‘लव जिहाद’ को अब दफन कर दिया जाए

Edited By ,Updated: 13 Sep, 2024 08:26 AM

love jihad should be buried now

हरियाणा के गौरक्षकों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपनी कार चला रहे एक लड़के का 25 किलोमीटर तक पीछा किया, उस बेचारे को पकड़ लिया और उसे गोली मार दी।

हरियाणा के गौरक्षकों ने राष्ट्रीय राजमार्ग पर अपनी कार चला रहे एक लड़के का 25 किलोमीटर तक पीछा किया, उस बेचारे को पकड़ लिया और उसे गोली मार दी। वह आर्यन मिश्रा था, जो एक अगड़ी जाति का हिंदू था, जिसने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि उसका पीछा किया जा रहा है, लेकिन वह नहीं जानता था कि क्यों। उसने सोचा होगा कि बदमाश लुटेरे हैं और तब उसकी पहली प्रतिक्रिया तेजी से गाड़ी चलाकर भागना होगा! गौरक्षकों ने 4 गोलियां चलाईं, जिनमें से 2 उनके निशाने पर लगीं।

जब पीड़ित की पहचान स्थापित हुई, तो गौरक्षकों, जिनका एकमात्र हित मुस्लिम कसाइयों और गोमांस खाने वालों और व्यापारियों को दंडित करना है, के चेहरे पर शॄमदगी-सी छा गई। 2014 से पहले भाजपा के समर्थन आधार का मूल मुख्य रूप से अगड़ी जातियों से था। गलत पहचान का यह मामला गौरक्षकों के खिलाफ कई वफादारों को भड़का सकता है, अगर उन्हें पैदा करने वाली पार्टी के खिलाफ नहीं। गौरक्षकता एक दोधारी हथियार है। यह संभावित पीड़ितों को डरा सकता है। लेकिन यह इन अनौपचारिक रूप से सशक्त पुलिसकर्मियों को अपराधी भी बना सकता है! एक समानांतर उदाहरण पुलिस प्रतिष्ठान में ही पाया जा सकता है, जहां एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट के उभरने से वर्दीधारी पुरुषों द्वारा अपराध किए जाने लगे हैं।

अंडरवल्र्ड से निपटने की तुलना में वर्दीधारी अपराधियों को रोकना कहीं अधिक कठिन है। एक ईमानदार और दृढ़ निश्चयी पुलिस नेता, जिसका अपने लोगों और आम जनता द्वारा सम्मान किया जाता है, वह गैंगस्टरों को काबू में कर सकता है। लेकिन एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट, जिनका जन्म पुलिसकर्मियों की एक प्रजाति के रूप में आपराधिक न्याय प्रणाली की विफलता का परिणाम है, को नियंत्रित करना निश्चित रूप से अधिक कठिन है।

एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट अधीनस्थ अधिकारियों के रैंक से लिए जाते हैं, जो साहस, पहल और नेतृत्व के लिए एक स्वभाव से भरे होते हैं। उन्हें जनता द्वारा स्वीकार किया जाता है क्योंकि वे जांचकत्र्ता, अभियोजक और न्यायाधीश, सभी की भूमिका निभाते हुए फास्ट-ट्रैक न्याय प्रदान करते हैं। जनता का समर्थन राजनीतिक समर्थन में बदल जाता है और जब राजनीतिक प्रतिष्ठान उन्हें पार्टी के रक्षक के रूप में अपनाता है तो प्रबुद्ध पुलिस नेताओं के लिए भी उन्हें हतोत्साहित करना लगभग असंभव है।

गौरक्षकों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है। वे तब तक खुद कानून बन जाते हैं जब तक कि पहले वॢणत ‘गलत पहचान’ मामले जैसी आपदा न हो जाए। बजरंग दल के सदस्यों को इन सतर्कता समूहों में शामिल किया जाता है क्योंकि यह उन नौकरियों के लिए भर्ती का सबसे सुविधाजनक स्रोत है जिनमें बाहुबल का उपयोग होता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस खतरनाक घटना का संज्ञान लिया है। गरीब मुसलमान, जिनके लिए प्रोटीन का एकमात्र स्रोत भैंस का मांस है, लगातार निगरानी के दायरे में आ रहे हैं। निगरानी करने वाले लोग निजी घरों पर हमला करते हैं और सड़क पर वाहनों को रोकते हैं, अगर उन्हें संदेह होता है कि बिक्री या उपभोग के लिए गोमांस ले जाया जा रहा है। 

हरियाणा जैसे राज्यों में पुलिस या तो उनकी गतिविधियों पर आंखें मूंद लेती है या उन्हें समर्थन और प्रोत्साहन देती है।  फर्जी मुठभेड़ों और गौ निगरानी के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बुल्डोजर न्याय पर भी गंभीरता से ध्यान दिया है। अधिकांश नगर पालिकाएं आधिकारिक अनुमति के बिना बनाए गए निर्माणों को ध्वस्त करने के लिए बुल्डोजर रखती हैं। अधिकांश नगर निगम अधिकारी बुल्डोजर का उपयोग उस उद्देश्य के लिए नहीं करते जिसके लिए उन्हें खरीदा गया था। मेरे शहर मुंबई में अवैध निर्माण एक दर्जन से भी कम हैं। लेकिन मेरे शहर मुंबई में अपराधियों को दंडित करने के लिए बुल्डोजर का उपयोग नहीं किया गया है, जितना कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में किया है।

जब उत्तर प्रदेश में सेना की अग्निपथ भर्ती के खिलाफ आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया और राज्य के कई शहरों में सार्वजनिक बसों और अन्य सरकारी संपत्तियों को नष्ट कर दिया गया, तो योगी ने अपने बुल्डोजर को जवाब देने का आदेश नहीं दिया। उन्होंने उस उपयोग को मुसलमानों द्वारा किए गए अपराधों, यहां तक कि छोटे अपराधों के लिए भी आरक्षित रखा। वह भूल जाते हैं कि संविधान कानून तोडऩे वालों की पंथ, जाति या आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करता है। लेकिन यू.पी. में हिंदू लड़कियों से प्यार करने वाले मुस्लिम लड़के अपने दरवाजे पर बुल्डोजर की उम्मीद कर सकते हैं।

लव-जेहाद की बात करें तो, मेरा अपना ईसाई समुदाय, रोमन कैथोलिक, कैथोलिकों और गैर-कैथोलिकों (प्रोटेस्टैंटों सहित, जो ईसाई हैं) के बीच विवाह को तब तक संपन्न करने से मना कर देता था जब तक कि गैर-कैथोलिक साथी रोमन कैथोलिक धर्म में परिवर्तित न हो जाए। पिछले 6 दशकों या उससे भी ज्यादा समय से इस नियम को छोड़ दिया गया है और यह सही भी है। इस्लाम, जो ईसाई धर्म की तरह ही एक अब्राहमिक धर्म है, ने अभी तक इस नियम पर नरमी नहीं दिखाई है। अगर निकाह करना है, तो गैर-मुस्लिम साथी को इस्लाम में धर्मांतरण करना होगा। अगर विवाह करने वाले पक्ष पंजीकृत विवाह का फैसला करते हैं, जैसा कि अधिक शिक्षित और अधिक संपन्न लोग करते हैं, तो धर्मांतरण का सवाल ही नहीं उठता। उस स्थिति में केवल ‘प्रेम’ ही बचता है ‘जिहाद’ खत्म हो जाता है।

एक मुस्लिम लड़के पर यह आरोप लगाना कि वह केवल अपने अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के इरादे से ङ्क्षहदू या ईसाई लड़की को ढूंढने के लिए अपनी सीमा से बाहर जा रहा है, हास्यास्पद और अपमानजनक है। अब समय आ गया है कि इस तथ्य को स्वीकार कर लिया जाए और ‘लव जिहाद’ को दफना दिया जाए तथा ऐसे विवाहों को रोकने या दंडित करने के लिए कानून बनाने से मना कर दिया जाए, जैसा कि उत्तराखंड और कुछ अन्य भाजपा शासित राज्यों ने बनाया है या बनाने की प्रक्रिया में हैं। शायद इसका समाधान सभी के लिए बेहतर जीवन स्तर सुनिश्चित करने में निहित है, जिसका वायदा हमारे प्रधानमंत्री ने किया है, लेकिन ऐसा निकट भविष्य में होने वाला नहीं है। -जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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