संसद की गरिमा का भी ध्यान रखें सांसद

Edited By ,Updated: 23 Dec, 2024 05:37 AM

mps should also take care of the dignity of the parliament

मैं अपने घर पर टी.वी. देख रहा था। उसी समय एक परिचित परिवार समेत आए। साथ में छोटा बच्चा था जो दूसरी कक्षा में पढ़ता है। टी.वी. पर संसद की कार्रवाई चल रही थी। हंगामा, तख्तियां लहराना, नारेबाजी और बार-बार खड़े होकर बाधा उत्पन्न करने के दृश्य देखकर...

मैं अपने घर पर टी.वी. देख रहा था। उसी समय एक परिचित परिवार समेत आए। साथ में छोटा बच्चा था जो दूसरी कक्षा में पढ़ता है। टी.वी. पर संसद की कार्रवाई चल रही थी। हंगामा, तख्तियां लहराना, नारेबाजी और बार-बार खड़े होकर बाधा उत्पन्न करने के दृश्य देखकर बच्चे के मन में एक अजीब-सी जिज्ञासा या कौतूहल जैसा कुछ था। बच्चा कभी टी.वी. देखता तो कभी मुझे। अचानक उससे रहा नहीं गया। पूछ ही लिया अंकल, ये कौन सा स्कूल है? कितना उधम करते हैं! बच्चे की जिज्ञासा और उसके मन में कौंध रहे सवाल मेरे लिए असहज थे। उसका पूछना वाजिब था लेकिन मेरे पास उत्तर नहीं था। सदन की कार्रवाई में माननीयों की रुकावटें आम-सी हो गई हैं।

लगता है कि संसद अपनी जिम्मेदारियां निभाने में नाकाम होती जा रही है? क्या इससे देश की जनता में निराशा के भाव नहीं आते होंगे? पहले भी ऐसा होता रहा, आगे कब तक होगा नहीं मालूम! संसद, बहस चर्चा और असहमति का मंच हो सकता है, लेकिन व्यवधान का हरगिज नहीं। 25 नवंबर से शुरू हुए 26 दिनों के शीतकालीन सत्र में 19 बैठकें हुईं। लोकसभा का बीता शीतकालीन सत्र अब तक का सबसे कम उत्पादकता वाला केवल 57 प्रतिशत रहा। जबकि राज्यसभा की उत्पादकता 43 प्रतिशत रही।

संविधान पर चर्चा और बाकी समय शोर-शराबा और हंगामे के नाम रहा। संविधान की 75वीं वर्षगांठ मनाने की खातिर संविधान दिवस मनाया गया और चर्चा भी हुई। लेकिन संसदीय गरिमा कितनी तार-तार हुई सबने देखा। काश माननीय भी सोचते? 20 दिसंबर तक चले सत्र के दौरान दोनों सदनों में 20 बैठकें हुईं, जो 62 घंटे चलीं। यही समझ आता है कि हमारे माननीय कितने गंभीर हैं? संसद की बैठकों में लगातार कमी आ रही है। भारतीय संसद का पहला सत्र 13 मई 1952 को बुलाया गया जिसमें लोकसभा की 677 बैठकें हुई थीं यानी साल भर का औसत 135 रहा। वहीं पिछली लोकसभा में साल में केवल 55 बैठकें हुईं। 13 मई 1952 को राज्यसभा का पहला अधिवेशन हुआ। 1952 से लेकर 23 मार्च 2020 तक राज्यसभा में 945 सरकारी विधेयक पुर:स्थापित किए गए। जबकि 26 दिनों तक चले सत्र में लोकसभा की 20 और राज्यसभा की 19 बैठकें हुईं। लोकसभा में 5 पेश विधेयकों में 4 और राज्यसभा में 3 विधेयक पारित हुए। लोकसभा चुनाव में सरकार, राजनीतिक दल और प्रत्याशियों का हजारों करोड़ रुपए खर्च होता है। लेकिन जनता के प्रति जवाबदेही और विधायी कामकाजों और नीतियों के संवेदनशील मुद्दों पर बहस कम और हो हल्ला ज्यादा होने लगा। 

भले ही राज्यसभा चुनाव सीधा नहीं होता। लेकिन इसमें भी तो पैसा ही खर्च होता है। संसद चलाने में होने वाले खर्च का सही उपयोग नहीं होता है। सदन में विधायी कामकाज या कहें कि सकारात्मक नीति निर्धारण पर चर्चा कम और हो हल्ला ज्यादा होता है। सदन संचालन के दौरान हंगामे के चलते खर्चों में कमीं नहीं होती। उल्टा कुछ न कुछ बोझ बढ़ता ही है। कर्मचारियों, अधिकारियों की पगार, कार्रवाई का प्रसारण, प्रकाशन, संग्रहण के साथ संसद भवन की सुरक्षा, रख-रखाव और माननीयों की सुरक्षा पर भारी खर्च होता है। सारा बोझ सरकारी खजाने पर आता है जो कहीं न कहीं जनता ही चुकाती है। यकीनन सरकारी खजाने पर लाखों करोड़ रुपए का बोझ पड़ता है। कामकाज न होने से इस बार अनुमानित नुकसान 84 करोड़ रुपए है। एक सवाल हर किसी के मन में कौंधना स्वाभाविक है कि क्या महज हंगामा फिर कार्रवाई अगली सूचना तक स्थगित करना लोकतंत्र के मंदिर में नैतिक कहा जा सकता है? लगता नहीं कि संसद युद्ध का मैदान बन गई? यहां भी हाथापाई, झूमा-झटकी और उठा-पटक की तस्वीरें आम होने लगीं।

1951-52 का कुल चुनावी खर्च 10.5 करोड़ रुपए आया। यही साल 2024 में एक लाख 35 हजार करोड़ से भी ऊपर पहुंचना अनुमानित है। सैंटर फॉर मीडिया स्टडीज यानी सी.एम.एस. की लोकसभा चुनाव पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में लोकसभा चुनाव का खर्च लगभग 3500 से 3870 करोड़ रहा। जबकि साल 2019 में लगभग 55 से 60 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया। संसद की कार्रवाई का प्रति मिनट खर्च लगभग अढ़ाई लाख रुपए आता है। जो एक घंटे का डेढ़ करोड़ होता है। अमूमन हफ्ते में 5 दिन कार्रवाई चलती है और रोजाना औसतन 6 घंटे कामकाज होता है। अगर यही विरोध,हो-हल्ला और शोर-शराबे की भेंट चढ़ जाएंगे तो करदाताओं के खून-पसीने से खजाने में जमा पैसे कब तक स्वाहा होते रहेंगे?  क्या देश के लिए नीतियां-रीतियां और कायदे-कानून बनाने वाले हमारे माननीय इस दिशा में भी सोचेंगे?-ऋतुपर्ण दवे
 

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