मणिपुर : जातीय संघर्ष के बीच नेतृत्व की विफलता

Edited By ,Updated: 07 Jul, 2024 05:12 AM

manipur leadership failure amid ethnic conflict

मणिपुर कहां है? यह अभी भी आदिवासी समूहों के बीच हिंसा के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। मणिपुर में जातीय संघर्ष, जो एक साल पहले मैतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुआ था, राज्य में तबाही मचा रहा है। 226 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, हजारों लोग घायल...

मणिपुर कहां है? यह अभी भी आदिवासी समूहों के बीच हिंसा के दुष्चक्र में फंसा हुआ है। मणिपुर में जातीय संघर्ष, जो एक साल पहले मैतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुआ था, राज्य में तबाही मचा रहा है। 226 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, हजारों लोग घायल हुए हैं और अनगिनत लोग विस्थापित हुए हैं। हिंसा को रोकने के प्रयासों के बावजूद, गहरे मतभेद और अविश्वास कायम है, जिससे लगातार संघर्ष और नागरिकों के बीच लूटे गए हथियारों का प्रसार हो रहा है। सुरक्षा बलों में विश्वास की कमी और राजनीतिक समाधान की मांग, जिसमें कुकी-जोमी समूहों द्वारा अलग प्रशासन की मांग और मैतेई प्रतिनिधियों द्वारा विद्रोही समूहों पर सख्त रुख शामिल है, के कारण जातीय संघर्ष और भी जटिल हो गया है। 

ध्यान देने वाली बात यह है कि मणिपुर संकट के राष्ट्रपति के अभिभाषण में जगह न पाने के कुछ दिनों बाद, मणिपुर के नवनिर्वाचित सांसद अंगोमचा बिमोल अकोइजाम ने राज्य की दुर्दशा की अनदेखी करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार के खिलाफ जोरदार तरीके से आवाज उठाई। अकोइजाम ने संघर्ष के पैमाने पर प्रकाश डाला, इसे गृहयुद्ध से तुलना की और दुख जताया कि ‘लोग हथियार उठाने के लिए मजबूर हैं। लोग अपने गांवों की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं जबकि भारत सरकार चुप है।’ डा. अकोइजाम ने तर्क दिया कि केंद्रीय नेताओं की चुप्पी उत्तर-औपनिवेशिक भारत में एक निरंतर औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है। 

उन्होंने टिप्पणी की, ‘यह चुप्पी सामान्य नहीं है,’ और बताया कि विद्वान अक्सर स्वतंत्र भारत में औपनिवेशिक प्रथाओं की निरंतरता को देखते हैं। अकोइजाम ने कहा, ‘‘अपना हाथ अपने दिल पर रखें और 60,000 बेघर लोगों और इस संकट के कारण विधवा हो गई महिलाओं के जीवन के बारे में सोचें। फिर आप राष्ट्रवाद की बात करते हैं।’’ उन्होंने मणिपुर के लोगों से यह कहने तक की बात की कि भारत में उनका कोई महत्व नहीं है। यह पूरी तरह से सही नहीं है, हालांकि इस मुद्दे को संबोधित करने में देरी हुई है। मणिपुर भारत के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और उनकी पार्टी की आलोचना करते हुए उन्हें परजीवी करार दिया। उन्होंने कांग्रेस पर अराजकता फैलाने और जानबूझकर हिंदुओं को निशाना बनाने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री ने लोकसभा अध्यक्ष से कांग्रेस के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि मणिपुर सामान्य स्थिति में लौट रहा है और ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ चेतावनी दी जो स्थिति को और खराब कर सकती हैं। मणिपुर में उभरती स्थिति पर नरेंद्र मोदी का रुख सभी दलों को तुच्छ राजनीति से ऊपर उठकर गंभीर राष्ट्रीय मुद्दों को हल करने के लिए सहयोग करने की आवश्यकता पर जोर देता है। विपक्ष को वास्तविकता का सामना करने का साहस दिखाना चाहिए और मणिपुर में जातीय संघर्ष के प्रबंधन के लिए अपने नकारात्मक दृष्टिकोण को त्यागना चाहिए। यह सच है कि प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के बीच कुछ दुश्मनी है। हालांकि, उन्हें यह समझना चाहिए कि जटिल राष्ट्रीय मुद्दों को अनौपचारिक नीतिगत आम सहमति विकसित करने के उद्देश्य से तर्कसंगत तरीके से संभालने की आवश्यकता है। यह राष्ट्र के हित में आवश्यक है। 

देश को शासन के सभी स्तरों पर बेहतर गुणवत्ता वाले नेताओं की आवश्यकता है। महत्वपूर्ण मामलों पर वर्तमान नेतृत्व की अनिर्णयता और गड़बड़ी ने जनता का विश्वास खत्म कर दिया है। इस प्रक्रिया में, इसने लोगों के मन में एक ‘रीढ़विहीन निकाय’ की छवि बनाई है जो अक्सर अपने स्वयं के अनिर्णय का कैदी बन जाता है। प्रबुद्ध नागरिकों को स्वच्छ राजनीति, पारदर्शी शासन और मणिपुर सहित पूर्वोत्तर के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की मांग करनी चाहिए। जबकि दोनों पक्ष राजनीतिक वाद-विवाद में लगे हुए हैं, समस्या की जड़ नेतृत्व की विफलता में निहित है। व्यक्तिगत राजनीतिक संस्कृति ने एक ऐसे नेतृत्व को बढ़ावा दिया है जो प्रभावी शासन पर वफादारी और चाटुकारिता को प्राथमिकता देता है। क्या हम इस गंदी स्थिति से बाहर आ सकते हैं? हां, हम कर सकते हैं और हमें ऐसा करना चाहिए। 

अब सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पूर्वोत्तर की समस्याओं को समग्रता में देखा जाए और उनसे दृढ़तापूर्वक तथा प्रभावी ढंग से निपटा जाए। हमें असम और पूर्वोत्तर के आस-पास के क्षेत्रों में कई परेशान करने वाले संकेतों से निपटने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति जुटानी होगी। हमें देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। मणिपुर के जटिल मुद्दे एकजुट मोर्चे और दृढ़ दृष्टिकोण की मांग करते हैं। जब देश का कोई भी हिस्सा जातीय ङ्क्षहसा में घिरा हो, तो आधे-अधूरे मन से प्रतिक्रिया अस्वीकार्य है। नेताओं को तुच्छ राजनीति से ऊपर उठकर समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।-हरि जयसिंह
 

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