नीट : मंत्री जी को ही कुछ पता नहीं है

Edited By ,Updated: 19 Jun, 2024 05:29 AM

neet the minister himself does not know anything

राजनीतिक रूप से भले ही रक्षा, गृह, विदेश और वित्त मंत्री ज्यादा महत्व पाते हों लेकिन असली महत्व के मामले में वाणिज्य, सूचना तकनीक, सड़क परिवहन और विदेश व्यापार प्रमुखता पाने लगे हैं। एक जमाने में संचार मंत्रालय भी काफी भाव पा रहा था। पर इन सबके बीच...

राजनीतिक रूप से भले ही रक्षा, गृह, विदेश और वित्त मंत्री ज्यादा महत्व पाते हों लेकिन असली महत्व के मामले में वाणिज्य, सूचना तकनीक, सड़क परिवहन और विदेश व्यापार प्रमुखता पाने लगे हैं। एक जमाने में संचार मंत्रालय भी काफी भाव पा रहा था। पर इन सबके बीच वह मंत्रालय, जिसे शिक्षा का काम संभालना है लेकिन नाम मानव संसाधन विकास कर दिया गया है, लगातार अपना भाव बढ़ाता गया। लेकिन इधर शिक्षा मंत्रालय लगातार कई तरह के विवादों में रहा और इस पद का महत्व भी कम हुआ है। 

जिस तरह से देश भर के मैडिकल कालेजों में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ के नतीजों को लेकर विवाद हुआ है, हम सभी को इस विभाग और इसके काम का महत्व समझ में आने लगा है। महत्व तो इसके मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को ज्यादा मालूम है लेकिन वे कुछ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे वे इस पूरे काम से कुछ परेशान हों और इस परेशानी में वे रह-रह कर एक कदम उठा रहे हैं जो मजबूरी या अदालती आदेश का दबाव ज्यादा लगता है, अपने विभाग का दोष या गलती सुधारने की इच्छा से उठाया गया कदम नहीं लगता। 

और जिस तरह से वह परीक्षा आयोजित करने वाली एजैंसी को लगातार दोषमुक्त करते जा रहे हैं और परीक्षार्थियों/अभिभावकों को झूठे आश्वासन दिए जा रहे हैं, वह बताता है कि वे सब कुछ जानकर भी अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। परीक्षा के दिन से ही नहीं, उससे पहले से हंगामा है और वह अनजान दिखते हैं, जबकि जिन कुछ मंत्रियों को पुराने विभाग वापस मिले हैं, उनमें धर्मेन्द्र प्रधान भी हैं। इसका तत्काल यह नतीजा निकालने की जरूरत नहीं है कि खुद उनकी इस घोटाले में संलिप्तता है, लेकिन यह जरूर पूछा जा सकता है कि उनको कैसे पता नहीं था। 

परीक्षा का फार्म भरने की तारीख बीतने के बाद अचानक फार्म लेने वाली विंडो खुली और 24,000 फार्म जमा हो गए। ज्यादातर गड़बड़ इनको लेकर है। फिर बिना किसी वजह के कुछ छात्रों को अनुग्रह अंक (ग्रेस माक्र्स) दे दिए गए। गड़बड़ पकड़ी गई तो मंत्री जी ने ग्रेस माक्र्स हटाने या दोबारा परीक्षा का विकल्प दे दिया, मानो एक जगह की गड़बड़ से दूसरे का कोई रिश्ता ही न हो। रिजल्ट अभूतपूर्व आया और कट-आफ माक्र्स किसी की कल्पना से ऊपर पहुंच गए। इतने टॉपर हो गए कि गिनना मुश्किल। पूरे-पूरे अंक लेकर टॉप करने वाले छह टॉपरों वाले केंद्र का स्कूल संचालन भाजपा के एक विवादास्पद नेता के पास था। इंटर फेल भी टापरों में था तो दूसरी प्रवेश परीक्षाओं के टापर फेल हो गए। कुछ केंद्र के बच्चों का रिजल्ट आश्चर्यजनक अच्छा हुआ, तो कई राज्यों के कुछ बच्चे हजारों मील दूर गुजरात के एक केंद्र पर परीक्षा देने गए और ज्यादातर पास हो गए। कई बच्चों ने जवाब न आने पर स्थान खाली छोड़ दिया, जिसे बाद में भरे जाने की पुष्टि हुई है। 

परीक्षा के दिन ही एक बड़े हिन्दी अखबार ने अपने सभी संस्करणों में पटना में कई दिन पहले प्रश्र लीक होने की खबर छापी। बच्चों कोो प्रश्नपत्र देकर जवाब का अभ्यास कराया गया। पटना पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया और जलाए गए प्रश्न-पत्र पकड़े। कुछ छात्र और अभिभावक भी पकड़े गए, जिन्होंने इस गड़बड़ को कबूला। हद तो तब हो गई जब 30 और 40 लाख के पोस्ट-डेटेड चैक इन गिरोहबाजों के पास से मिले अर्थात पूरा धंधा बहुत भरोसे और निशिं्चत भाव से चल रहा था। हर तरफ से इसी तरह की गड़बड़ की खबरें आ रही हैं और इस धंधे के लगातार चलाने की बात भी पुष्ट हो रही है लेकिन मंत्री जी ही एकदम अनजान बने बैठे हैं और अभी भी अदालत से निर्देश मिलने का पालन होने की बात करते हैं। अगर अदालत को ही सब कुछ करना है तो आप किस लिए बने हैं? और तय मानिए कि अदालत भी आंख बंद नहीं करने वाली है क्योंकि 40 से ज्यादा मुकद्दमे हो चुके हैं और रोज नए सबूतों के साथ परीक्षार्थियों के आरोप सही साबित हो रहे हैं। 

और यह खेल सिर्फ ‘नीट’ की परीक्षा में हुआ हो, यह संभव नहीं है। हर परीक्षा शक के दायरे में है और आधी से ज्यादा परीक्षाओं में तो प्रश्नपत्र लीक होने की बात भी सामने आ रही है। कोचिंग सैंटर और शिक्षा माफिया का तंत्र पूरी शिक्षा व्यवस्था और उसमें भी खास तौर से प्रवेश परीक्षाओं को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। और हर परीक्षा केन्द्रीय स्तर पर और अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने से उसका संचालन चुस्त दुरुस्त ढंग से करा पाना असंभव बन गया है। दूर-दराज के और असुरक्षित परीक्षा केंद्र बनाना, थोड़े से पैसों के लिए बिकने वाले स्टाफ को भी साथ रखने की मजबूरी है। और फिर पूरे विभाग की ‘कमाई’ और माखन-मिश्री का इंतजाम इसी से होता है। केंद्र से न यह संभल रहा है, न वह इस जिम्मे को छोडऩे के मूड में है। और यह शिक्षा के सुधार और एकरूपता से ज्यादा धंधे की चीज बन गया है जिसका प्रमाण यह ‘नीट’ घोटाला है। और प्रधानमंत्री अगर इस सवाल पर कोई ङ्क्षचता रखते हैं या अपनी छवि के लिए ही सचेत हैं तो उन्हें बड़े कदम उठाने ही होंगे।-अरविन्द मोहन 
 

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