Edited By ,Updated: 20 Nov, 2024 05:50 AM
सूक्ष्म, छोटे व मझोले उद्यमों (एम.एस.एम.ई.) को बैंकों से ऋण में आ रही मुश्किलों को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आए दिन चिंता जताए जाने से बैंकों के काम-काज पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार एम.एस.एम.ईज को सीधे ऋण की सहज...
सूक्ष्म, छोटे व मझोले उद्यमों (एम.एस.एम.ई.) को बैंकों से ऋण में आ रही मुश्किलों को लेकर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आए दिन चिंता जताए जाने से बैंकों के काम-काज पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार एम.एस.एम.ईज को सीधे ऋण की सहज उपलब्धता बढ़ाने के लिए स्पैशल बैंक स्थापित करने की योजना बना रही है।
स्माल इंडस्ट्रीज डिवैल्पमैंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) जैसा संस्थान कहने को एम.एस.एम.ईज के लिए समर्पित है, पर यह सीधे फंड देने की बजाय रीफाइनांस पर निर्भर है। कई राज्यों में इंडस्ट्रियल डिवैल्पमैंट कॉरपोरेशन व स्टेट फाइनांस कॉर्पोरेशन एम.एस.एम.ईज को सीधे ऋण दे रहे हैं, वहीं फंड की कमी से जूझ रहे पंजाब स्टेट इंडस्ट्रियल डिवैल्पमैंट कॉर्पोरेशन (पी.एस.आई.डी.सी.) व पंजाब फाइनांस कॉर्पोरेशन (पी.एफ.सी.) ने बीते कई साल से ऋण बंद कर दिए हैं। 4700 करोड़ रुपए की देनदारियों में घिरे पी.एस.आई.डी.सी. ने बीते 16 साल से कोई ऋण नहीं दिया।
अन्स्र्ट एंड यंग की रिपोर्ट मुताबिक, ‘भारत के केवल 14 प्रतिशत एम.एस.एम.ईज की सस्ते इंस्टीच्यूशनल ऋण तक पहुंच है, जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में अमरीका के 50 व चीन के 30 प्रतिशत एम.एस.एम.ईज सस्ते ऋण का लाभ ले रहे हैं। भारतीय एम.एस.एम.ईज को 25 लाख करोड़ रुपए की क्रैडिट कमी इस बात का संकेत है कि यदि उन्हें सीधे, सस्ते व सहज ऋण बढ़ाए जाएं तो देश में आॢथक गतिविधियों व नौकरियों के नए अवसर और भी बढ़ाए जा सकते हैं। एम.एस.एम.ईज को समर्पित एक अलग बैंक की स्थापना से इन्हें कारोबार विस्तार के लिए ऋण की कमी दूर हो सकेगी।
देश की जी.डी.पी. में 18 प्रतिशत योगदान देने वाले कृषि क्षेत्र को नाबार्ड ने साल 2023-24 में 6.68 लाख करोड़ रुपए ऋण उपलब्ध कराए जबकि 27 प्रतिशत योगदान देने वाले एम.एस.एम.ई. सैक्टर को सिडबी ने केवल 84000 करोड़ रुपए के ऋण जारी कराए। कारोबार के साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने को एम.एस.एम.ईज के लिए पूंजी जुटाना ही सबसे बड़ी चुनौती है। हालांकि आर.बी.आई. ने इन्हें प्राथमिकता वाले सैक्टरों को लक्षित 40 प्रतिशत ऋणों में शामिल किया है, पर ज्यादातर बैंकों के एम.एस.एम.ईज को निर्धारित लक्ष्य के 25 प्रतिशत ऋण भी जारी नहीं होते।
चुनौतियां : भारत के 6.40 करोड़ एम.एस.एम.ईज में भले ही 99 प्रतिशत बहुत ही छोटे कारोबारी हैं, पर इनके महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता। मैन्युफैक्चरिंग में 38.4 प्रतिशत व एक्सपोर्ट में 45 प्रतिशत योगदान के साथ देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद एम.एस.एम.ईज की सीमित क्रैडिट हिस्ट्री व अपर्याप्त कॉलेटरल गारंटी की वजह से कमॢशयल बैंकों तक पहुंच नहीं हो पाती, जिससे उनके लिए बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों से ऋण पाना आसान नहीं होता।
विकसित देशों का मॉडल अपनाएं : हालांकि केंद्र सरकार ने एम.एस.एम.ईज के ऋण को बढ़ावा देने के लिए क्रैडिट गारंटी फंड ट्रस्ट, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना और स्टैंडअप इंडिया जैसी कई पहल की हैं लेकिन इन्हें कारगर ढंग से लागू करना भी जरूरी है। एक अहम मुद्दा 10 से 12 प्रतिशत की दर पर ब्याज की ऊंची उधारी लागत है, जो देश के कारोबारियों को चीन, अमरीका और यूरोपीय देशों के कारोबारियों के मुकाबले पिछाड़ती है। चीन में ब्याज दर 3.1, अमरीका में 4.37 और यूरोपीय देशों में एम.एस.एम.ईज को औसत 5.1 प्रतिशत ब्याज पर ऋण मिलते हैं।
अमरीका में एम.एस.एम.ईज केंद्रीय व राज्यों के कई कार्यक्रमों के जरिए आसानी से सस्ते ऋण हासिल करते हैं। ‘स्माल बिजनैस एडिमिनिस्ट्रेशन’ लोन गारंटी के साथ बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों को छोटे कारोबारियों के ऋण के लिए प्रोत्साहित करता है। ‘माइक्रोलोन प्रोग्राम’ के तहत बिजनैस की कई जरूरतों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के अलावा वर्किंग कैपिटल, उपकरण व जमीन खरीदने के लिए भी ऋण दिया जाता है। इसके अलावा अमरीकी सरकार एम.एस.एम.ईज को लोकल बिजनैस के माहौल मुताबिक ऋण से मदद करती है। यूरोपियन देशों में एम.एस.एम.ईज को यूरोपियन इनवैस्टमैंट बैंक व यूरोपियन इनवैस्टमैंट फंड जैसे संस्थानों द्वारा समर्थित मजबूत वित्तीय सहायता ढांचे का लाभ मिलता है। ये संस्थाएं बैंकों और माइक्रोफाइनांस कंपनियों से ऋण के लिए गारंटी और इक्विटी के जरिए ऋण मुहैया कराती हैं।
चीन की सरकार ने चाइना डिवैल्पमैंट बैंक जैसे समर्पित बैंकों के जरिए एम.एस.एम.ईज को लक्षित फंड बढ़ाने के कई उपाय किए हैं। वहां के राज्यों की स्थानीय सरकारों ने भी क्रैडिट गारंटी फंड स्थापित किए हैं। इसके अलावा चीन में फाइनांशियल टैक्नोलॉजी सैक्टर तेजी से बढऩे के साथ ऑनलाइन ऋण व डिजिटल फाइनांशियल सेवाएं देने वाले प्लेटफॉर्म एम.एस.एम.ईज के लिए वैकल्पिक फंडिंग स्रोत हैं।
आगे की राह : एम.एस.एम.ई. सैक्टर के उन मुद्दों का समाधान करना जरूरी है, जो इनकी वित्तीय पहुंच में बाधा हैं। ‘पार्लियामैंटरी कमेटी ऑन फाइनांस’ ने भी सिफारिश की है कि देश के एम.एस.एम.ईज को अमरीका, यूरोप और चीन के मॉडल की तर्ज पर आसान सस्ते ऋण देकर वैश्विक स्तर के कारोबार में आगे बढ़ाया जा सकता है। किसान क्रैडिट कार्ड की तर्ज पर ट्रेडर्स के लिए ‘मर्चैंट क्रैडिट कार्ड’ और माइक्रो इंडस्ट्रियल यूनिट के लिए ‘व्यापार क्रैडिट कार्ड’ का प्रस्ताव सराहनीय है, पर क्रैडिट गारंटी फंड के तहत सबसिडाइज्ड ब्याज दरों पर शॉर्ट टर्म लोन स्कीम का लंबे समय से इंतजार है। एम.एस.एम.ईज को सही समय पर किफायती ऋण सुनिश्चित करने के लिए कारगर कोशिशों की दरकार है। (लेखक कैबिनेट मंत्री रैंक में पंजाब इकोनॉमिक पॉलिसी एवं प्लाङ्क्षनग बोर्ड के वाइस चेयरमैन भी हैं)-डा. अमृत सागर मित्तल(वाइस चेयरमैन सोनालीका)