Edited By ,Updated: 17 Dec, 2024 06:13 AM
विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वतंत्र भारत के इतिहास की अभूतपूर्व और असामान्य घटना है। संविधान के अनुच्छेद 67 के अनुसार राज्यसभा में सामान्य बहुमत से पारित होने के साथ लोकसभा बहुमत से इसकी सहमति देती...
विपक्ष द्वारा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वतंत्र भारत के इतिहास की अभूतपूर्व और असामान्य घटना है। संविधान के अनुच्छेद 67 के अनुसार राज्यसभा में सामान्य बहुमत से पारित होने के साथ लोकसभा बहुमत से इसकी सहमति देती है तो उपराष्ट्रपति को हटाया जा सकता है। 60 सदस्यों वाला अविश्वास प्रस्ताव नोटिस राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश और पार्टी सांसद नासिर हुसैन ने राज्यसभा के महासचिव पी.सी. मोदी को सौंपा है।
भले अडानी और अन्य मुद्दों पर आई.एन.डी. आई.ए. घटकों में मतभेद हों लेकिन इस नोटिस पर कांग्रेस के साथ लगभग सभी विपक्षी दलों के सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि संसद का सत्र 20 दिसंबर को समाप्त हो जाना है और अविश्वास प्रस्ताव को सदन में लाने के लिए 14 दिन पहले नोटिस दिया जाना आवश्यक है। इस तरह वर्तमान सत्र में अविश्वास प्रस्ताव आने की संभावना कम है। वैसे भी राज्यसभा में भाजपा नेतृत्व वाले राजग के पास 126 सांसद हैं तो विपक्ष के पास लगभग 103, इसे देखते हुए प्रस्ताव का पारित होना कठिन है। पारित न होना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है पूरे विपक्ष का उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के प्रति गहरा अविश्वास। नोटिस में अनेक कारण दिए गए हैं।
जयराम रमेश ने कहा कि इस स्थिति तक पहुंचना पीड़ादायक था लेकिन धनखड़ ने पक्षपातपूर्ण तरीके से सदन का संचालन किया है। कांग्रेस अध्यक्ष व राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने को विवश होना पड़ा क्योंकि उनका आचरण पद की गरिमा के विपरीत रहा है। वह विपक्ष को अपने विरोधियों की तरह देखते हैं, स्वयं को संघ का एकलव्य और स्कूल का हैड मास्टर बताते हैं , सरकार के प्रवक्ता की तरह काम करते हैं। शिवसेना उद्धव ठाकरे के संजय राऊत ने तो यह तक कह दिया कि सभापति सदन शुरू होने पर 40 मिनट पहले खुद भाषण देते हैं और उसके बाद कहते हैं कि दंगा करो। ऐसा लगता है कि वह सदन नहीं सर्कस चलाते हैं। जब धनखड़ ने कहा कि मैं किसान का बेटा हूं और डरूंगा नहीं, तो खरगे ने करारा प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि मैं भी किसान मजदूर का बेटा हूं, आप हमारा सम्मान नहीं करते तो हम आपका क्यों करें? जब उपराष्ट्रपति ने उन्हें अपने कमरे में बुलाया तो उनका उत्तर था कि आपके कमरे में क्यों जाएं वहां बुलाकर आप लोगों का अपमान करते हैं।
इस तरह की भावना के रहते अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने के बावजूद सदन में उपराष्ट्रपति के साथ विपक्ष का कैसा संबंध होगा इसकी कल्पना से डर लगता है। सरकार और विपक्ष के बीच टकराव समझ में आता है। टकराव अगर सदन के सभापति एवं उपराष्ट्रपति तक पहुंच जाए तो मानना चाहिए कि हमारा लोकतंत्र कई रोगों से ग्रस्त हो गया है। उपराष्ट्रपति भी मनुष्य हैं। ऐसी स्थिति कभी देखी नहीं गई। जगदीप धनखड़ जबसे आसन पर बैठे हैं विपक्ष के साथ उनका द्वंद्व कई रूपों में सामने आता रहा है। विपक्ष का आरोप है कि वह जानबूझकर विपक्षी सांसदों को लगातार टोकते हैं, अपमानित करते हैं, भाषण बाधित करते हैं , उन्हें इस तरह कटघरे में खड़ा करते हैं जैसे सभापति नहीं सरकारी पक्ष हों आदि आदि।
मानसून सत्र में ही अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा हो गई थी। समाचार यह था कि 60 से 65 सांसद हस्ताक्षर भी कर चुके हैं। तात्कालिक टकराव जया बच्चन से जुड़ा था। जया बच्चन को जया अमिताभ बच्चन पुकारने से आपत्ति थी। जब राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने जया अमिताभ बच्चन कहते हुए पुकारा तो उन्होंने कहा कि क्या मेरे नाम के साथ पति का नाम बोलना आवश्यक है? हरिवंश ने कहा कि रिकॉर्ड में जया जी आपका यही नाम लिखा है। जगदीप धनखड़ ने यही नाम पुकारा। फिर जया बच्चन ने इसका प्रतिवाद किया। उनको वही उत्तर मिला। जया बच्चन ने कहा कि सॉरी सर, लेकिन आपका टोन अच्छा नहीं था तो धनखड़ ने बीच में उन्हें रोककर कहा कि जया जी आप एक अभिनेत्री रही हैं। आपने बहुत नाम कमाया है। लेकिन अभिनय कलाकार को हमेशा निर्देशक की जरूरत पड़ती है। वह निर्देशक के निर्देशों के अनुसार ही अपनी भूमिका निभाता है। जया बच्चन ने बाहर आकर कई महिला सांसदों से कहा कि सभापति हमेशा अपमानित करते हैं। जब पत्रकारों ने पूछा कि आप इस मुद्दे को कहां तक ले जाएंगी तो उन्होंने कहा कि हम उनसे बिना शर्त क्षमा याचना चाहती हैं।
ऐसा कभी नहीं हुआ जब सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को क्षमा मांगने के लिए कहा गया हो। उनके पीछे कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी भी खड़ी थीं। जब जया बच्चन के साथ सभापति की बातचीत चल रही थी तो कांग्रेस अध्यक्ष व राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भी टिप्पणी की। टोकते हुए धनखड़ ने कहा कि खरगे जी, क्षमा करिएगा आप लोग जिस तरह देश को अस्थिर करने की राजनीति कर रहे हैं मैं उसका भाग नहीं हो सकता। यह पंक्ति विपक्ष को नागवार गुजरी होगी। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान लोकसभा में शिवसेना के मनोहर जोशी अध्यक्ष थे तो उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत। राज्यसभा में राजग की संख्या कम थी तथा विपक्ष और सरकार के बीच जबरदस्त टकराव था। बावजूद दोनों ने सदनों को इस तरह संभाला कि सभी पक्षों ने उनकी प्रशंसा की। जब खाई बढ़ चुकी हो तो हम संयत और सहनशील व्यवहार की उम्मीद नहीं कर सकते।-अवधेश कुमार