Edited By ,Updated: 03 Oct, 2024 05:24 AM
वह धरती जिस पर मैं, मेरा परिवार, मेरे पुरखे, यह समस्त समाज चलता-फिरता चला आ रहा है, आज वह धरती मां कराह क्यों रही है? जिस धरती ने अन्न-जल से अपने मानव पुत्र को पाला, वही मानव आज बड़े-बड़े विस्फोटकों, बड़े-बड़े परमाणु बमों के प्रयोग द्वारा धरती के...
वह धरती जिस पर मैं, मेरा परिवार, मेरे पुरखे, यह समस्त समाज चलता-फिरता चला आ रहा है, आज वह धरती मां कराह क्यों रही है? जिस धरती ने अन्न-जल से अपने मानव पुत्र को पाला, वही मानव आज बड़े-बड़े विस्फोटकों, बड़े-बड़े परमाणु बमों के प्रयोग द्वारा धरती के सीने को छलनी-छलनी कर रहा है। मानव ने परमाणु बमों से उस धरती को हिरोशिमा और नागासाकी (जापान) बना दिया। आज तक मानव जापान की उस त्रासदी को झेल रहा है जिस प्रकार की पेजर तकनीक इसराईल ने लेबनान पर अपनाई, उसने आज पुन: जापान त्रासदी के जख्मों को हरा कर दिया।
लेबनान और फिलिस्तीन की गाजा पट्टी का मानव चीख उठा पर न हिजबुल्ला के आतंकी और न हमास के आतंकवादी गिरोहों को शर्म आई। इसराईल को भी युद्ध के नियमों का पालन करना चाहिए। दोनों युद्धरत देश सुन लें ‘जंग पूर्व में हो या पश्चिम में, कोख धरती मां की ही सूनी होती है। रूस और यूक्रेन की जंग में शहरों के शहर तबाह हो रहे हैं, मांओं के लाल दोनों तरफ शहीद हो रहे हैं, जिस पर धरती का क्रंदन सारी दुनिया सुन रही है। नारी जाति विधवा बन रही है। रूस और यूक्रेन की मिसाइलें आग बरसा रही हैं। दोनों पक्षों की धरती खंडहर बन रही है। विस्फोटकों के धुएं और आवाजों के नीचे सारी धरती कांप रही है और मानवता कराह रही है।
मानव स्वयं अपनी कब्र खोद रहा है। उसने पहाड़ों को अपने स्वार्थ के लिए समतल कर दिया और उन स्थानों पर आधुनिक बस्तियां बना डालीं। पहाड़ों को धराशायी कर जलवायु के स्वरूप को ही बदल दिया। नदियों को गंदे नालों का रूप दिया। अपनी सारी गंदगी को मनुष्य ने नदियों में फैंक दिया। गंगा, यमुना, सरस्वती, रावी, ब्यास, चिनाब, जेहलम, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों को मानव ने जानबूझ कर अपवित्र कर दिया। इन नदियों के जल को अमृत समझ कर पिया जाता था। आज इन नदियों का जल विषैला हो गया। महानगरों के सीवरेज इन नदियों में डाल दिए। बड़े-बड़े कल कारखाने इन नदियों के मुहानों पर बन गए। इनका कूड़ा कर्कट इनकी विषैली गैसें इन नदियों में डाल दीं। बड़े-बड़े बुलडोजरों ने धरती के प्राकृतिक सौंदर्य को विकृत कर दिया। वृक्ष जो धरती मां को छाया देते थे, खनिज पदार्थों के मोह ने धरती का शोषण कर दिया।
दोस्तो प्रदूषण का अर्थ है ‘दोष’ और पर्यावरण का अर्थ है हमारा चौगिर्दा, हमारा चौतरफा, हमारा अड़ोस-पड़ोस। सारे वातावरण में अब दोष ही दोष है। दोष भी इस वातावरण में ऐसे समा गए हैं कि इस दोष को सुधारना अब असंभव है। मैं अपने शहर पठानकोट की बात करता हूं। इस शहर के दोनों तरफ नदियां थीं। एक तरफ चौबीस घंटे बारह मास पवित्र जल बहता था। हम इसमें नहाते और शहर के लोग इस खड्ड नदी पर कपड़े धोया करते। आज यह खड्ड नदी कीचड़ से भरी हुई और बदबू मार रही है। शहर की दक्षिण दिशा में चक्की (चक्रावर्ती) नदी बहती है जिस नदी से पठानकोट क्षेत्र के लिए 32 कूलें निकला करती थीं। शहर छोटा था लोग इन कूलों पर छलांगें मार-मार कर नहाते थे।
गंगा जैसी पवित्र नदी के जल को मरते मनुष्य के मुंह में अमृत समझ कर डाला जाता था। आज एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार गंगा का पानी सब से प्रदूषित है। इसमें मुर्दा लाश और मरे जानवरों को बहा दिया जाता है। गोमती नदी में मैंने नहाने को पैर बढ़ाया ही था कि कीचड़ में धंस गया। बात लखनऊ में बहती गोमती की है। दिल्ली जो देश की राजधानी है, में यमुना सबसे गंदी और बदबू मारती नदी है। सरयू नदी जो कभी अयोध्या नगरी की पावन शोभा थी, का भी प्रदूषण ने रूप बदल दिया। बाकी नदियां भी अपनी बदहाली पर रो रही हैं। मित्रो वाहनों की बढ़ती संख्या, उनसे निकलने वाले धुएं और हार्न की कानफाड़ू आवाजों ने मनुष्य को बहरा बना दिया है। एयर कंडीशन, जैनरेटर, फैक्टरियों के धुएं ने हमारे पर्यावरण में आग लगा दी है। बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं के नीचे न धूप, न प्रकाश, न हवा, न खुला आसमान नजर आता है। भारत में नदियों के जल की तुलना अमृत से की जाती थी पर आज नदियों का जल इतना प्रदूषित हो चुका है कि जो भी उसे पिएगा वह मरेगा।
गंदा जल धरती पर उगने वाली फसलों को भी विषैला बना देता है। पंजाब में मालवा क्षेत्र की धरती कसैली हो चुकी है, टैलीविजन, डी.जे. चलती मशीनों का शोर मानव को अंधा व बहरा बना रहे हैं। मोबाइल की आदत तो बच्चों को बहरा और ऐनकें लगाने पर मजबूर कर रहा है। प्रदूषण ने मानव से सृजनता, संवेदनशीलता, ज्ञानता, ङ्क्षचतन, मनन और मैडीटेशन सब कुछ छीन लिए हैं। अत: पेड़ काटने हैं तो लगाओ भी जरूर। उन पौधों की तीन साल रक्षा भी करो। अगर दुनिया को ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से बचाना चाहते हैं तो तत्काल वृक्ष लगाओ उन्हें बचाओ। वन महोत्सव औपचारिकता बन कर न रह जाए। बड़े-बड़े विकसित देश, विश्व के धनाढ्य लोग अपना पैसा पर्यावरण को शुद्ध बनाने में भी खर्च करें।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)