योद्धाओं के लिए राष्ट्रीय कल्याण नीति समय की पुकार

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2024 05:40 AM

national welfare policy for warriors is the need of the hour

जून-जुलाई का महीना देश और सेना के सुनहरी इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। 25 वर्ष पूर्व देश के रक्षकों ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए कारगिल सैक्टर में 16,500 से 19,000 फुट की ऊंचाई वाली चुनौतियों का सामना करते हुए जोखिम भरी पहाडिय़ों पर दुश्मन...

जून-जुलाई का महीना देश और सेना के सुनहरी इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है। 25 वर्ष पूर्व देश के रक्षकों ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए कारगिल सैक्टर में 16,500 से 19,000 फुट की ऊंचाई वाली चुनौतियों का सामना करते हुए जोखिम भरी पहाडिय़ों पर दुश्मन को खदेड़ कर 26 जुलाई 1999 को वहां तिरंगा लहराया। 

उस समय संसद के अंदर व बाहर भी राजनीतिक नेताओं और देशवासियों ने राष्ट्रवाद के जज्बे के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए सेना की पीठ थपथपाई थी। सरकार ने ‘आप्रेशन विजय’ के दौरान अनेकों खामियों का जायजा लेने के लिए पहले कारगिल जांच कमेटी का गठन किया और फिर उसके बाद ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की सिफारिशों को लागू करने की खातिर कुछ कदम तो उठाए मगर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। जैसे कि योद्धाओं के लिए राष्ट्रीय कल्याण नीति और मिलिट्री कमिशन कायम करने का कार्य अभी भी अधूरा है जिसकी कमी आज भी महसूस हो रही है जोकि इस लेख का केंद्र बिंदू है। 

वर्णनीय है कि दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का यह योगदान था कि कारगिल युद्ध को घर-घर और गांव-गांव पहुंचा दिया। तब उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि युद्ध प्रभावित सैनिकों के लिए कोई राष्ट्रीय नीति है, बस फिर अफरा-तफरी मच गई। खैर, उन्होंने सबसे पहले एक प्रशंसनीय आदेश यह जारी किया कि शहीदों के मृतक शरीरों को उनके पारिवारिक-रिहायशी इलाकों में पहुंचा कर सैन्य रस्मों के अनुसार उन्हें अंतिम विदाई दी जाए जोकि आज भी लागू है। फिर शहीदों के पारिवारिक सदस्यों के लिए वित्तीय सहायता और राहत कार्य भी आरंभ कर दिए गए। सैनिक वर्ग की समस्त भलाई और बाकी समस्याओं को मुख्य रखते हुए वाजपेयी सरकार ने दिवंगत रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज के नेतृत्व में एक विशाल राष्ट्रीय नीति को बनाने के बारे में नोटिफिकेशन जारी किया। इस उच्च स्तरीय कमेटी में पंजाब के मुख्यमंत्री सहित 5 अन्य मुख्यमंत्री मनोनीत किए गए तथा कुछ अन्य विभागों और सशस्त्र सेनाओं के प्रतिनिधि भी शामिल थे। 

वर्ष 1997 से लेकर 2003 के बीच मैं बतौर डायरैक्टर सैनिक भलाई पंजाब, मुख्यमंत्री/संबंधित मंत्री के साथ विचार-विमर्श कर कुछ बैठकों में उपस्थित रहा। एक स्थिति यह पैदा हो गई कि बैठक में न तो कोई मुख्यमंत्री उपस्थित हुआ और न ही कुछ मंत्रालयों के सदस्य उपस्थित हुए। रक्षामंत्री ने घोषणा की कि कोरम पूरा न होने के कारण बैठक को रद्द कर दिया गया है। यहां ‘हाथी के दांत खाने के और और दिखाने के और’ वाली कहावत लागू होती है। 25 वर्षों के उपरांत भी हमें कहीं भी कोई राष्ट्रीय नीति वाली आशा की किरण दिखाई नहीं देती जिसका असर अब अग्रिपथ योजना पर भी पड़ रहा है जिसकी मिसाल इस लेख में आगे जाकर दी जाएगी। यह एक कड़वी सच्चाई है कि परमात्मा और सेना को केवल संकट के समय में ही याद किया जाता है और जब खतरा टल जाता है तो इंसान भी सब बातें भूल जाता है, सरकार की तो बात ही क्या? 

बाज वाली नजर : राष्ट्रीय नीति की कमी तथा सरकार की कमजोरी वाली ताजा उदाहरण देना मैं उचित समझता हूं। जब पंजाब के अग्रिवीर अमृत पाल को थल सेना ने खुदकुशी वाला केस घोषित करते हुए सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदायगी नहीं दी तो मीडिया भी भड़क उठा परन्तु टाइम्स आफ इंडिया में 6 जुलाई वाले आगरा से नैशनल पन्ने पर प्रकाशित खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के निवासी और वायुसेना के अग्रिवीर श्रीकांत कुमार जिसने 2 जुलाई को आत्महत्या कर ली थी, को ‘सैरीमोनियल गार्ड ऑफ ऑनर’ के साथ अंतिम विदायगी दी गई। ऐसा भेदभाव क्यों? 

रक्षा मामलों से संबंधित संसद की स्थायी कमेटी ने विशेष तौर पर अग्निपथ स्कीम के बारे में अपनी रिपोर्टें सरकार को सुपुर्द करने से पहले दिसम्बर 2023 को और फिर वर्तमान वर्ष 2024 में 8 फरवरी को भी सैन्य बधाई के साथ जुड़े पहलुओं के अलावा यह स्पष्ट किया कि जो अग्निवीर लाइन ऑफ ड्यूटी पर मारे जाते हैं उन्हें भी स्थायी सैनिकों की तरह पैंशन तथा बाकी की सहूलियतें प्रदान की जाएं। यह बेहतर होगा कि सरकार इन सिफारिशों को लागू करने की खातिर एक राष्ट्रीय नीति तय करे। मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना की कमजोरियों को जानने और उसमें सुधार के संकेत दे दिए हैं मगर केवल मंत्रालयों की लाल फीताशाही की ओर से ही सुझाव लेने उचित न होंगे। जरूरत इस बात की है कि एक बहुपक्षीय विशाल कमेटी का गठन किया जाए जिसमें कुछ प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ और सशस्त्र सेनाओं के पूर्व प्रमुखों को शामिल किया जाए जिसमें जनरल एम.एन. नरवाणे जोकि वर्ष 2019-22 के दरमियान सेना प्रमुख रह चुके हैं, का भी योगदान लिया जाए। 

पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर.के.एस. भदूरिया जोकि गत दिनों भाजपा में शामिल हो चुके हैं उन्हें भी साथ जोडऩे में कोई हर्ज नहीं। 25 वर्षों के उपरांत भी समयबद्ध तरीके के साथ राष्ट्रीय नीति तय करके  इसे तुरन्त लागू किया जाए। इससे देश के प्यारे नेता दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। फिर ही देश और सेना की भलाई संभव होगी।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)    

Related Story

    Afghanistan

    134/10

    20.0

    India

    181/8

    20.0

    India win by 47 runs

    RR 6.70
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!