Edited By ,Updated: 19 Sep, 2024 04:56 AM
हार -जीत तो दिल्ली के मतदाता तय करेंगे, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपनी जगह आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के दांव से कई निशाने साधने की कोशिश की है। शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद से ही भाजपा, केजरीवाल का इस्तीफा मांगती रही, पर उन्होंने दिया अपनी...
हार -जीत तो दिल्ली के मतदाता तय करेंगे, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अपनी जगह आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के दांव से कई निशाने साधने की कोशिश की है। शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद से ही भाजपा, केजरीवाल का इस्तीफा मांगती रही, पर उन्होंने दिया अपनी रणनीति के मुताबिक। 13 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिलने के 2 दिन बाद केजरीवाल ने और 2 दिन बाद इस्तीफा देने का ऐलान किया। 17 सितंबर को इस्तीफा हो गया और ‘आप’ विधायक दल का नया नेता चुने जाने के बाद आतिशी ने सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया। केजरीवाल ने कहा कि विधानसभा चुनाव में जनादेश के जरिए दिल्ली के मतदाताओं द्वारा उन्हें ‘ईमानदार’ मान लेने के बाद ही पद लेंगे। जाहिर है, आतिशी चुनाव तक ही मुख्यमंत्री रहेंगी।
वैसे नेतृत्व के प्रति निष्ठा के प्रदर्शन में उन्होंने तो यह भी कह दिया कि विश्वास जताने के लिए वह आभारी हैं, पर दिल्ली का एक ही मुख्यमंत्री है और वह हैं केजरीवाल। केजरीवाल चाहते हैं कि महाराष्ट्र और झारखंड के साथ ही नवंबर में दिल्ली विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं। जाहिर है, चुनाव का समय चुनाव आयोग तय करेगा, पर केजरीवाल ने उसके लिए अपना रणनीतिक दांव अभी से चल दिया है। बेशक सर्वोच्च न्यायालय से केजरीवाल को सिर्फ जमानत मिली है, वह शराब घोटाले में बरी नहीं हुए पर दोषी भी तो करार नहीं हुए हैं!जमानत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की 2 सदस्यीय पीठ के एक सदस्य न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुईयां ने सी.बी.आई. पर तल्ख टिप्पणियां भी कीं, जिसने ई.डी. केस में जमानत मिलते ही केजरीवाल को गिरफ्तार करने की तत्परता दिखाई थी, लेकिन जमानत की शर्तों के मद्देनजर मुख्यमंत्री की वैसी भूमिका निभा ही नहीं सकते थे, जिसके लिए केजरीवाल जाने जाते हैं। न नीतिगत फैसले ले सकते थे और न ही लोक-लुभावन घोषणाएं कर सकते थे।
फिर वह चौथी बार जनादेश के लिए मतदाताओं के बीच किस आधार पर जाते? दूसरी ओर भाजपा ‘जमानत पर रिहा अभियुक्त’ करार देते हुए अभियान चलाती। ‘आप’ का चुनाव प्रचार सफाई देने में ही निकल जाता। लोकपाल मुद्दे पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी बनाने वाले केजरीवाल की छवि आक्रामक नेता और वक्ता की रही है। अपने और पार्टी के भविष्य की लड़ाई रक्षात्मक मुद्रा में लडऩा जोखिम भरा हो सकता था। इसलिए उन्होंने ‘पद-मुक्त’ होकर पुरानी आक्रामक छवि में लौटना बेहतर समझा। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर केजरीवाल, राजनीतिक प्रतिशोध की शिकार ‘आप’ के संयोजक के रूप में खासकर भाजपा के विरुद्ध आक्रामक अभियान चलाएंगे। अभियान हरियाणा विधानसभा चुनाव से शुरू होकर दिल्ली, महाराष्ट्र और झारखंड तक जारी रहेगा।
हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत न मिलने से तेलुगु देशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और लोक जनशक्ति पार्टी पर बढ़ गई नरेंद्र मोदी सरकार की निर्भरता के मद्देनजर इन राज्यों के विधानसभा चुनावों का महत्व जगजाहिर है। जनादेश भाजपा के अनुकूल नहीं आया तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के तेवर और आक्रामक हो जाएंगे। नई लोकसभा के अभी तक हुए 2 सत्रों में और संसद के बाहर भी विपक्ष के तेवर सत्तापक्ष को लगातार घेरने वाले नजर आ रहे हैं। पूछा जा सकता है कि इन राज्यों में दिल्ली के अलावा तो कहीं भी ‘आप’ का जनाधार नहीं है। बेशक, लेकिन हरियाणा केजरीवाल का गृह राज्य है।
लोकसभा चुनाव साथ लडऩे वाली कांग्रेस ने कई दौर की बातचीत के बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव में गठबंधन से इंकार कर दिया। अब कांग्रेस की तरह ‘आप’ भी 90 में से 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। केजरीवाल के आक्रामक प्रचार का खतरा कांग्रेस आलाकमान समझ सकता है। ऐसे में अभी भी हरियाणा में तालमेल का रास्ता खोजा जा सकता है, क्योंकि गठबंधन राजनीति में कांग्रेस वहां जैसा बोएगी, वैसा ही उसे दिल्ली में काटना भी पड़ेगा। अगर हरियाणा विधानसभा में आप शून्य है, तो दिल्ली विधानसभा में वही हैसियत कांग्रेस की है। परस्पर तल्खी से तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के भविष्य पर सवालिया निशान ही लगेगा।
विपक्ष के लिए स्टार प्रचारक की भूमिका निभा सकने वाले केजरीवाल महाराष्ट्र और झारखंड में भी ‘आप’ के लिए कुछ सीटों का दबाव बना सकते हैं। वैसे उससे परे भी देखें तो भाजपा की हार विपक्ष की ही जीत होगी। फिर भी यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि केजरीवाल के लिए दिल्ली की सत्ता सबसे अहम् है। बेशक पंजाब में भी ‘आप’ प्रचंड बहुमत से सत्तारूढ़ है। गुजरात और गोवा में भी उसने दम दिखा कर एक दशक के अंदर ही राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल कर लिया है, पर ‘आप’ और केजरीवाल की पहचान दिल्ली से जुड़ी है, जहां वह लगातार तीसरी बार सत्तारूढ़ है। ऐसे में दिल्ली की सत्ता गंवाने का जोखिम आत्मघाती हो सकता है। इसीलिए केजरीवाल ने ‘श्रीमान ईमानदार’ की छवि बहाल करने के लिए रक्षात्मक के बजाय आक्रामक होने का विकल्प चुना है।
इस बार पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चेहरा बनाए जाने की अटकलें थीं, जो अमेठी हारने के बाद नया ठिकाना तलाश रही हैं, पर उससे पहले ही केजरीवाल ने आतिशी को आगे कर दिया है। शानदार शैक्षणिक पृष्ठभूमि वाली आतिशी ने कम समय में ही दिल्ली में जैसी छवि बनाई है, उन पर वैसे हमले कर पाना तो भाजपा के लिए मुश्किल ही होगा, जैसे हमले केजरीवाल पर करने की रणनीति उसने बनाई थी। आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी। बेशक पहली महिला मुख्यमंत्री भाजपा ने बनाई थीं सुषमा स्वराज, पर उनका कार्यकाल मात्र 52 दिन रहा। शीला दीक्षित 15 साल कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहीं, जो मूलत: उत्तर प्रदेश से थीं। फिर आतिशी उस पंजाबी समुदाय से हैं, जिसका बड़ा वर्ग भाजपा का परंपरागत समर्थक रहा है।-राज कुमार सिंह