Edited By ,Updated: 22 Jun, 2023 06:06 AM
‘‘चुनाव कराना हिंसा का लाइसैंस नहीं हो सकता। यह सच है कि (कोलकाता) उच्च न्यायालय के आदेश का आशय राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है, क्योंकि यहां एक ही दिन में पंचायत चुनाव हो रहे हैं।
‘‘चुनाव कराना हिंसा का लाइसैंस नहीं हो सकता। यह सच है कि (कोलकाता) उच्च न्यायालय के आदेश का आशय राज्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है, क्योंकि यहां एक ही दिन में पंचायत चुनाव हो रहे हैं। उच्च न्यायालय के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और शीर्ष अदालत इस बारे में उच्च न्यायालय द्वारा जारी किसी अन्य निर्देश में हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में केन्द्रीय बलों को तैनात करने के कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए की। ये याचिकाएं पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से दायर की गई थीं।
पश्चिम बंगाल में 8 जुलाई को पंचायत चुनाव होने हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब कुछ ही दिनों में केन्द्रीय बलों की तैनाती शुरू हो जाएगी। जाहिर है राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ऐसा नहीं चाहती थीं कि चुनाव में केन्द्रीय बलों का दखल रहे, जिससे राजनीतिक कार्यकत्र्ता (जानबूझ कर टी.एम.सी. कार्यकत्र्ता नहीं लिखा जा रहा है क्योंकि पश्चिम बंगाल का इतिहास ऐसा रहा है कि जो भी सत्ता में होता है, कब्जे की पूरी कोशिश करता है) असहज न हों और जो करना चाहते हैं, कर सकें।
यही वजह थी कि उनकी सरकार हाईकोर्ट के 13 जून के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई, जहां से उसे मायूसी मिली। ममता बनर्जी की हमेशा यही कोशिश रहती है कि किसी भी तरीके से केंद्रीय बल चुनाव के दौरान न आने पाएं। जब दीदी ऐसा चाहती हैं तो जाहिर है कि राज्य की पुलिस और राज्य निर्वाचन आयोग भी ऐसा ही चाह रहा था। शायद यही वजह थी कि इतने बड़े राज्य में पंचायत चुनाव एक ही दिन में कराने का फैसला किया गया। मुख्यमंत्री का यह दाव सुप्रीम कोर्ट ने भोथरा कर दिया।
पश्चिम बंगाल में कुल 3317 ग्राम पंचायतें हैं। इन ग्राम पंचायतों की 63229 सीटें हैं, पंचायत समिति की 9730 सीटें हैं। इसके अलावा 22 जिला परिषदों की 928 सीटें हैं। इस तरह 8 जुलाई को कुल 73887 सीटों के लिए मतदान होगा। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं की टोली तो यही चाहेगी कि सब कुछ उनकी रणनीति के मुताबिक ही हो। यह रणनीति क्या होती है, सब जानते हैं। बमबारी और बूथ कैप्चरिंग के आरोप आम बात है। पिछले चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने पंचायतों की करीब 90 फीसदी सीटों और सभी 22 जिला परिषदों पर कब्जा कर लिया था।
तब यह आरोप लगे थे कि तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने ज्यादातर विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन पत्र ही दाखिल नहीं करने दिया या उन्हें वापस लेने पर मजबूर कर दिया था। इस साल भी उत्तर दिनाजपुर के चोपड़ा में नामांकन पत्र दाखिल करने के आखिरी दिन हिंसा और फायरिंग के आरोप लगे। वहां तृणमूल कांग्रेस ने 217 में 214 सीटें तो निर्विरोध जीत ली हैं। यह पंचायत चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि आगे 2024 के लोकसभा चुनाव हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी को इसलिए तकलीफ हुई थी क्योंकि भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से 42 में से 18 सीटों पर कब्जा कर लिया था। इसलिए ममता बनर्जी यह बिल्कुल नहीं चाहेंगी कि ऐसी कोई पुनरावृत्ति हो।
चुनाव कार्यकत्र्ताओं के मनोबल पर लड़ा जाता है और पंचायत चुनाव इसका लिटमस टैस्ट है। ममता जानती हैं कि पिछले पंचायत चुनाव में 34 फीसदी सीटें निर्विरोध जीतने के बाद भी वह लोकसभा चुनाव में भाजपा को 18 सीटें जीतने से नहीं रोक पाई थीं। इसलिए इस बार यह पूरी कोशिश हो रही थी कि ङ्क्षहसा न होने दी जाए, ताकि केन्द्र को कोई मौका न मिल सके। मगर 8 जून को जब पंचायत चुनावों की घोषणा हुई तो पश्चिम बंगाल में भाजपा के विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की कि पंचायत चुनाव में हिंसा की आशंका है, इसलिए राज्य में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल तैनात किया जाए। उच्च न्यायालय ने 13 जून को इस पर फैसला भी दे दिया। यह फैसला शुभेंदु और भाजपा के पक्ष में गया। यह ममता बनर्जी के लिए परेशान करने वाला था। इस फैसले को तृणमूल पार्टी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
अब सुप्रीम कोर्ट ने भी यह संदेश दे दिया है कि पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का इतिहास रहा है। इसलिए ऐसा करना संभव नहीं है, जैसा पश्चिम बंगाल सरकार चाहती थी और राज्य निर्वाचन आयोग चाह रहा था। हालांकि राज्य की ओर से यह भी पेशकश की गई थी कि राज्य की पुलिस चुनाव कराने में सक्षम है। अगर जरूरत महसूस होती है तो केंद्रीय बलों की जगह अड़ोस-पड़ोस के पांच राज्यों की पुलिस बुलाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तर्क दिया कि केंद्रीय बलों के आने से राज्य पर कोई वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा। इसलिए उन्हें ही जिम्मेदारी निभाने दीजिए।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भारतीय जनता पार्टी तो बहुत खुश है। वह जैसा चाहती थी, स्थिति वैसी बन गई है। चुनाव के दौरान केन्द्र के अपने बल राज्य में तैनात रहेंगे। भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा भी है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शायद पश्चिम बंगाल में निष्पक्ष चुनाव हो सकें। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब केंद्रीय बलों की तैनाती के बीच पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में चुनावी ङ्क्षहसा का एक इतिहास रहा है। वर्ष 2003 के पंचायत चुनाव में 70 लोग मारे गए थे। वर्ष 2008 में भी 36 लोगों की मौत हुई। 2013 में जब केन्द्रीय बलों की तैनाती थी, तब भी चुनाव में 39 लोगों की मौत हुई थी। हिंसा करने वाले तत्वों को बढ़ावा तो कतई नहीं दिया जा सकता। अब देखना है कि इस परीक्षा में राज्य कितना खरा उतरता है। अब चूंकि चुनावी ङ्क्षहसा की जांच की जिम्मेदारी हाईकोर्ट ने सी.बी.आई. को सौंप दी है इससे भी ममता दीदी को तकलीफ होगी।-अकु श्रीवास्तव