नारी शक्ति वंदन अधिनियम, महिला सशक्तिकरण की ओर बढ़ते कदम

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2023 05:14 AM

nari shakti vandan act steps towards women empowerment

महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक और कदम उठाया गया, जब संसद में ऐतिहासिक 128वां संविधान संशोधन विधेयक अर्थात नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया गया। इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया।

महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक और कदम उठाया गया, जब संसद में ऐतिहासिक 128वां संविधान संशोधन विधेयक अर्थात नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया गया। इस विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। संसद में पेश किए जाने के 27 वर्ष बाद इसे लोकसभा में 2 के मुकाबले 454 के बहुमत से और राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया। 

वस्तुत: वर्ष 1996 से भारत ने एक लंबी यात्रा की है, जब महिला आरक्षण विधेयक को देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार द्वारा पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। वर्ष 1998 में वाजपेयी की राजग सरकार द्वारा इसे पुन: पेश किया गया, किंतु यह पारित न हो सका। वर्ष 2008 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाया गया विधेयक भी पारित न हुआ और 2010 में क्षेत्रीय क्षेत्रों के सांसदों द्वारा इस विधेयक को फाडऩे और सदन में हंगामा करने के बाद भी यह पारित नहीं हो सका। 

अब महिला आरक्षण विधेयक के विरोधियों ने भी अपने हथियार डाल दिए क्योंकि इस विचार के साकार होने का समय अंतत: आ गया। भाजपा के एक मंत्री के अनुसार, महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए सकारात्मक कदम उठाए जाने की अत्यावश्यकता है क्योंकि पंचायतों के बारे में हाल में किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधान का महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी, नेतृत्व, महिला सशक्तिकरण और संसाधनों के आबंटन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 

तथापि इस विधेयक के पारित होने के बावजूद विपक्ष की अपनी शिकायतें हैं। कांग्रेस की शिकायत है कि परिसीमन और जनगणना इस विधेयक को लागू करने को स्थगित रखने के लिए मात्र बहाने हैं और यह पूरी कवायद महिला आरक्षण को लागू किए बिना वास्तव में एक चुनावी मुद्दा बनाना है। कांग्रेस के एक नेता के शब्दों में, ‘‘हम अगले वर्ष के लोकसभा चुनावों से ही इस विधेयक को लागू करना चाहते थे और इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी आरक्षण का प्रावधान चाहते थे।’’ हालांकि कांग्रेस ने अपने 2010 के विधेयक में महिला आरक्षण में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था। 

एक वरिष्ठ समाजवादी नेता के शब्दों में, ‘‘मैं यह कहकर इस विधेयक की महत्ता को कम नहीं करूंगा कि इससे केवल उच्च जातियों की लिपस्टिक लगाई बालकटी महिलाओं को ही लाभ मिलेगा। इसका आशय अच्छा है किंतु कोटे के भीतर कोटे के अभाव में व्यावहारिक राजनीतिक परिणाम अलग हो सकते हैं।’’ 

कुछ नेताओं का यहां तक कहना है कि इससे महिलाओं में असमानता और बढ़ेगी। उन्हें योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धी या प्रतियोगी नहीं माना जाएगा। साथ ही इससे मतदाताओं की पसंद भी महिला उम्मीदवारों तक सीमित हो जाएगी और चुनाव सुधारों, राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के बड़े मुद्दों से ध्यान हट जाएगा। प्रत्येक चुनाव में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के बढऩे से अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कार्य करने के लिए सांसदों को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा क्योंकि अनेक सांसद अगली बार वहां से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। एक अन्य नेता का कहना है कि इससे उच्च जातियों और कुलीन वर्ग का शासन सुदृढ़ होगा और परिवारवादी राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। इस वर्ग के लोग अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अपनी महिलाओं को रिमोट कंट्रोल से नियंत्रित करेंगे। 

देश की जनसंख्या में महिलाओं की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। वर्तमान में हम महिलाओं के और सशक्तिकरण की बात करते हैं, किंतु वास्तविकता कुछ और है। संसद के दोनों सदनों में महिला सदस्यों की संख्या 10 प्रतिशत से कम है। लोकसभा में महिला सदस्यों की संख्या 82 है, जो 15 प्रतिशत से कम तथा 24 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफी कम है। जरा सोचिए यदि 1950 में संसद में महिला सदस्यों की संख्या 5 प्रतिशत थी तो पिछले 73 वर्षों में इसमें केवल 9 प्रतिशत की वृृद्धि हुई और यह बताता है कि इस दिशा में कितनी धीमी प्रगति हुई है। उनका कम प्रतिनिधित्व न केवल यह बताता है कि लिंग असमानता बढ़ी है। इस विधेयक के पारित होने से लोकसभा में महिलाओं की संख्या कम से कम 181 तक पहुंच जाएगी। त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों से एक भी महिला सांसद नहीं है। 

राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और भी कम है। असम, अरुणाचल प्रदेश और कर्नाटक में यह 5 प्रतिशत से कम है तो मिजोरम में एक भी महिला विधयक नहीं है, जबकि नागालैंड में एक महिला विधायक है। हरियाणा और बिहार में 10 प्रतिशत महिला विधायक हैं। अत: महिलाओं का यह कम प्रतिनिधित्व एक समस्या का कारण है क्योंकि कोई भी विधान उसके निर्माताओं के मूल्यों को परिलक्षित करता है। यही नहीं, 8,000 उम्मीदवारों में से केवल 724 महिला उम्मीदवार थीं। कांग्रेस ने 54 अर्थात 13 प्रतिशत महिला उम्मीदवार खड़े किए थे। भाजपा ने 53 अर्थात 22 प्रतिशत, मायावती की बसपा ने 24, ममता की तृृणमूल ने 23, पटनायक की बीजद ने 33 प्रतिशत, माकपा ने 10, सी.पी.आई. ने 4 और पवार की राकांपा ने 1 अर्थात अपनी बेटी को चुनाव में खड़ा किया था। लगभग 222 महिलाओं ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। चार उभयङ्क्षलगी उम्मीदवारों ने भी चुनाव लड़ा। 

इससे भी बुरी स्थिति उनके शैक्षिक स्तर की है। 232 अर्थात 42 प्रतिशत उम्मीदवारों ने घोषणा की कि वे कक्षा 12 तक पढ़ी हैं। 37 ने कहा कि वे केवल शिक्षित हैं, 26 ने घोषणा की कि वे अशिक्षित हैं और शेष ने कहा कि वे स्नातक हैं और ये आंकड़े एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफार्म के हैं। यही नहीं, आज केवल गिनी-चुनी महिला नेता हैं, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती आदि। दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के बाद महिला दोयम दर्जे की नागरिक बन गई, जहां पर न केवल नेता, अपितु महिलाएं अवांछित बनी रहीं और उनकी उपेक्षा की गई तथापि राजनीतिक दलों में ऐसी महिला कार्यकत्र्ताओं की कमी नहीं रही, जिन्हें दलों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा और चुनाव लडऩे के लिए उन्हें टिकट नहीं दिया गया। 

नि:संदेह बदलते भारत में राजनीतिक दल इस बात को समझते हैं कि महिलाओं की उपेक्षा, सत्ता के कॉरिडोर और निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें शामिल न करना अब संभव नहीं होगा। इसलिए अब राजनीति में अधिक महिलाएं आ रही हैं, जिससे व्यवस्था और समाज में सुधार होगा। इसके अलावा राजनीतिक दल महिला शक्ति के महत्व को समझते हैं। मतदान में महिलाओं की हिस्सेदारी निरंतर बढ़ रही है और यह लगभग पुरुषों के बराबर पहुंच गई है। सार्वजनिक स्थानों पर उनकी उपस्थिति और छाप भी बढ़ रही है। 

कुल मिलाकर इस कानून ने भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है, जहां पर नारी शक्ति राजनीति और भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में अधिक सक्रिय और सुदृढ़ भूमिका निभाएगी। यदि इस विधेयक का कार्यान्वयन किया गया तो यह एक विशिष्ट पूर्वोद्दाहरण पेशकरेगा क्योंकि भारत विश्व का एकमात्र प्रमुख लोकतांत्रिक देश है, जहां पर ऐसा सकारात्मक कदम उठाया गया है। आज नारी शक्ति एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ रही है। निश्चित रूप से वे देश के भविष्य के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।-पूनम आई. कौशिश    
 

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