वैवाहिक दुष्कर्म : स्त्री को न कहने का बराबर का अधिकार मिलना चाहिए

Edited By ,Updated: 22 Oct, 2024 05:17 AM

marital rape a woman should have equal right to say no

इन दिनों अदालत में वैवाहिक दुष्कर्म के खिलाफ कानून बनाने पर बहसें चल रही हैं। इस कानून बनाने के समर्थन में कहा जा रहा है कि इससे स्त्री को पुरुष के बराबर अधिकार मिलेंगे। स्त्री को न कहने का बराबर का अधिकार मिलना चाहिए।

इन दिनों अदालत में वैवाहिक दुष्कर्म के खिलाफ कानून बनाने पर बहसें चल रही हैं। इस कानून बनाने के समर्थन में कहा जा रहा है कि इससे स्त्री को पुरुष के बराबर अधिकार मिलेंगे। स्त्री को न कहने का बराबर का अधिकार मिलना चाहिए। सवाल यह है कि यदि वैवाहिक दुष्कर्म का आरोप कोई स्त्री लगाएगी, तो उसे साबित कैसे किया जाएगा। गवाह कौन होगा। कैसे पता चलेगा कि स्त्री ने न कहा या हां। क्या लोगों के शयनकक्ष में कैमरे लगवाए जाएंगे। तब पति-पत्नी के संबंधों की निजता का क्या होगा या इस मामले में अन्य कानूनों की तरह ही स्त्री की बात को ही सच मान लिया जाएगा और पुरुष को कुछ भी कहने का अधिकार नहीं मिलेगा।

अपने यहां एक ओर लिव-इन है। स्त्री-पुरुष के संबंध यदि सहमति से हैं, तो विवाह हो, न हो उसे अपराध भी नहीं माना जाता। लड़कियां अपनी च्वाइस का झंडा भी इन दिनों खूब बुलंद करती हैं। ऐसे में आपका चुनाव या च्वाइस अगर आपका अधिकार है, तो किसी पुरुष को यह अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए। लेकिन देखा गया है कि लिव-इन में जब संबंध नहीं चल पाते, एक-दूसरे से ऊब जाते हैं, कोई और जीवन में आ जाता है या लड़कियां माता-पिता के दबाव और डर से दुष्कर्म का आरोप लगा देती हैं, तब सारी आफतें उस पुरुष पर ही आती हैं जिसके साथ संबंध में कोई लड़की या स्त्री थी। अदालतें अनेक बार लड़कियों को इस तरह के आरोप लगाने के बारे में चेतावनी दे चुकी हैं।

इसके अलावा दुष्कर्म के झूठे आरोप भी खूब लगाए जाते हैं। जांच एजैंसियां कहती हैं कि 10 में से 6 मामले झूठे पाए जाते हैं। लेकिन यदि किसी पर एक बार इस तरह के आरोप लगा दिए जाएं, तो उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। नौकरी चली जाती है। समाज से बहिष्कार तो झेलना ही पड़ता है। यही हाल दहेज, घरेलू ङ्क्षहसा और यौन प्रताडऩा संबंधी कानूनों का है।  दहेज निरोधी अधिनियम की धारा 498 ए को अदालत तक लीगल टेररिज्म या कानूनी आतंकवाद कह चुकी है। 

हमारे यहां महिला संबंधी कानून इतने एक पक्षीय हैं कि पुरुष का नाम आते ही न केवल पुरुष, उसके घर वालों, दूर-दराज के रिश्तेदारों तक को पकड़ लिया जाता है। अदालतें जिन पर आरोप लगा है, उन्हें छोड़ भी दें तो भी लम्बी कानूनी प्रक्रिया और उससे उपजी आफतों से मुक्ति नहीं मिलती। यों भी ऐसा अनेकों बार देखने में आता है कि मोटी रकम लेकर समझौता कर लिया जाता है। अब जिनके पास पैसे हैं, वे तो पैसे देकर समझौता कर लेते हैं, मगर जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे क्या करें। इसीलिए बहुत से लोग इन कानूनों को वसूली कानून भी कहते हैं जहां और कुछ हो न हो, पति का परिवार बर्बाद हो जाता है। 

सोचें कि यदि वैवाहिक दुष्कर्म का कानून बना दिया जाए तो क्या उसका दुरुपयोग नहीं होगा। इससे कोई कैसे बचेगा। लोग कह सकते हैं कि चूंकि कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है, तो क्या महिलाओं की रक्षा के लिए कानून ही न बनाए जाएं। कानून जरूर हों। वे परेशान महिलाओं का सम्बल होते हैं और हर सताई गई औरत को न्याय देना कानून का काम भी है। लेकिन जहां बदले की भावना, पति के परिवार के साथ न रहना, विवाहेत्तर संबंध , जमीन-जायदाद के मामलों में इन कानूनों का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा हो, उनसे निपटने के कौन से तरीके हैं, ये जरूर खोजे जाने चाहिएं।

यदि कानून का काम सभी को न्याय देना है, तो ऐसा क्यों हो कि कानून किसी एक पक्ष की ओर झुका हो और दूसरे पक्ष को हर हाल में अपराधी मान लिया जाए और उसे अपनी बात कहने का अवसर भी न मिले। कई बार तो ऐसा भी देखा गया है कि एक दिन की शादी के बाद दहेज प्रताडऩा का केस कर दिया जाता है। कई साल पहले एक ऐसी स्त्री का मामला भी सामने आया था, जिसने तीन बार विवाह किया और तीनों बार पति और उसके परिवार वालों पर दहेज प्रताडऩा का मुकद्दमा कर दिया। यही नहीं बहुत बार स्त्रियां घर का सारा सामान समेटकर, अपने किसी मित्र के साथ चली जाती हैं और दहेज प्रताडऩा का केस कर देती हैं। यदि वैवाहिक दुष्कर्म के खिलाफ कानून बनता है, तो ऐसा नहीं होगा इसकी गांरटी कौन देगा।

हाल ही में जब कानून की देवी की मूॢत की आंखों से पट्टी हटा ली गई है, तलवार की जगह संविधान थमाया गया है, तो यह याद रखना चाहिए कि संविधान हर एक को न्याय देने की बात करता है। फिर यह भी है कि कानून को हर एक के मानव अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। जो नेतागण संसद में बैठकर कानून बनाते हैं, उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि क्या पुरुष उनके वोटर नहीं। उनके मानव अधिकार नहीं। उनके वोट नहीं चाहिएं। 

इसलिए जरूरी है कि जो भी कानून बनें, उनमें हर एक को अपनी बात कहने का अधिकार हो। न कि किसी ने कह भर दिया, तो उस आधार पर दूसरे को अपराधी मान लिया जाए। दुनिया के बहुत से देशों में जैंडर न्यूट्रल कानून हैं। वक्त की मांग है कि अपने देश में भी ऐसे ही कानून होने चाहिएं। जहां न किसी स्त्री के साथ अन्याय हो, न पुरुष के साथ। -क्षमा शर्मा

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!