि इसे याद नहीं किया जा सकता लेकिन दोनों मामलों ने न्यायिक जवाबदेही और भ्रष्टाचार को सुर्खियों में ला दिया, हालांकि दोनों ही मामलों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया है। 

अन्य लोक सेवकों के विपरीत, न्यायाधीश अपनी सम्पत्ति या नैटवर्क के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए बाध्य नहीं हैं  और अधिकांश मामलों में उन्होंने ऐसा नहीं किया है। 1997 में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा की अध्यक्षता में एक बैठक में, सुप्रीमकोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था, ‘प्रत्येक न्यायाधीश को अपने नाम पर, अपने जीवनसाथी या उन पर निर्भर किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर अचल संपत्ति या निवेश के रूप में सभी संपत्तियों की घोषणा मुख्य न्यायाधीश के समक्ष करनी चाहिए।’ यह न्यायाधीशों की संपत्तियों के सार्वजनिक प्रकटीकरण का आह्वान नहीं था  बल्कि केवल संबंधित मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रकटीकरण था। बाद में 2009 में, सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने न्यायालय की वैबसाइट पर न्यायाधीशों की संपत्ति घोषित करने का संकल्प लिया लेकिन साथ ही कहा कि यह शुद्ध रूप से स्वैच्छिक आधार पर  किया जा रहा है। सुप्रीमकोर्ट और उच्च न्यायालयों के कुछ न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति घोषित की  लेकिन वैबसाइट को 2018 से अपडेट नहीं किया गया है और इस प्रकार वर्तमान में बैठे न्यायाधीशों का ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। 

एक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के उच्च न्यायालयों के 770 न्यायाधीशों में से केवल 97 ने सार्वजनिक रूप से अपनी संपत्ति और देनदारियों की घोषणा की है। यह बताना जरूरी है कि कार्मिक, लोक शिकायत और विधि एवं न्याय पर संसद की समिति ने 2023 में सिफारिश की थी कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सम्पत्ति और देनदारियों का अनिवार्य खुलासा सुनिश्चित करने के लिए कानून पेश किया जाना चाहिए। हालांकि अभी तक इस सिफारिश पर कोई प्रगति नहीं हुई है। सभी सांसदों को अपनी संपत्ति की सूची लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति को देनी होती है। हालांकि इन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाता है  लेकिन सूचना के अधिकार (आर.टी.आई.) के माध्यम से इन्हें प्राप्त किया जा सकता है।अदालतें अक्सर कहती हैं कि सूरज की रोशनी सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है। इसका मतलब है कि हर काम में पारदॢशता है। जाहिर है कि ऐसा तब नहीं किया जाता जब न्यायपालिका पर नजर रखी जाती है, चाहे वह न्यायाधीशों के चयन में हो या न्यायाधीशों की सम्पत्ति का खुलासा करने में।  न्यायपालिका की विश्वसनीयता पवित्र है क्योंकि यह नागरिकों के लिए न्याय की आखिरी उम्मीद है।-विपिन पब्बी
 

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8
IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!