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मुंबई पुलिस की प्रतिष्ठा और पूर्व गृह मंत्री की डायरी

Edited By ,Updated: 07 Feb, 2025 06:03 AM

mumbai police s reputation and former home minister s diary

महाराष्ट्र  के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा लिखी गई एक किताब पाकर मैं वाकई हैरान रह गया, जिसके बारे में मैंने सुना था कि कैसे पद पर रहते हुए पुलिस कर्मियों के तबादले राजनीतिक दबाव में किए जाते थे। उन्हें एक आई.पी.एस. अधिकारी से कड़ी टक्कर...

महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा लिखी गई एक किताब पाकर मैं वाकई हैरान रह गया, जिसके बारे में मैंने सुना था कि कैसे पद पर रहते हुए पुलिस कर्मियों के तबादले राजनीतिक दबाव में किए जाते थे। उन्हें एक आई.पी.एस. अधिकारी से कड़ी टक्कर मिली, जिसकी प्रतिष्ठा भी उनसे मेल खाती थी। 

शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), एन.सी.पी. (शरद पवार गुट) और कांग्रेस पार्टी की महा विकास अघाड़ी (एम.वी.ए.) सरकार ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर के तौर पर गलत आदमी को बिठाया था। साथ ही, शरद पवार ने ‘गृह मंत्री की डायरी’ के इस लेखक को पुलिस बल के प्रदर्शन की निगरानी करने वाले मंत्री के तौर पर मनोनीत किया था! यह एक ऐसा घातक संयोजन था, जो जल्द ही फटने वाला था। और फटा भी।

25 फरवरी, 2021 को, शहर के एक पॉश रिहायशी इलाके अल्टामाऊंट रोड पर मुकेश अंबानी के घर ‘एंटीलिया’ के बाहर 20 जिलेटिन छड़ों से लदी, लेकिन सौभाग्य से बिना डेटोनेटर वाली एक स्कॉॢपयो कार खड़ी पाई गई। कार का पता मनसुख हिरेन नामक व्यक्ति से लगाया गया, जो पुलिस कमिश्नर के खासमखास, ‘एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट’ सचिन वाजे का दोस्त है, जो क्राइम ब्रांच में असिस्टैंट पुलिस इंस्पैक्टर (ए.पी.आई.) के तौर पर काम करता है। राज्य पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते (ए.टी.एस.) और केंद्र सरकार की राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) द्वारा यह स्थापित किया गया था कि ए.पी.आई. वाजे को पहले भी कई बार उसी स्कॉॢपयो कार में घूमते देखा गया था।स्पष्ट था कि वाजे की अगुवाई में सिटी पुलिस की क्राइम ब्रांच की खुफिया इकाई अंबानी के घर के बाहर स्कॉॢपयो लगाने में शामिल थी, जिसके कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं।

सचिन वाजे को हत्या के आरोप में 16 साल के लिए ड्यूटी से निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने खुद को ‘एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट’ के रूप में पेश करते हुए विजिटिंग कार्ड छपवाए थे और निजी सुरक्षा व्यवसाय में उनके सहयोगी संभावित ग्राहकों को ऐसे विजिटिंग कार्ड वितरित करते थे। वाजे ने पुलिस में अपनी सेवा के शुरुआती वर्षों में इंस्पैक्टर प्रदीप शर्मा के अधीन काम किया था, जिन्हें ‘एनकाऊंटर स्पैशलिस्ट’ के रूप में जाना जाता है। शर्मा और वाजे एक-दूसरे के संपर्क में थे और साथ ही उस आई.पी.एस. अधिकारी के भी, जिसे अनिल देशमुख ने अपनी किताब में निशाना बनाया है। आई.पी.एस. अधिकारी को एम.वी.ए. सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, जिसके गृह मंत्री अनिल देशमुख थे (और उस हैसियत से मुंबई के पुलिस आयुक्त के चयन पर उनसे सलाह ली जानी तय थी)। इससे पहले वह पड़ोसी शहर ठाणे के पुलिस कमिश्नर रह चुके थे। ठाणे के निवासियों की नजर में उनकी छवि बहुत खराब थी। अपने ही लोगों की नजर में उनकी छवि और भी खराब थी, जिनका नेतृत्व करने के लिए उन्हें चुना गया था।

मंत्री की जांच के दायरे में आए आई.पी.एस. अधिकारी ने ठाणे कमिश्नर के रूप में अपनी नियुक्ति समाप्त होने के बाद मुंबई पुलिस प्रमुख के पद के लिए बहुत प्रयास किया था। ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा हाईकमान ने इस पर असहमति जताई थी, जिसने मुंबई के पुलिस प्रमुख के रूप में गलत व्यक्ति को स्थापित करने के जोखिम का सही आकलन किया था। नियुक्त व्यक्ति शरद पवार की तीखी निगाहों से कैसे बच गया? अधिकारी ने खुद यह बताया कि शरद पवार ने उसका साक्षात्कार लिया था और उसे सलाह दी थी कि वह एक बहुत सम्मानित बल को निराश न करे और उसका अच्छा नाम खराब न करे। एंटीलिया कांड के बाद पुलिस आयुक्त के साथ अपने संबंधों के बारे में अनिल देशमुख का विवरण, उनके मित्र से दुश्मन बने व्यक्ति द्वारा लगाए गए आरोपों पर सी.बी.आई. और फिर एन.आई.ए. द्वारा उनके खिलाफ  दर्ज मामले में खुद का बचाव है, जब उन्हें पुलिस आयुक्त के पद से हटा दिया गया था।

मंत्री पर सी.पी. ने आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने (सी.पी. के) दाहिने हाथ सचिन वाजे को बुलाया था और उनसे सौ करोड़ रुपए प्रति माह की मांग की थी, जो कि वाजे द्वारा बार मालिकों और अन्य लोगों से की जा रही अवैध वसूली का हिस्सा था। पूर्व गृह मंत्री ने अपनी प्रकाशित पुस्तक में यह नहीं बताया कि आयुक्त को क्यों और कैसे चुना गया। उन्हें इस सवाल का जवाब देना चाहिए क्योंकि प्रदर्शन में गिरावट वहीं से शुरू हुई। इसके अलावा वह यह भी नहीं बताते कि गृह मंत्री के रूप में उन्होंने सचिन वाजे पर हत्या के आरोप के बावजूद उनकी सेवा में बहाली पर आपत्ति क्यों नहीं जताई। इंटैलिजैंस यूनिट का नेतृत्व एक सीनियर इंस्पैक्टर को करना चाहिए। एक ए.पी.आई. को उस महत्वपूर्ण यूनिट का प्रमुख कैसे बनाया गया? सी.पी. ने सोशल सॢवसिज यूनिट के प्रभारी असिस्टैंट सी.पी. को क्यों बुलाया और उन्हें वाजे को अपने काम में शामिल करने के लिए क्यों कहा? 

अंबानी के घर के बाहर एक कार में विस्फोटकों की खोज अपने आप में एक संकेत थी कि शहर के पुलिस प्रशासन में चीजें गलत हो रही थीं। कोई ए.पी.आई., यहां तक  कि सचिन वाजे जैसा एक दबंग भी, अपने कमिश्नर की जानकारी के बिना इस तरह की परियोजना को अंजाम देने की हिम्मत नहीं कर सकता था। अगर कमिश्नर इस बात पर जोर देते हैं कि उन्हें योजना के बारे में कुछ नहीं पता था तो यह स्वीकारोक्ति ही उन्हें उच्च पद पर रहने के लिए अयोग्य ठहराएगी। इसके बाद स्कॉॢपयो के मालिक मनसुख हिरेन की कथित तौर पर एनकाऊंटर विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा की गई हत्या ने यह साबित कर दिया कि एनकाऊंटर विशेषज्ञों की अवधारणा को हमेशा के लिए दफना दिया जाना चाहिए। वह दफनाने का काम कई साल पहले एक पूर्व आयुक्त अनामी रॉय ने किया था। शहर के नागरिक तब तक राहत की सांस ले रहे थे, जब तक कि सी.पी. ने सचिन वाजे को क्राइम ब्रांच में शामिल नहीं कर लिया और उन्हें ऐसे अधिकार नहीं दे दिए, जो उनके पद से कहीं ज्यादा थे। क्या मंत्री को शहर की पुलिस में चल रही हलचल के बारे में पता नहीं था क्योंकि वाजे आयुक्त के दूसरे व्यक्तित्व के रूप में काम कर रहे थे?

स्कॉर्पियो कांड के बाद आयुक्त एम.वी.ए. सरकार को गिराने के लिए उस समय विपक्ष में रही बी.जे.पी. के साथ मिलकर काम करके अपनी गलती से बच निकला। यह एक बहुत ही संदिग्ध सौदा था जिसने राजनेताओं और इसमें शामिल पुलिस अधिकारियों की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुंचाया।और यही बात मुंबई के नागरिकों को ङ्क्षचतित कर सकती है। अनिल देशमुख ने इस घटना में अपनी भूमिका का जो बचाव किया है, जैसा कि उनकी किताब में दर्शाया गया है, वह वैसा ही है, जैसा कि उन्होंने अपने बचाव में कहा था। उन्होंने किताब में सी.पी. के खिलाफ जो तथ्य उजागर किए हैं, उनकी भी जांच होनी चाहिए, लेकिन कानून की अदालत में।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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