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केजरीवाल : एंग्री यंगमैन से लेकर महत्वाकांक्षी नेता तक

Edited By ,Updated: 11 Apr, 2023 03:53 AM

kejriwal from angry young man to ambitious leader

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2012 में अपनी आम आदमी पार्टी (आप) की शुरूआत की और अगले साल सत्ता के लिए अपनी दावेदारी मजबूत की तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि उन्हें इतने बड़े राजनीतिक मंच पर जगह मिलेगी और वह खुद को बनाए रखेंगे।

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2012 में अपनी आम आदमी पार्टी (आप) की शुरूआत की और अगले साल सत्ता के लिए अपनी दावेदारी मजबूत की तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि उन्हें इतने बड़े राजनीतिक मंच पर जगह मिलेगी और वह खुद को बनाए रखेंगे। एक दशक बाद आज केजरीवाल एक एंग्री यंगमैन की भूमिका से एक महत्वाकांक्षी युवा के रूप में बदल गए हैं जिनके पास अपने और अपनी युवा पार्टी के लिए भव्य योजनाएं हैं। दिल्ली और पंजाब दो राज्यों के साथ अरविंद केजरीवाल 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्ष का नेतृत्व करना चाहते हैं। इसके लिए उनके तीन लक्ष्य हैं : 

1. ज्यादा से ज्यादा राज्यों में अपनी पार्टी का विस्तार करना।
2. देश की सियासी बुलंदियों पर जगह पाना। 
3. खुद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्राथमिक चुनौतीकत्र्ता के रूप में स्थापित करना। 

उनका आशावाद उनकी हालिया भविष्यवाणी में सामने आता है जिसके तहत उन्होंने कहा, ‘‘समय बहुत शक्तिशाली है, दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं। अगर कोई सोचता है कि वह हमेशा सत्ता में रहेगा तो ऐसा नहीं होने वाला है। आज हम दिल्ली में सत्ता में हैं और भाजपा केन्द्र में है तो कल ऐसा हो सकता है कि हम केन्द्र की सत्ता में हों।’’ 

‘आप’ की राजनीतिक यात्रा में नाटकीय मोड़ देखे गए हैं। पार्टी मान्यता से पूरी हो गई है और भाजपा कांग्रेस से आगे निकल चुकी है। वहीं ग्रैंड ओल्ड पार्टी सिकुड़ कर रह गई है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से जन्मी ‘आप’ ने 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को पटखनी दी थी। 49 दिनों के बाद केजरीवाल ने 2015 और 2021 में लौटने के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। ‘आप’ के पास लोकसभा सांसद नहीं हैं लेकिन राज्यसभा में उसके 10 सदस्य हैं।  दो राज्यों दिल्ली और पंजाब में सत्ता को नियंत्रित करने वाली कांग्रेस और भाजपा के अलावा ‘आप’ एकमात्र पार्टी है। 

दिल्ली में 2019 के संसदीय चुनावों में पार्टी बुरी तरह हार गई। दूसरे स्तर पर ‘आप’ को झटका लगा क्योंकि वह हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में एक प्रतिशत भी वोट जुटा नहीं पाई लेकिन पिछले साल पंजाब में भारी जीत ने लोगों की खुशी वापस ला दी। पिछले वर्ष के गुजरात चुनावों के बाद ‘आप’ फिर से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर रही है और यह नौवीं राष्ट्रीय पार्टी है। ‘आप’ की तुलना में सपा, जद (यू), तेलुगू देशम, राजद और भारतीय राष्ट्र समिति अपने क्षेत्र से आगे नहीं बढ़ सकीं। राकांपा, टी.एम.सी., सी.पी.आई. और बसपा जैसी पार्टियों को मान्यता रद्द करने का सामना करना पड़ता है। 

कई अन्य विपक्षी दलों की तरह ‘आप’ को भी केन्द्र से चुनौती का सामना करना पड़ा। इससे पार्टी का मनोबल गिरा है और भय का वातावरण बना हुआ है। पक्ष-विपक्ष पर विचार करने के बाद ‘आप’ प्रमुख ने अपने 2 मंत्रियों मनीष सिसोदिया और सत्येन्द्र जैन की हालिया गिरफ्तारी के बाद विशेष रूप से भाजपा को आगे बढऩे का मौका दिया है। उदाहरण के लिए 2 प्रतिद्वंद्वियों ‘आप’ और कांग्रेस के बीच आपसी बेचैनी के बावजूद केजरीवाल ने हाल ही में अदालत के फैसले और लोकसभा से कांग्रेसी नेता राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद भाजपा की काफी आलोचना की। 

‘आप’ प्रमुख केजरीवाल ने मोदी पर सबसे भ्रष्ट प्रधानमंत्री होने का आरोप तक लगाया। उन्होंने उद्योगपति गौतम अडानी से कथित निकटता के लिए प्रधानमंत्री की आलोचना की जो दुनिया के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए। पिछले सत्र में संयुक्त संसदीय जांच की मांग में केजरीवाल विपक्ष में शामिल हो गए। उन्होंने मोदी की शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाया और पूछा है कि क्या उनकी ‘डिग्री’ फर्जी है। यह टिप्पणी गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा केजरीवाल पर जुर्माना लगाने के बाद की गई। पिछले साल के विधानसभा चुनावों के दौरान केजरीवाल अपने दिल्ली मॉडल के बारे में बात करते हुए शेरों की मांद गुजरात गए थे। मोदी अपने गुजरात मॉडल का प्रचार करके सत्ता में आए। 

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी को चुनौती देने के लिए केजरीवाल खुले तौर पर अन्य विपक्षी नेताओं में शामिल हो गए। केजरीवाल के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले कई अगर-मगर हैं। ‘आप’ रोजी-रोटी के मुद्दों और आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। केजरीवाल हिन्दू मतदाताओं को आकॢषत करने के लिए नरम हिन्दुत्व का खेल खेलते हैं। केजरीवाल मुफ्त की पेशकश कर मतदाताओं को लुभाना चाहते हैं लेकिन उत्तर की रणनीति दक्षिणी राज्यों में काम कर सकती है और नहीं भी। 

सफल होने के लिए केजरीवाल को अपनी पार्टी का निर्माण करना चाहिए और अपने ‘दिल्ली मॉडल’ को सफलतापूर्वक प्रस्तुत करना चाहिए। केजरीवाल को दूसरी पंक्ति के राज्य के नेताओं  का निर्माण करने की जरूरत है। पार्टी के संस्थापक सदस्य जैसे कि प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, शाजिया इलमी, कुमार विश्वास, आशुतोष और सिविल सोसायटी के सदस्य पिछले एक दशक में केजरीवाल की उच्चता का विरोध करते हुए आम आदमी पार्टी छोड़ चुके हैं। 

विधानसभा चुनाव से पहले कम से कम 11 विधायकों ने या तो पार्टी छोड़ दी या उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। केजरीवाल को सारा ध्यान अपने ऊपर केन्द्रित करने की बजाय पार्टी के दूसरे सदस्यों की महत्ता पर भी देना चाहिए। इसके अलावा उन्हें अन्य विपक्षी नेताओं के साथ दोस्ताना संबंध कायम करने चाहिएं और कांग्रेस के साथ दूरी को भी कम करना चाहिए। यदि 2 फ्रंट उत्पन्न होते हैं तो कांग्रेस कभी भी केजरीवाल का समर्थन नहीं करेगी। सभी पाॢटयों के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले 2023 के विधानसभा चुनाव एक ट्रायल थे। ‘आप’ जीते या हारे यह सब कुछ मतदाताओं की प्रतिक्रिया और चुनावी गणना के ऊपर निर्भर करता है।-कल्याणी शंकर  
 

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