Edited By ,Updated: 07 Jun, 2024 05:39 AM
नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल मिला। जैसा कि एग्जिट पोल्स ने भविष्यवाणी की थी, यह कोई आसान काम नहीं था। भाजपा अपने दम पर 272 के आंकड़े से काफी कम 240 सीटें ही हासिल कर पाई। उसे शासन करने के लिए एन.डी.ए. (राजग) में...
नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल मिला। जैसा कि एग्जिट पोल्स ने भविष्यवाणी की थी, यह कोई आसान काम नहीं था। भाजपा अपने दम पर 272 के आंकड़े से काफी कम 240 सीटें ही हासिल कर पाई। उसे शासन करने के लिए एन.डी.ए. (राजग) में अपने सहयोगियों को समायोजित करना होगा। तेदेपा, जद-यू और अन्य ने मिलकर 54 सीटें हासिल कीं जिससे मोदी के लिए कैबिनेट पोर्टफोलियो आबंटित करने में समस्या पैदा हो गई।
एन.डी.ए. जिसमें वे पार्टियां शामिल हैं जिनके पास भाजपा के साथ गठबंधन की चुनाव पूर्व समझ थी, ने 294 सीटें हासिल कीं, जो कि मोदी द्वारा गठबंधन के लिए निर्धारित 400 के आंकड़े से 100 से अधिक कम है। मोदी अब भी देश के सबसे सक्षम राजनीतिक नेता हैं लेकिन उनका दबदबा कम हो गया है। उन्हें शासन की अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी, विशेषकर वह राजनीतिक विरोधियों और अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं यह देखने वाली बात होगी।
मोदी ने चुनावी जीत हासिल करने के लिए हदू बहुमत बनाम मुस्लिम अल्पसंख्यक कार्ड का इस्तेमाल किया। यह 2014 और 2019 में काम आया। लेकिन इस संशोधित जनादेश के साथ उन्हें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। स्पष्ट रूप से यह अब विजेता नहीं हैं। उन्हें संघ परिवार में सीमांत तत्वों को अनुशासित करने की जरूरत है। उन्हें वश में करने की प्रक्रिया में कुछ समय लगेगा। एक बार जिन्न के बाहर आने के बाद उसे दोबारा बोतल में बंद करना आसान नहीं है।
मोदी को अपनी मुख्य प्राथमिकता के रूप में नौकरियों और बेरोजगारी की समस्या पर ध्यान केंद्रित करना होगा। अपने तीसरे कार्यकाल में यह उनकी पहली और सबसे बड़ी ङ्क्षचता होनी चाहिए। भारतीय मतदाताओं ने जो कठोर संदेश दिया है, उसके आलोक में इन सभी को संशोधित करने की आवश्यकता होगी। मोदी को बुनियादी बातों-शिक्षा और स्वास्थ्य से शुरूआत करनी होगी। यहां उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से सबक लेना चाहिए। उस पार्टी ने इन दोनों क्षेत्रों में बड़ी सेंध लगाई है। जब तक हमारी श्रम शक्ति की उत्पादकता कई गुना नहीं बढ़ जाती, हम अपने पूर्व के पड़ोसी की बराबरी नहीं कर पाएंगे, जिसने हमसे 50 साल या उससे अधिक का सफर तय किया है। मोदी को ‘शहरी नक्सली’ कहे जाने वाले लोगों के प्रति अपनी नापसंदगी को भी कम करने की जरूरत है। उनमें से अधिकांश संपन्न परिवारों से आते हैं, लेकिन उनमें गरीबों और वंचितों के लिए बहुत अधिक ङ्क्षचता विकसित हो गई है।
भाजपा के साथ अपने दम पर स्पष्ट बहुमत हासिल करने में विफल रहने पर स्थिरता का आश्वासन नहीं दिया जा सकता। चंद्र बाबू नायडू की तेदेपा और नीतीश कुमार की जद-यू भाजपा की ङ्क्षहदुत्व विचारधारा से सहमत नहीं हैं। अब जिस चीज की आवश्यकता है वह मेरे द्वारा पहले बताई गई पंक्तियों पर सुधार की है। एक राजनेता के लिए उपयुक्त गुणों वाले ‘जीवन भर में एक’ नेता के रूप में उनकी तेजी से लुप्त होती प्रतिष्ठा को पुन: प्राप्त करने के लिए यह सुधार आवश्यक है।
वर्तमान में, उनके कट्टर अनुयायियों के बीच उनका कद दैवीय गुणों वाले एक महामानव जैसा है। दुर्भाग्य से उनके आलोचक, जो काफी संख्या में हैं, उन्हें बिल्कुल अलग रंग के चश्मे से देखते हैं। विदेश में वैश्विक नेताओं के साथ उनकी स्थिति ऐसी है जिसे उनके देश की बढ़ती आर्थिक ताकत के कारण ‘हम नजरअंदाज नहीं कर सकते’। फिर भी वे उन्हें मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के बारे में लगातार याद दिलाते रहते हैं। उसे धीरे से धक्का देने वालों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अब उनके ताकतवर होने की संभावना है क्योंकि उनकी ताकत पहले जैसी नहीं रही। मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन एक साथ आया था। वे जानते थे कि जब वह निर्वाचित नेता के रूप में अपनी सुविधाजनक स्थिति से शासन करेंगे, तो संभावना है कि वह उन्हें एक-एक करके कुचल देंगे, जैसे उन्होंने अपनी पार्टी में पुराने नेताओं को निपटा दिया था और आने वाले नेताओं को अनुमान लगाकर रखा था। मोदी जन्मजात नेता हैं जिनमें जीवित रहने की तीव्र प्रवृत्ति है। वह इस ‘हार’ से अपना मनोबल गिरने नहीं देंगे। मोदी ने विपक्ष को चेतावनी दी थी कि चुनाव में हार के बाद ‘इंडिया’ गठबंधन हवा में उड़ जाएगा।
इन नेताओं को मोदी की अपनी बुद्धिमत्ता से प्रेरणा लेते हुए सकारात्मक सोचना चाहिए। उन्होंने एक बहादुरी भरी लड़ाई लड़ी है और उन्हें इस हार को हार के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने घोर गलत अनुमान के रूप में एन.डी.ए. की भारी जीत की मोदी और शाह की भविष्यवाणी को खारिज कर दिया है। इसे 2 महान नेताओं के चेहरे पर तमाचे के रूप में भी समझा जा सकता है। भाजपा को भारतीय लोगों का केवल 37 प्रतिशत समर्थन प्राप्त है। एन.डी.ए. सामूहिक रूप से 41 प्रतिशत पर थोड़ा बेहतर है। भारतीय मतदाताओं का बहुमत मोदी और उनकी विचारधारा के साथ नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए ‘इंडिया’ गठबंधन को अस्तित्व के लिए एकजुट रहने की जरूरत है।
एक समय महाराष्ट्र के कद्दावर नेता रहे शरद पवार ने भविष्यवाणी की थी कि ‘इंडिया’ गठबंधन में छोटे दल भी शामिल होंगे। गठबंधन का कांग्रेस में विलय होगा। व्यक्तिगत रूप से, मुझे संदेह है कि क्या ऐसा होगा। यह लोकसभा चुनाव इतिहास में भारतीय चुनावों के सबसे लंबे और सबसे हंगामेदार चुनावों के रूप में दर्ज किया जाएगा। पूरे देश को कवर करने में 6 सप्ताह क्यों लगने चाहिएं? 3 या अधिक से अधिक 4 से काम चल जाएगा। मतदान के अंतिम दिन के अगले दिन वोटों की गिनती की जाती थी। इस बार इसकी तारीख 4 जून तय की गई थी। हालांकि मतदान का आखिरी दिन 1 जून था। इससे मतदाता अनावश्यक रूप से बेचैन हो गए।
चुनाव आयोग को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, जिनमें से अधिकतर अनावश्यक थीं, लेकिन कुछ इसके योग्य भी थीं। प्रधानमंत्री पर लगाम लगाने में उसकी हिचकिचाहट थी। अगर मोदी सरकार ने सुप्रीमकोर्ट की सलाह मानी होती और सी.जे.आई. को शामिल किया होता तो चुनाव आयोग सदस्यों के चयन की प्रक्रिया में एक स्वतंत्र रैफरी के रूप में शायद ई.वी.एम. की अखंडता पर व्यर्थ सवाल नहीं उठाए गए होते।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)