महायुति का अभियान: सिर्फ छल ही छल

Edited By ,Updated: 01 Dec, 2024 05:21 AM

mahayuti s campaign only deceit and deceit

16  नवम्बर, 2024 को (पंजाब केसरी,इंडियन एक्सप्रैस) प्रकाशित मेरे कॉलम का शीर्षक था ‘महाराष्ट्र पुरस्कार है’। मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि भाजपा, शिवसेना और एन.सी.पी. के गठबंधन महायुति ने निर्णायक रूप से पुरस्कार जीता। महायुति ने 288...

16 नवम्बर, 2024 को (पंजाब केसरी,इंडियन एक्सप्रैस) प्रकाशित मेरे कॉलम का शीर्षक था ‘महाराष्ट्र पुरस्कार है’। मुझे यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि भाजपा, शिवसेना और एन.सी.पी. के गठबंधन महायुति ने निर्णायक रूप से पुरस्कार जीता। महायुति ने 288 में से 230 सीटें जीतीं। चतुर संदेश: महायुति की जीत का मुख्य कारण क्या था, इस पर बहस शुरू हो गई है। अधिकांश लोग इस बात पर सहमत हैं कि इसका कारण ‘लाडली बहन योजना’ (एल.बी.वाई.) थी। इस योजना के तहत, शिंदे सरकार ने वादा किया था और 1 जुलाई, 2024 से  हर महिला को 1500 रुपए प्रति माह वितरित किया, जिनकी पारिवारिक आय 2,50,000 रुपए प्रति वर्ष से कम थी और लाभार्थियों की संख्या 2.5 करोड़ थी। 

महायुति ने यह भी वादा किया कि अगर वह फिर से चुने गए तो इस राशि को बढ़ाकर 2100 रुपए प्रति माह कर दिया जाएगा। कृषि संकट, खासकर ग्रामीण महिलाओं में उच्च बेरोजगारी दर, ग्रामीण मजदूरी में स्थिरता और मुद्रास्फीति के कारण यह योजना सफल रही। लेकिन यह कोई नई योजना नहीं थी। यह एक नकल थी जिसे मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना में लागू किया गया था। इसके अलावा, मुख्य प्रतिद्वंद्वी एम.वी.ए. ने भी एम.वी.ए. के सत्ता में आने पर हर गरीब महिला को 3000 रुपए की राशि देने का वायदा किया था। तर्कों के संतुलन पर, मुझे नहीं लगता कि एल.बी.वाई. चुनावों में निर्णायक कारक थी। मेरे विचार से, महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में नया कारक पी.एम. नरेंद्र मोदी,  अमित शाह और आदित्यनाथ की तिकड़ी द्वारा महाराष्ट्र  के मतदाताओं को दिया गया कपटपूर्ण संदेश था, जिसे आर.एस.एस. स्वयंसेवकों की सेना ने बढ़ाया। 

उन्होंने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारे गढ़े जो भ्रामक रूप से तटस्थ थे, लेकिन वास्तव में ये एक खास समुदाय के सदस्यों को संबोधित थे। अभियान में ‘लव जेहाद’ और ‘वोट जेहाद’ पर भड़काऊ भाषण अक्सर दिए गए। ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ और ‘अर्बन नक्सल’ जैसे पुराने युद्ध के नारे फिर से उछाले गए। संदेश चतुराई से लिखे गए थे, अच्छी तरह से निर्देशित थे और उनका लक्ष्य भी सही था। इससे मुझे लोकसभा चुनावों के दौरान फैंके गए जहरीले कटाक्ष याद आ गए,‘अगर आपके पास 2 भैंसें हैं, तो कांग्रेस एक ले लेगी, आपका मंगलसूत्र छीन लिया जाएगा और यह सब उन लोगों को दे दिया जाएगा जो ज्यादा बच्चे पैदा करेंगे।’ और इसमें कोई संदेह नहीं था कि लक्षित समुदाय के लिए तथाकथित खतरा कौन सा समुदाय था। स्तंभकार आर. जगन्नाथन,  जो आमतौर पर भाजपा के प्रति सहानुभूति रखते हैं, ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में लिखते हुए स्वीकार किया कि यह ‘हिंदू वोटों को एकजुट करने का एक शक्तिशाली नारा’ था। 

नए नारे इस साल विजयादशमी के दिन आर.एस.एस. प्रमुख  मोहन भागवत के भाषण की याद दिलाते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘दुनिया भर के ङ्क्षहदू समुदाय को यह सबक सीखना चाहिए कि असंगठित और कमजोर होना दुष्टों द्वारा अत्याचार को आमंत्रित करने के समान है।’’ नारे और भाषण नफरत फैलाने वाले अभियान तथा ‘फूट डालो और जीतो’ की चुनावी रणनीति का हिस्सा थे। वे बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग थे। उन्होंने भारत के संविधान का अपमान किया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15, 16, 25, 26, 28(2), 28(3), 29 और 30 को रौंद दिया। यह अभियान महायुति (महागठबंधन) द्वारा रची गई महायुक्ति (बड़ी रणनीति, चाल) थी। हर देश में अल्पसंख्यक होते हैं। अल्पसंख्यक धार्मिक, भाषाई, जातीय या नस्लीय हो सकते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका में अश्वेत और लातीनी लोग हैं। चीन में उइगर हैं। पाकिस्तान में शिया हैं। पाकिस्तान और बंगलादेश में हिंदू हैं। श्रीलंका में तमिल और मुसलमान हैं। ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी हैं।

इसराईल में अरब हैं। कई यूरोपीय देशों में यहूदी और रोमा हैं। यूरोपीय परिषद ने समानता को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान को संरक्षित और विकसित करने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए फ्रेमवर्क कन्वैंशन (1998) को अपनाया है। मौलिक कानूनों में अमरीका में नागरिक अधिकार अधिनियम, 1964 और ऑस्ट्रेलिया में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून शामिल हैं। दूरदर्शी डा. अंबेडकर ने भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों तक बढ़ा दिया।

 पाखंड : भारतीय और भारत सरकार बंगलादेश और पाकिस्तान में हिंदुओं के अधिकारों के बारे में भावुक और मुखर हैं। हम चिंतित हैं जब विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय मूल के छात्रों को परेशान किया जाता है या मार दिया जाता है। 
जब विदेशों में हिंदू मंदिरों या सिख गुरुद्वारों में तोडफ़ोड़ की जाती है तो हम क्रोधित हो जाते हैं। लेकिन जब दूसरे देश या मानवाधिकार संगठन अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर भारत से सवाल करते हैं, तो विदेश मंत्रालय उन्हें चेतावनी देते हुए हरकत में आ जाता है कि ‘हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें’। पाखंड स्पष्ट है। दुनिया भर में द्वेषपूर्ण भाषण और कार्य फैल रहे हैं। बंगलादेश ने एक ङ्क्षहदू साधु को गिरफ्तार किया और इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने की मांग हो रही है। कथित तौर पर एक भारतीय मठ के प्रमुख ने कहा कि ‘मुसलमानों को मतदान के अधिकार से वंचित करें।’-पी. चिदम्बरम

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bangalore

Gujarat Titans

Teams will be announced at the toss

img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!