Edited By ,Updated: 24 Nov, 2024 05:30 AM
महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों को एक साथ मिलाकर लोकसभा चुनाव परिणामों से तुलना कर सकते हैं और अलग-अलग विश्लेषण भी। महाराष्ट्र परिणाम बताते हैं कि भाजपा गठबंधन ने लोकसभा चुनाव परिणामों को पीछे छोड़कर अपने मुद्दों के आधार पर जबरदस्त बढ़त...
महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव परिणामों को एक साथ मिलाकर लोकसभा चुनाव परिणामों से तुलना कर सकते हैं और अलग-अलग विश्लेषण भी। महाराष्ट्र परिणाम बताते हैं कि भाजपा गठबंधन ने लोकसभा चुनाव परिणामों को पीछे छोड़कर अपने मुद्दों के आधार पर जबरदस्त बढ़त बनाई है। महाविकास अघाड़ी ने भी इसे विचारधारा की लड़ाई घोषित किया था।
वह लोकसभा चुनाव के परिणाम का विश्लेषण करने में चूकी और मान लिया कि यह भाजपा और संघ की विचारधारा तथा प्रदेश सरकार और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध जनादेश है जो जारी रहेगा। विधानसभा चुनाव परिणामों ने इस मान्यता को ध्वस्त किया है। महाराष्ट्र का परिणाम असाधारण है। भाजपा के नेतृत्व में महायुती की एकपक्षीय विजय है और भाजपा ने अपने इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें पाईं। तो ऐसा परिणाम क्यों आया तथा झारखंड एवं महाराष्ट्र में अंतर क्यों है? महाराष्ट्र के मतदाताओं ने जब 1995 के बाद रिकॉर्ड संख्या में पिछले चुनाव से 4 प्रतिशत से ज्यादा मतदान किया तभी लग गया था कि यह लोकसभा चुनाव की पुनरावृत्ति के लिए नहीं है। मुंबई सिटी की 10 सीटों पर 52.65 प्रतिशत और उपनगर की 26 पर 56.39 प्रतिशत मतदान हुआ। महिलाओं के मतदान का आंकड़ा भी महत्वपूर्ण रहा।
कुल 9.7 करोड़ मतदाताओं में 5.22 करोड़ पुरुष और 4.69 करोड़ महिलाएं थीं। इनमें 3 करोड़ 34 लाख 37 हजार 57 पुरुषों तथा 3 करोड़ 6 लाख 49 हजार 318 महिलाओं और 1 हजार 820 अन्यों ने मतदान किया। पुरुषों की तुलना में केवल 28 लाख कम महिला मतदाताओं ने मतदान किया जबकि दोनों के बीच अंतर करीब 53 लाख था। कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में महिलाओं के खाते में एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा धन स्थानांतरित करना बड़ा कारण था। इससे हम इंकार नहीं कर सकते क्योंकि झारखंड में भी मैया सम्मान योजना ने भूमिका निभाई। लेकिन महाराष्ट्र में दोनों पक्षों के बीच लगभग 16 प्रतिशत मतों का अंतर केवल महिला मतदाताओं के कारण नहीं आ सकता। महत्वपूर्ण मुद्दे हिंदुत्व, हिंदुत्व अभिप्रेरित राष्ट्रीयता तथा इस्लामिक कट्टरवाद—इन पर सभी भाजपा व शिवसेना नेता बेहिचक प्रखर और आक्रामक होकर बोलते रहे, इनसे जुड़े मुद्दे उठाते रहे, विपक्ष को हिंदुत्व विरोधी, देश के हित के विरोध में काम करने वाला घोषित किया।
महाराष्ट्र में मुस्लिम संगठनों और नेताओं के बीच महाविकास अघाड़ी को समर्थन देने की होड़ लगी हुई थी। ऐसी बैठकों के वीडियो सामने आए जिनमें मजहबी नेता, इमाम, मौलवी कह रहे हैं कि हमने लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी के पक्ष में फतवा जारी किया और विजय मिली, हम इस बार भी जारी कर रहे हैं।
भाजपा व शिवसेना समर्थकों में से जिन्होंने कई कारणों से लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं किया या विरोध में चले गए या महा विकास अघाड़ी के पक्ष में मतदान करने वाले गैर प्रतिबद्ध मतदाताओं को भी लगा कि ङ्क्षहदू, बौद्ध,सिख और जैन के लिए भाजपा और शिवसेना ही है। हरियाणा से यह प्रवृत्ति हमने देखी। योगी आदित्यनाथ का बंटेंगे तो कटेंगे, प्रधानमंत्री का बंटेंगे तो विरोधी महफिल सजाएंगे और एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे नारे स्वाभाविक रूप में लोगों के दिलों तक पहुंचे। जब देवेंद्र फडऩवीस ने कहा कि हमारे विरुद्ध वोट जिहाद है और इसे वोट के धर्मयुद्ध से हराएंगे तो भले इसकी आलोचना हुई लेकिन लोगों के अंतर्मन में यह भाव था। हरियाणा में देखा गया कि दलित और पिछड़े पहले की तरह इस नैरेटिव को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। इस स्पष्ट दिखती प्रवृत्ति के बावजूद कांग्रेस और शिवसेना-उद्धव सबसे ज्यादा जोर इसी मुद्दे पर देती रहीं, कांग्रेस संविधान सम्मान सम्मेलन आयोजित करती रही और राहुल गांधी ने जातीय जनगणना की भी बात दुहराई।
भाजपा और शिवसेना ने इसे ङ्क्षहदुओं को जाति में विभाजित कर समाज-देश तोडऩे का षड्यंत्र बताते हुए हमला किया और आम कार्यकत्र्ता बंटेंगे तो कटेंगे तथा एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे नारे को नीचे तक पहुंचाते रहे। महाराष्ट्र के लगभग सभी क्षेत्रों में महायुती ने यूं ही अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। भाजपा के उम्मीदवारों की जीत लगभग 83 प्रतिशत है। महायुति सरकार के विरुद्ध यानी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडऩवीस, अजित पवार के विरुद्ध सरकार को लेकर जनता में ऐसा संतोष नहीं था जिसे उभारा जा सके। झारखंड में भाजपा की घुसपैठ, लव-जिहाद और जनांकिकी बदलने को मुद्दा इसलिए सफल नहीं हुआ क्योंकि उसने प्रदेश के अनुकूल रणनीति नहीं बनाई। हिमंता बिस्वा सरमा सह प्रभारी होते हुए भी मुख्य रणनीतिकार एवं पार्टी के सर्व प्रमुख चेहरा बने हुए थे। झारखंड की लड़ाई सतह पर हिमंता बनाम हेमंत सोरेन हो गई जो प्रदेश के मतदाताओं के अनुकूल नहीं थी।
लोगों के अंदर घुसपैठ, लव जिहाद मुस्लिम कट्टरवाद के विरुद्ध भाव था लेकिन हेमंत सोरेन के सामने ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसे देखकर आदिवासी मतदाता भाजपा की ओर आते। भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी को हेमंत ने आदिवासी सम्मान से जोड़ा और उसका भी प्रभाव हुआ। कुल मिलाकर मतदाताओं ने जनादेश से बता दिया है कि आई.एन.डी.आई.ए. और उनके घटकों की लोकसभा चुनाव में बढ़त अस्थायी थी जो समाप्त हो चुकी है। यह विचारधाराओं की लड़ाई में भाजपा-शिवसेना की विजय का जनादेश है।-अवधेश कुमार