Edited By ,Updated: 19 Nov, 2024 05:55 AM
देश में राजनीतिक दलों का एकमात्र मकसद सत्ता पाना रह गया है। इसके लिए बेशक देश में मौजूद सांप्रदायिकता की खाई को और चौड़ा क्यों न करना पड़े। सांप्रदायिक लिहाज से मामूली हलचल भी नेताओं के लिए वोट बैंक एकजुट करने का सबब बन जाती है।
देश में राजनीतिक दलों का एकमात्र मकसद सत्ता पाना रह गया है। इसके लिए बेशक देश में मौजूद सांप्रदायिकता की खाई को और चौड़ा क्यों न करना पड़े। सांप्रदायिक लिहाज से मामूली हलचल भी नेताओं के लिए वोट बैंक एकजुट करने का सबब बन जाती है। इसके विपरीत सांप्रदायिकता के दावानल को थामने के लिए किए गए प्रयास हाशिए पर चले जाते हैं।
महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव की सभाओं के दौरान नेताओं ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बांटने में कसर बाकी नहीं रखी। सभी दल एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलने में पीछे नहीं रहे। इसके विपरीत राजनीतिक दल चाहते तो सांप्रदायिक एकता और देश में गंगा-यमुना संस्कृति की मिसाल पेश कर सकते थे किन्तु वोट बटोरने के लिए शायद ऐसी मिसाल कारगर साबित नहीं होती, इसलिए ऐसे उदाहरणों को दरकिनार कर दिया जाता है। ऐसा ही एक उदाहरण उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के महारानी लक्ष्मी बाई मैडीकल कालेज में हुए अग्निकांड में सामने आया, किन्तु इसे किसी भी दल ने मुद्दा नहीं बनाया। मैडीकल कालेज की नवजात गहन चिकित्सा इकाई में आग लगने से करीब 10 नवजातों की मौत हो गई। इस हादसे में करीब एक दर्जन नवजात गंभीर रूप से घायल हो गए।
इस हादसे के दौरान अपनी दो नवजात बच्चियों का इलाज कराने आए मुस्लिम युवक याकूब मंसूरी ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अपनी जान की परवाह किए बगैर कई नवजात बच्चों की जान बचाई, बगैर यह देखे हुए कि नवजात हिंदू हैं या मुसलमान। बच्चों की जान बचाने के दौरान उसी वार्ड में भर्ती याकूब की जुड़वां बेटियों की जान चली गई। अपनी बेटियों की कुर्बानी देकर दूसरे नवजातों की जान बचाने वाले याकूब का यह साहसिक कारनामा नेताओं के लिए चुनावी मुद्दा नहीं बन सका।
नेता चाहते तो देश में ऐसे उदाहरणों से मिसाल कायम कर सकते थे। ऐसे साहसिक और एकता बढ़ाने के प्रयासों से वोट बटोरने में नेताओं को संशय रहता है। यही वजह है कि ऐसे मुद्दे राजनीतिक दलों के एजैंडे से गायब रहते हैं, जिनसे देश में सांप्रदायिक सद्भाव और एकता में बढ़ौतरी होती हो। इसके विपरीत राजनीतिक दलों का प्रयास यही रहता है कि हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करके वोटों के लिए कैसे धु्रवीकरण किया जाए। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में ऐसा ही ध्रुवीकरण करने के लिए राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत लगा दी। शिवसेना (बी.टी. ) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम महाराष्ट्र को गद्दारों से मुक्त बनाना चाहते हैं।
महाराष्ट्र में दोबारा कोई गद्दार नहीं घूमना चाहिए। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने शिवसेना (बी.टी.) के मुखिया उद्धव ठाकरे पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि उन्होंने कुर्सी के लिए हिंदुत्व को छोड़ दिया है। बाला साहेब के नाम के पहले ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की जगह ‘जनाब बाला साहेब’ लिखने लगे हैं। उन्होंने वोट जिहाद को लेकर कहा कि मुस्लिम मौलाना फतवा निकाल रहे हैं तो मैं भी फतवा निकालता हूं। हिंदू हमारे हाथ में महाराष्ट्र की सत्ता दें। सत्ता में आने के 48 घंटों में मस्जिदों से लाऊड स्पीकर उतार दूंगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी उद्धव ठाकरे पर तीखा हमला किया और कहा कि बाला साहेब होते तो उद्धव को कहते कि जंगल में जाकर वाइल्ड लाइफ की फोटो खींचो। शिंदे ने कहा कि उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब के विचारों को छोड़ दिया, शिवसेना का धनुष-बाण कांग्रेस के गले में बांध दिया। जिस कांग्रेस ने बाला साहेब को बदनाम किया, वह उनके साथ ही जा मिले।
सी.एम. शिंदे ने कहा कि बाला साहेब कहते थे कि मैं अपनी पार्टी को कभी कांग्रेस नहीं बनने दूंगा, लेकिन उद्धव जी खुद के स्वार्थ और सी.एम. की कुर्सी पाने के लिए कांग्रेस के साथ चले गए। उन्हें लगा कि हमारे बिना सरकार नहीं बनेगी। उद्धव जी ने भाजपा की पीठ में छुरा घोंपा है। राहुल गांधी द्वारा बाला साहेब की पुण्यतिथि पर दिए गए बयान पर शिंदे ने कहा, ‘‘अच्छी बात है। अभी तक इन्होंने यह बोलने की कोशिश नहीं की थी। उनके दिल में क्या भावना थी शिवसेना के प्रति यह नहीं पता था।
लेकिन उनमें हिम्मत है तो बाला साहेब को हिंदू हृदय सम्राट बोलकर दिखाएं। ऐसा तो उद्धव जी भी नहीं बोलते।’’ गौरतलब है कि अप्रैल, 2023 में एक प्रैस कांफ्रैंस में उद्धव ठाकरे ने कहा था कि जिस दिन बाबरी मस्जिद गिरी थी, मैं बाला साहेब के पास गया था। उन्होंने बताया कि बाबरी मस्जिद गिर चुकी है। इसके बाद संजय राऊत का फोन आया। बाला साहेब ने उनसे कहा था कि अगर बाबरी मस्जिद शिव सैनिकों ने गिरा दी है, तो उन्हें गर्व है। हालांकि, दूसरी तरफ अब उद्धव ठाकरे राज्य भर के मुस्लिम वोटरों से साथ आने की अपील करते नजर आ रहे हैं। उनकी बैठकों और दौरों में मुस्लिम समुदाय के मतदाताओं की भी अच्छी-खासी मौजूदगी रहती है।
दरअसल वोटों को धर्म के आधार पर विभाजित करने की कोशिश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे से शुरू हुई। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि देश में एकता-अखंडता को मजबूत करने के लिए झांसी के अग्निकांड में अपनी दो बच्चियों की कुर्बानी और खुद की जान दाव पर लगा कर अन्य नवजातों की जान बचाने वाले याकूब मंसूरी का साहसिक कारनामा किसी भी दल के लिए चुनावी मुद्दा नहीं बन सका। देश के नेताओं की फितरत ऐसी बन चुकी है कि धुआं दिखते ही मशालें थामने लगते हैं। यह निश्चित है कि जब तक सत्ता पाने के लिए ऐसी संकीर्ण सोच बनी रहेगी तब तक देश की एकता की संस्कृति आदर्श उदाहरण नहीं बन सकेगी।-योगेन्द्र योगी