Edited By ,Updated: 05 Nov, 2024 05:08 AM
‘जल है तो कल है।’ सामान्य मानव जीवन में अक्सर सभी इन पंक्तियों को सुनते-पढ़ते आए हैं तथा इसके भावार्थ को भी अच्छे तरीके से समझते हैं, लेकिन ज्ञान होने के बावजूद भी लोग जल को व्यर्थ में बहाने से बाज नहीं आते, यह जानने के बावजूद भी कि जल ही इस पृथ्वी...
‘जल है तो कल है।’ सामान्य मानव जीवन में अक्सर सभी इन पंक्तियों को सुनते-पढ़ते आए हैं तथा इसके भावार्थ को भी अच्छे तरीके से समझते हैं, लेकिन ज्ञान होने के बावजूद भी लोग जल को व्यर्थ में बहाने से बाज नहीं आते, यह जानने के बावजूद भी कि जल ही इस पृथ्वी पर सभी जीवों के जीवन का आधार है। प्राकृतिक जल स्रोतों का एक विशेष महत्व है, जिसे हमारे पूर्वज भली-भांति जानते थे, लेकिन आज के लोगों की इन प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रति प्रवृत्ति बिल्कुल असंवेदनशील हो गई है। पहले सभी एक साथ मिलकर प्राकृतिक जल स्रोतों से जल लेने जाते थे तथा वहां की सफाई भी करते थे, जिससे प्राकृतिक संतुलन भी बरकरार रहता था। लेकिन आज के लोग सुबह पानी लाना तो छोड़ो, नल में आए पानी को भर लें वही बहुत बड़ी बात है।
कहीं न कहीं प्राकृतिक जल स्रोतों के विलुप्त होने के पीछे आमजन का ही हाथ है और प्रशासन की अनदेखी भी इनकी विलुप्तता को और बढ़ावा देती है। जब आप छोटे थे, तो उस समय कितने जल स्रोत आसपास होते थे लेकिन समय के साथ ये सब विलुप्त होते जा रहे हैं, जिनको बचाना आमजन यानी हम और आप की नैतिक जिम्मेदारी है। अनेक स्वयंसेवी व युवा संस्थाएं इनके संरक्षण के प्रति सक्रिय हैं और लगातार इस क्षेत्र में कार्य कर रही हैैं। इसी प्रकार से अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे आना तथा प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण को अपना लक्ष्य बनाना होगा, क्योंकि जल के बिना कल की कल्पना एक अधूरा व धुंधला सपना-सा प्रतीत होता है।
जल पृथ्वी पर उपलब्ध एक बहुमूल्य संसाधन है। जैसा कि सभी को ज्ञात ही है कि धरती का लगभग तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है, किन्तु इसमें से 97 प्रतिशत पानी खारा है, जो पीने योग्य नहीं है। पीने योग्य पानी की मात्रा सिर्फ 3 प्रतिशत है। इसमें भी 2 प्रतिशत पानी ग्लेशियरों एवं बर्फ के रूप में है। इस प्रकार सही मायने में मात्र 1 प्रतिशत पानी ही मानव के उपयोग हेतु उपलब्ध है। सोचो, अगर इस 1 प्रतिशत जल को भी हम यूं ही व्यर्थ में बहा देंगे तो इस्तेमाल करने के लिए जल की पूर्ति कहां से संभव हो पाएगी, यह एक ङ्क्षचतनीय विषय है, जिस पर समाज में बात व गहन विचार करने की आवश्यकता है।
नगरीकरण व औद्योगिकीकरण की तीव्र गति व बढ़ता प्रदूषण तथा जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है, देश के कई हिस्सों में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। लेकिन हम हमेशा यही सोचते हैं कि बस जैसे-तैसे गर्मी का सीजन निकल जाए, बारिश आते ही पानी की समस्या दूर हो जाएगी और यह सोचकर जल सरंक्षण के प्रति बेरुखी अपनाए रहते हैं। हमारा यही असंवेदनशील रवैया हमें कल जल से वंचित करवाएगा, यह स्पष्ट है।
शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और संबंधित ढेरों समस्याओं को जानने के बावजूद देश की बड़ी आबादी जल संरक्षण के प्रति सचेत नहीं है। जहां लोगों को मुश्किल से पानी मिलता है, वहां लोग जल की महत्ता को समझ रहे हैं, लेकिन जिन्हें बिना किसी परेशानी के जल मिल रहा है, वही बेपरवाह नजर आ रहे हैं। आज भी शहरों में फर्श चमकाने, गाड़ी धोने और गैर-जरूरी कार्यों में पानी को निर्ममतापूर्वक बहाया जाता है।प्रदूषित जल में आर्सेनिक, लौहांश आदि की मात्रा अधिक होती है, जिसे पीने से तमाम तरह की स्वास्थ्य संबंधी व्याधियां उत्पन्न हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 86 फीसदी से अधिक बीमारियों का कारण असुरक्षित व दूषित पेयजल है। वर्तमान में करीब 1600 जलीय प्रजातियां जल प्रदूषण के कारण लुप्त होने की कगार पर हैं, जबकि विश्व में करीब 1.10 अरब लोग दूषित पेयजल पीने को मजबूर हैं और साफ पानी के बगैर ही अपना गुजर-बसर कर रहे हैं।
जल संरक्षण को हम सभी को अपने दैनिक जीवन का संकल्प बनाना होगा तथा इसे मानसिक से व्यावहारिक स्तर पर लाना होगा। हमें जल व वातावरण को अपने पूर्वजों की देन नहीं समझना, बल्कि इसे तो हमने अपनी आने वाली पीढ़ी के उद्धार स्वरूप लिया है, जिसे हमने जिस मात्रा व रूप में लिया है, उसे उसी रूप व मात्रा में दोबारा वापस करना है, ऐसी मानसिकता व धारणा के साथ जब सभी व्यक्ति जल जैसे सीमित संसाधनों का उपभोग करेंगे तभी इनका संरक्षण संभव हो सकता है।
एन.जी.ओका व युवाओं को जल संरक्षण जागरूकता अभियान चलाने चाहिएं ताकि जन-जन तक जल संरक्षण की विधियां, लाभ व संदेश पहुंच सकें। भारत सरकार भी जल जीवन मिशन के तहत ‘हर घर जल व नल’ जैसी योजनाओं से प्रत्येक घर तक जल पहुंचा रही है, लेकिन इसका संरक्षण करना आमजन का कत्र्तव्य ही नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी है। -प्रो. मनोज डोगरा