Edited By ,Updated: 07 Jan, 2025 05:50 AM
नया साल शुरू हो गया है 2025 में ऐसी कौन सी सियासी घटनाएं हो सकती हैं जिस पर नजर रहेगी। पहली सियासी घटना तो बिहार से जुड़ी है। नीतीश कुमार क्या करेंगे? विधानसभा चुनाव किस गठबंधन में रह कर लड़ेंगे? इसकी कयासबाजी तेज है। कभी भाजपा नेता ही संकेत देते...
नया साल शुरू हो गया है 2025 में ऐसी कौन सी सियासी घटनाएं हो सकती हैं जिस पर नजर रहेगी। पहली सियासी घटना तो बिहार से जुड़ी है। नीतीश कुमार क्या करेंगे? विधानसभा चुनाव किस गठबंधन में रह कर लड़ेंगे? इसकी कयासबाजी तेज है। कभी भाजपा नेता ही संकेत देते हैं कि नया मुख्यमंत्री चुनावों बाद तय होगा तो कभी खुद ही भाजपा के नेता नीतीश कुमार को वर्तमान और भावी मुख्यमंत्री घोषित कर देते हैं।
कभी लालू का बयान आता है कि नीतीश के लिए दरवाजे खुले हैं तो कभी तेजस्वी इस साल बिहार में नई सरकार का ट्वीट कर देते हैं। सोशल मीडिया में तो हल्ला है कि नीतीश अब गए तब गए, लेकिन हैरानी की बात है कि नीतीश कुमार खामोश हैं। उनकी खामोशी बहुतों को बेचैन कर रही है। साफ छुपते भी नहीं और सामने आते भी नहीं का सियासी खेल वह खेल रहे हैं। दूसरी खबर दिल्ली विधानसभा चुनाव की सुर्खियों में रहने वाली है। नतीजा चाहे जो हो,अरविंद केजरीवाल अगर इस बार भी जीते तो अपनी राजनीति का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने की दिशा में बढ़ेंगे और ‘इंडिया’ मोर्चे से कांग्रेस को अलग थलग करने पर जोर देते रहेंगे। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार का चुनाव केजरीवाल के लिए इतना आसान नहीं रहने वाला है। तीसरी खबर इस साल भी ‘इंडिया’ बनाम एन.डी.ए. के बीच तकरार रहने वाली है। संसद से लेकर सड़क तक तल्खी बनी रहेगी इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए। बीच-बीच में ‘इंडिया’ मोर्चे में टूटन आदि की खबरें भी आती रहेंगी लेकिन कुल मिलाकर मोर्चा जिंदा रहेगा जिसकी असली अग्नि परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव में होगी।
इसके अलावा नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी के बीच की अदावत भी साल भर चर्चा में बनी रहेगी। राहुल गांधी अडानी, जातीय जनगणना, संविधान बचाओ जैसे मुद्दों को उठाते रहेंगे और सत्ता पक्ष नेहरू गांधी परिवार को निशाने पर लेता रहेगा। पांचवां मसला जिस पर नजर रहेगी वह आंबेडकर के कथित अपमान से जुड़ा है। विपक्ष इस मसले को साल भर भुनाने की कोशिश करता रहेगा।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट फरवरी में होगा। पिछले 3 सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने कोई बड़ा आर्थिक सुधार नहीं किया है। इस बार माना जा रहा है कि वह कुछ बड़े और कड़े फैसले ले सकते हैं। तीन श्रम कानूनों को क्या इस बार लागू किया जाएगा? क्या कार्पोरेट टैक्स में तबदीली होगी? क्या कृषि कानूनों को बदले हुए स्वरूप में फिर से लागू किया जाएगा? जानकारों का कहना है कि बैसाखियों पर टिकी सरकार के लिए नीतीश-नायडू की सहमति लेना जरूरी होगा। जिस तरह से नायडू के इशारे पर वक्फ बिल संयुक्त समिति को सौंपा गया उससे साफ है कि साथियों को मनाने में मोदी को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
इस साल आर्थिक सुस्ती भी सरकार की परीक्षा लेगी। बहुत कुछ अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के रुख पर निर्भर करेगा, खासतौर से उनकी 50 फीसदी तक टैरिफ लगाने की धमकी और वहां अवैध तरीके से रह रहे सवा 7 लाख भारतीयों का क्या होगा? कुल मिलाकर ट्रम्प और मोदी की दोस्ती भी कसौटी पर रह सकती है। दसवीं खबर भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष से जुड़ी हुई है। माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव पूरे होने के बाद फरवरी या मार्च में नया अध्यक्ष मिल सकता है। आंबेडकर विवाद के बाद क्या किसी दलित को ताज पहनाया जा सकता है। महिला वोटरों की बढ़ती ताकत को देखते हुए क्या भाजपा को पहला महिला अध्यक्ष मिल सकता है या फिर कोई युवा चौंकाने वाला नाम सामने आ सकता है।
तर्क दिया जा रहा है कि ‘इंडिया’ मोर्चे में ममता, तेजस्वी, अखिलेश, राहुल, आदित्य ठाकरे, केजरीवाल, उमर अब्दुल्ला जैसे युवा चेहरे हैं। इनकी काट के लिए भाजपा का नया अध्यक्ष 55 से 60 साल के बीच का कोई हो सकता है। जो होगा वह भागवत की पसंद का होगा या मोदी की या फिर मिली जुली पसंद। देखना दिलचस्प रहेगा। वैसे साल भर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के बीच सियासी मुकाबला भी खबरों का हिस्सा हो सकता है। प्रियंका ने संसद में अपने भाषणों से छाप छोड़ी है। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन राहुल गांधी ने कभी अभय मुद्रा तो कभी एकलव्य का उदाहरण सामने रखा है। दोनों चर्चा में रहे तो फायदा कांग्रेस को ही होगा। कुछ का कहना है कि इस साल कांग्रेस में प्रियंका का नया मजबूत पावर सैंटर शुरू हो सकता है।
जहां तक अदालतों की बात है तो इस साल राहुल गांधी पर चल रहे केस यूं ही तारीख पे तारीख के बीच चलते रहेंगे या कोई फैसला भी आएगा। उनकी नागरिकता को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामला चल रहा है। वैसे तो प्रियंका गांधी की वायनाड से सांसदी पर भी मामला अदालत में है। लेकिन जानकारों का कहना है कि भाई-बहन को संसद से निकाल बाहर करने का जोखिम मोदी सरकार नहीं लेगी। अलबत्ता 1991 के उपासना स्थल कानून के बारे में जनवरी में ही मोदी सरकार को अपना रुख सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करना है। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि कानून को मोदी सरकार सही ठहराती है या मीन मेख निकालती है या बीच का रास्ता तलाशने की कोशिश करती है। जाहिर है कि अगर मोदी सरकार ने 1991 के एक्ट को सही बताया तो उग्र हिंदूवादी तत्वों की नाराजगी बढ़ सकती है जो पहले से ही मोहन भागवत के हर मस्जिद में शिवलिंग नहीं तलाशने की नसीहत से नाराज चल रहे हैं।
इस साल वक्फ बिल के साथ साथ ‘एक देश-एक चुनाव’ बिल भी संसद में पारित होने के लिए रखे जाएंगे। क्या ‘एक देश-एक चुनाव’ बिल को दो तिहाई मतों से दोनों सदनों में पारित करवाने में मोदी कामयाब होंगे या बिल ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। बात संसद की हो रही है तो क्या 2024 की तरह 2025 में भी दोनों सदन उसी तरह चलेंगे। क्या राज्यसभा सभापति के खिलाफ नए सिरे से अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा या वह लचीला रुख अपनाते नजर आएंगे। वैसे इस साल सितंबर में मोदी 75 के हो जाएंगे। लेकिन 2029 तक तो वे हैं ही। आगे की रणनीति वो खुद ही तय करेंगे, यह पक्का है।-विजय विद्रोही