नेताओं की छंटनी : अकाली दल (ब) के लिए फायदा या नुकसान

Edited By ,Updated: 01 Jun, 2024 05:28 AM

layoff of leaders benefit or loss for akali dal b

पंजाब में लोकसभा चुनावों के शुरूआती दौरे के दौरान ही राज्य भर में अपनी-अपनी पार्टी से नाराज हुए नेता दूसरी पार्टियों में शामिल होने लग पड़े थे। जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों का माहौल गर्माया तो यह सिलसिला भी काफी तेज हो गया। अकाली दल बादल भी इस चक्रव्यूह...

पंजाब में लोकसभा चुनावों के शुरूआती दौरे के दौरान ही राज्य भर में अपनी-अपनी पार्टी से नाराज हुए नेता दूसरी पार्टियों में शामिल होने लग पड़े थे। जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों का माहौल गर्माया तो यह सिलसिला भी काफी तेज हो गया। अकाली दल बादल भी इस चक्रव्यूह में घिरता नजर आया। मगर अब 1 जून को लोकसभा के लिए होने वाली वोटिंग से पहले अकाली दल एक ओर पुराने अकाली नेताओं को घर वापसी के लिए मना रहा था वहीं दूसरी ओर अकाली दल ने हैरानीजनक तरीके से दो बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। 

अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल जोकि पहले ही इस मुश्किल दौर में से गुजर रहे थे। शिरोमणि अकाली दल के बड़े नेता जिनमें प्रमुख तौर पर केंद्र सरकार में पूर्व डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल, उनका बेटा पूर्व विधायक इंद्र इकबाल सिंह अटवाल, पूर्व विधायक पवन टीनू, दलबीर सिंह गिल, पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका की आई.ए.एस. बहू परमपाल कौर सिद्धू के अतिरिक्त बहुत सारे बड़े नेता शामिल हैं जो पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। नेताओं का पार्टी छोडऩा कोई अचानक घटी घटना नहीं है बल्कि बहुत सारे नेताओं का पार्टी के कामकाज के तरीके और पार्टी अध्यक्ष के निकट सहयोगी नेताओं की ओर से पार्टी के टकसाली और उच्च रुतबे वाले नेताओं को बनता सम्मान न देना ही नतीजा था। पिछले समय बहुत सारे अकाली नेता जो पार्टी में इन्हीं कारणों के चलते घुटन महसूस कर रहे थे और पार्टी को भी इनकी नाराजगी के बारे में जानकारी होने के बावजूद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष के साथ हर समय साथ रहने वाले नेता इन सबकी अनदेखी करते रहे। 

उदाहरण के तौर पर सुखदेव सिंह ढींडसा, बीबी जगीर कौर, दिवंगत रणजीत सिंह तलवंडी, पवन कुमार टीनू और तलबीर सिंह गिल लम्बे समय तक अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं। यहां तक कि पूर्व मंत्री सिकंदर सिंह मलूका ने भी दावा किया है कि उन्होंने अपनी बहू और बेटे की नाराजगी के बारे में पहले से ही आगाह कर दिया था। सुखबीर सिंह बादल की ओर से दिए गए बयानों से यह प्रतीत होता था कि अकाली दल अब पुराने टकसाली परिवारों तथा अन्य नाराज नेताओं की घर वापसी के लिए कोई सार्थक मुहिम छेड़ेगा और कुछ नेताओं को वापस लौटाने में कामयाब भी होगा। इस दौरान टकसाली परिवार संत करतार सिंह खालसा के बेटे मंजीत सिंह खालसा ने भी अकाली दल पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए अकाली दल को अलविदा कह दिया। 

सुखबीर सिंह बादल की ओर से पहले पंजाब के पूर्व स्पीकर निर्मल सिंह काहलों के बेटे और डेरा बाबा नानक के क्षेत्रीय इंचार्ज रवि किरण सिंह काहलों को पार्टी की प्रारंभिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया और बाद में पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बेटे तथा भूतपूर्व मंत्री जोकि रिश्ते में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के बहनोई हैं, को भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। रवि किरण सिंह काहलों क्षेत्र प्रमुख थे और अपने क्षेत्र में अपना रसूख रखते थे। मगर उनका पार्टी में कुछ वर्ष पूर्व पार्टी से बर्खास्त किए गए पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह के साथ विरोध चल रहा था। काहलों यह आरोप लगाते रहे हैं कि लंगाह ने विधानसभा चुनावों में उनका विरोध किया था। मगर अब गुरदासपुर में पार्टी उम्मीदवार डा. दलजीत सिंह चीमा जोकि पार्टी अध्यक्ष के वफादार माने जाते  हैं, ने रवि किरण सिंह काहलों को पार्टी विरोधी कार्रवाइयों के दोषों के अंतर्गत पार्टी में से बर्खास्त करवा कर सुच्चा सिंह लंगाह को अकाली दल में शामिल करने का रास्ता सीधा कर दिया है। 

आदेश प्रताप सिंह कैरों जो कई बार विधायक और मंत्री रह चुके हैं, को बिना कोई कारण बताए पार्टी में से निकाल दिया गया। अकाली दल के इतिहास में यह पहला मौका है कि चुनावों के दौरान इतने बड़े कद के नेताओं को पार्टी में से निकाल दिया गया या फिर बड़े नेता पार्टी को अलविदा कह गए। इस सारे व्यवहार से प्रतीत होता है कि पार्टी अध्यक्ष को पार्टी का विरोध करने वाले नेताओं को अकाली दल में रखने का अब कोई औचित्य नहीं रह गया। यह तो भविष्य ही बताएगा कि नेताओं की छंटनी अकाली दल बादल का फायदा करती है या फिर नुकसान।-इकबाल सिंह चन्नी (भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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